प्राधिकृत अफसरों में कलेक्टर और नगर निगम कमिश्नर हैं। यानी प्रस्ताव के तहत उन्हें जेल व जुर्माना भुगतना होगा। अवैध कॉलोनियों पर कार्रवाई के लिए पुलिस सहायता जानबूझकर उपलब्ध नहीं कराने पर पुलिस अफसरों पर भी यही कार्रवाई हो सकती है। साथ ही अवैध कॉलोनी बनाने वालों के लिए भी सजा और जुर्माना बढ़ाया है।
हालांकि प्रस्ताव पर अंतिम फैसला कैबिनेट में होगा। नगरीय विकास की समीक्षा बैठक में विभागीय मंत्री ने अवैध कॉलोनियां रोकने के नियम सख्त करने के निर्देश दिए। इसके बाद संचालनालय ने ड्राफ्ट बनाया। इसमें साफ है जो अफसर अवैध कॉलोनियों को रोकने के लिए जिम्मेदार हैं। शिकायत पर जांच-कार्रवाई नहीं करते या टालते हैं तो दोषी माने जाएंगे।
इन्हें मानते हैं वैध कॉलोनी
कॉलोनी विकसित करने के पहले नगर तथा ग्राम निवेश से भूमि विकास की अनुज्ञा और कॉलोनी के नक्शे का अनुमोदन कराना जरूरी है। सक्षम प्राधिकारी से कॉलोनाइजर का पंजीयन और अनुमोदित नक्शे के अनुसार सक्षम प्राधिकारी से कॉलोनी में विकास कार्य की अनुज्ञा प्राप्त करना अनिवार्य है। यह नहीं होने पर कॉलोनी अवैध मानी जाती है। नगर निगम में सक्षम प्राधिकारी निगम आयुक्त और नगरपालिका परिषद और नगर परिषद में जिला कलेक्टर होते हैं।
न्यूनतम 7 साल की सजा, 50 लाख रु. तक जुर्माना
अभी अवैध कॉलोनियां बनाने वालों को न्यूनतम 3 साल और अधिकतम 10 साल कारावास की सजा का प्रावधान है। नए नियमों में इसे बढ़ाकर न्यूनतम 7 साल और अधिकतम 10 साल की सजा किया है। इसी प्रकार अभी अवैध कॉलोनियां बनाने वालों पर जुर्माना भी अधिकतम 10 लाख रुपए ही है। इसे बढा़कर 50 लाख किया है।
प्रदेश में अभी ऐसी हालत
7981 अवैध कॉलोनियां अब तक प्रदेश में चिह्नित 3155 अवैध कॉलोनियां नगर निगमों में ही हैं 4826 अवैध कॉलोनियां नपा और नगर परिषदों में प्रदेश में अवैध कॉलोनियां बन रहीं बोझ – प्लॉट खरीदने वालों को भवन अनुज्ञा, पानी का कनेक्शन नहीं मिलता। – कॉलोनी में नगरीय निकाय कोई विकास नहीं कराता है। – अवैध कॉलोनियों में अनियंत्रित और अनियोजित विकास होने के कारण नागरिकों को परेशानी होती है।
– अनियंत्रित विकास के कारण जलनिकास में अवरोध और पर्यावरण पर भी दुष्प्रभाव होता है। -राज्य सरकार को भी राजस्व हानि होती है। -भविष्य में ऐसी कॉलोनियां निकायों पर वित्तीय बोझ बन जाती हैं।