अभियोजन स्वीकृति के बाद जांच अधिकारी द्वारा न्यायालय में चालान प्रस्तुत करने की स्थिति में इसकी सूचना नियुक्तिकर्ता अधिकारी को देगा, जिससे आगे कार्रवाई की जा सके। नियुक्तिकर्ता केस अभियोजन स्वीकृति के योग्य नहीं पाता तो वह अपने अभिमत के साथ 30 दिन में विधि विभाग को भेजेगा। विधि विभाग 15 दिन में प्रशासकीय विभाग को कारण सहित अभिमत देगा।
किरकिरी न हो, तभी आगाह भी किया
मुकदमा चलाने के बाद सरकार की किरकिरी न हो, इसलिए जिम्मेदार अफसरों को आगाह किया है। आदेश में कहा है कि अभियोजन स्वीकृति देने के पहले सभी कानूनी पहलुओं को भी देख लिया जाए। क्योंकि कई प्रकरणों में बचाव पक्ष ने न्यायालय में आपत्तियां उठाई। ये भी पढ़ें: बिजली उपभोक्ताओं को राहत, सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक कम आएगा ‘बिजली बिल’ आउटसोर्स कर्मचारी भी आए दायरे में
आदेश में कहा दैनिक वेतनभोगी, स्थाई कर्मी, संविदा कर्मचारियों को शासकीय सेवकों की तरह अभियोजन स्वीकृति दी जाए। आउटसोर्स कर्मचारी को निजी एजेंसी से सेवा में रखा जाता है। राज्य या शासकीय निकाय नियुक्तिकर्ता नहीं है, इसलिए इन मामलों में अभियोजन स्वीकृति जरूरी नहीं है। यानी उन पर सीधे कार्रवाई की जा सकेगी।
संबंधित को सुनना जरूरी
किसी अधिकारी-कर्मचारी के मामले में मुकदमा दायर करने के पहले संबंधित लोकसेवक को भी सुना जाएगा। आदेश में कहा है कि लोकसेवक को सुने जाने का अवसर दिए बिना अभियोजन की मंजूरी नहीं दें। नियुक्तिकर्ता अफसर 3 माह में केस का निराकरण करेगा। नियुक्तिकर्ता प्रकरण को अभियोजन स्वीकृति योग्य नहीं पाता तो अभियोजन स्वीकृति अस्वीकार कर सकेगा। विधि विभाग से परामर्श करना आवश्यक नहीं होगा।
संभावना पर न मिले अनुमति
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दे आदेश में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रकरणों में सिर्फ संभावना पर्याप्त नहीं है। सिर्फ विभागीय अनियमितता के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में कार्रवाई उचित नहीं है। जिन मामलों में भ्रष्टाचार (जैसे ट्रैप प्रकरण, आय से अधिक संपत्ति प्रकरण, रिश्वत की मांग आदि) के साक्ष्य न हों, ऐसे प्रकरणों का सावधानीपूर्वक परीक्षण कर अभियोजन स्वीकति जारी करें। विभागीय जांच की परिधि वाले केस पर अभियोजना स्वीकृति के मामले में सावधानी बरती जाए।