भोपाल

MP Tourism: एक सैटेलाइट ने खोला था हजार साल पुराना रहस्य, भोपाल-भगवान शिव के कनेक्शन से वैज्ञानिक भी थे हैरान

MP Tourism: 8 साल पहले जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का 1000 साल पुराना रहस्य सामने आया तो वैज्ञानिक हैरान थे कि ऐसा कैसे, राजाभोज ने कैसे जोड़ा था भगवान शिव के साथ भोपाल का कनेक्शन…

भोपालJan 16, 2025 / 04:34 pm

Sanjana Kumar

mp tourism: देश का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल अपने प्राकृतिक सौंदर्य और गौरवशाली इतिहास के लिए दुनिया भर में मशहूर है। हरी-भरी वादियों के बीच भोपाल की आबोहवा ऐसी है कि डॉक्टर मरीजों को यहां रहने की सलाह देते हैं। हर 10 किमी में कांक्रीट देखते गुजरने के बाद यहां हर 10 किमी का एरिया हरा-भरा और शांत नजर आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, मन और आंखों को सुकून देने वाले इस शहर में हजारों साल पुराने कई रहस्य छिपे हैं। कुछ ऐसे कि उन्हें जानकर वैज्ञानिक भी हैरान रह गए। इन्हीं में से एक ऐसा रहस्य है, जो बताता है इस शहर का भगवान शिव से खास कनेक्शन।
एक समय था जब मध्य प्रदेश (#mpdekho) की राजधानी भोपाल को भोजपाल कहा जाता था। भारत का एक प्राचीन नगर जहां राजा भोज ने देश का सबसे बड़ा तालाब बनवाया था, जो वर्तमान में बड़ा तालाब के नाम से जाना जाता है। वो राजाभोज ही थे जिन्होंने भोपाल में भोजपुर के प्रसिद्ध शिवमंदिर का निर्माण एक रात में करवाया था। यही वो मंदिर है जिसने हजारों साल पुराने रहस्य को एक पल में उजागर कर दिया और वैज्ञानिकों को रिसर्च का एक विषय दे दिया।

8 साल पहले 2017 में खुला था राज

अपने गौरवशाली इतिहास के लिए मशहूर भोपाल में हजारों साल पुरानी ओम वैली है। यही वो रहस्य था जो 8 साल पहले 2017 में तब सामने आया जब, एक सैटेलाइट भोपाल के ऊपर से गुजरा। ये नजारा देख वैज्ञानिक हैरान रह गए थे। उनका कहना था कि मानसून के समय ये ओमवैली पूरी तहर से सामने आ जाती है। क्योंकि यही वो समय होता है जब नदियां लबालब भर जाती हैं, हर तरफ हरियाली की चादर बिछ जाती है।

ओम वैली के केंद्र में बसा है भोपाल का भोजपुर

वैज्ञानिकों ने जब इस रहस्य को उजागर किया तो बताया था कि भोपाल से 30 किमी दूर रायसेन जिले में स्थित भोजपुर ओम वैली के केंद्र में बसा है। ओमवैली के एक सिरे पर भोपाल तो दूसरे पर दौलतपुर और कालापीपल बसा हुआ है। जबकि इसके दूसरे हिस्सों पर बंछोद, चिकलोद, आशापुरी, गैरतगंज और तमोट है।

गूगल मैप पर नजर आती है ओमवैली


आपको बता दें कि गूगल मैप पर या गूगल अर्थ पर जब भी आप भोजपुर टाइप कर सर्च पर क्लिक करेंगे, तो आपके सामने ओपन होने वाली तस्वीर में भोजपुर का प्वॉइंट तो नजर आएगा। इसके साथ ही उसके आसपास नजर आने वाली पहाड़ियों में ओमवैली भी दिखाई दे जाएगी। मानसून के दिनों में ये ज्यादा साफ और खूबसूरत नजर आती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि ओंकारेश्वर में भी ओम वैली नजर आती है।

ओम वैली को लेकर क्या कहते हैं वैज्ञानिक

भोपाल ओमवैली का रहस्य जब उजागर हुआ तब इसके सैटेलाइट डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन का काम मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद को मिला हुआ था। परिषद की उस समय की ताजा सैटेलाइट इमेज से ओमवैली के आसपास पुराने भोपाल की बसाहट और एकदम केंद्र में भोजपुर मंदिर की स्थिति साफ नजर आई थी। तब परिषद के वैज्ञानिक डॉ. जीडी बैरागी के अनुसार डाटा केलिबरेशन के लिए हमें ठीक उस वक्त डाटा लेना होता है, जिस वक्त सैटेलाइट (रिसोर्स से-2) शहर के ऊपर से गुजरे। यह सैटेलाइट 24 दिन के अंतराल पर भोपाल के ऊपर से गुजरता है।

समरांगण सूत्रधार के आधार पर बसा भोपाल

भोजकालीन भोपाल के शोधकर्ता संगीत वर्मा कहते हैं कि भोज सिर्फ एक राजा नहीं थे, बल्कि कई विषयों के विद्वान थे। भाषा, नाटक, वास्तु, व्याकरण समेत कई विषयों पर वे 60 से भी ज्यादा किताबें लिख चुके थे। वास्तु पर लिखी समरांगण सूत्रधार के आधार पर ही राजा भोज ने भोपाल शहर बसाया था। गूगल मैप से वह डिजाइन आज भी वैसा ही देखा जा सकता है।

राजा भोज के समय ग्राउंड मैपिंग कैसे हुई यह रिसर्च का विषय?

  • ओम वैली देखकर वैज्ञानिकों के लिए हैरानी की बात ये थी कि आखिर राजा भोज के समय ग्राउंड मैपिंग कैसे हुई? यही सवाल उनकी रिसर्च का विषय बन गया।
  • आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के लिए भोजपुर मंदिर का इंटरप्रेटेशन सेंटर तैयार करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना के मुताबिक, ओम की संरचना और शिव मंदिर का रिश्ता पुराना है।
  • उनका कहना था कि देश में जहां कहीं भी शिव मंदिर बने हैं, उनके आसपास ओम की संरचना जरूर दिखाई देती है। इसका उदहारण है ओंकारेश्वर का शिव मंदिर भी है।
  • सैटेलाइट इमेज से यह बहुत स्पष्ट है कि भोज ने जो शिव मंदिर बनवाया, वह इस ओम की आकृति के बीचोंबीच स्थापित है। भोज की रचनाएं हर जगह चौंकाती है।
  • परमार राजा भोज के समय में ग्राउंड मैपिंग किस तरह से होती थी इसके अभी तक कोई लिखित साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन यह अब रिसर्च का रोचक विषय जरूर हो बन चला था।
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