आपको बता दें कि कोर्ट ने विधानसभा चुनाव-2023 के दौरान दायर की गई याचिका पर कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद को ये फैसला सुनाया है। ये याचिका भाजपा के टिकट पर मध्य सीट से चुनाव हारे प्रत्याशी ध्रुव नारायण सिंह द्वारा दायर करते हुए आरिफ मसूद के निर्वाचन को चुनौती दी थी।
यह भी पढ़ें- भरी सभा में मंच से कैलाश विजयवर्गीय बोले- ‘खुद को अपराधी महसूस कर रहा हूं…’, सामने बैठे थे सीएम मोहन, जाने वजह मसूद ने कोर्ट को नहीं दिया था नोटिस का जवाब
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मिश्रा और पंखुड़ी विश्वकर्मा ने पक्ष रखा। हाईकोर्ट ने 8 अप्रैल 2024 को आरिफ मसूद को नोटिस जारी कर लिखित वक्तव्य पेश करने को निर्देशित किया था। अधिवक्ता पंखुड़ी ने दलील दी कि 120 दिन गुजरने के बावजूद वक्तव्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
यहां जानें पूरा मामला
बीते 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के टिकट पर हार का सामना करने वाले पूर्व विधायक और प्रत्याशी ध्रुवनारायण सिंह ने हाईकोर्ट में कांग्रेस विधायक के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की थी, जिसमें मसूद पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी भरे नामांकन-पत्र में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई है। नामांकन पत्र के साथ मसूद ने शपथ पत्र पेश किया था, उसमें खुद के नाम से लिए गए 35 लाख 10 हजार और पत्नी रूबीना मसूद के नाम पर लिए गए 32 लाख 28 हजार को मिलाकर करीब 65 लाख 38 हजार रुपए के लोन की जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी थी। यह भी पढ़ें- सावधान! आप भी हो सकते हैं Digital Arrest, महिला को इस तरह धमकाकर ठगे 94 हजार बचाव में मसूद ने भी दायर की थी याचिका
बीजेपी नेता ध्रुव नारायण की याचिका के विरोध में कांग्रेस के आरिफ मसूद ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें मसूद ने तर्क दिया है कि चुनाव याचिका नियम विरुद्ध तरीके से दायर की गई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता बीजेपी प्रत्याशी ध्रुव नारायण सिंह ने विधायक मसूद की विधायकी समाप्त कर नए सिरे से विधानसभा चुनाव कराए जाने की मांग की है।
आरिफ मसूद की याचिका हो चुकी रद्द
कांग्रेस नेता आरिफ ने चुनावी याचिका को आधारहीन बताया था। साथ ही चुनाव याचिका निरस्त करने की मांग की थी। हालांकि, कोर्ट ने कांग्रेस विधायक की उस याचिका को निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों की दलील और कोर्ट में पेश किए गए सबूतों के बाद अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के हवाले से कोर्ट ने ये माना कि ध्रुव नारायण सिंह की याचिका की याचिका में कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर की धारा का बिलकुल भी उल्लंघन नहीं हुआ। इसलिए याचिका को निरस्त नहीं किया जा सकता।