आयुष्मान कार्ड धारकों और बीपीएल मरीजों को नि:शुल्क इलाज देने की बात कही जा रही है, लेकिन निजीकरण के बाद गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले न्नि मध्यमवर्गीय परिवारों को सशुल्क ही इलाज कराना होगा। नि:शुल्क प्रसव और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी प्रभावित होने की आशंका है। प्रदेश के विभिन्न संगठनों ने ही निजीकरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
पहले किया था विरोध नीति आयोग के 1 जनवरी 2020 के प्रस्ताव के आधार पर मप्र सरकार ने निजीकरण का फैसला लिया है, जबकि 2020 में विभिन्न राज्यों के साथ मप्र सरकार ने भी विरोध किया था। अब मेडिकल कॉलेज स्थापित करने मॉडल रियायत समझौते में कहा गया है कि जिला अस्पतालों को निजी संस्थानों को सौंपा जाएगा। मप्र सरकार ने आयोग से एक कदम आगे बढ़कर जिला अस्पतालों का प्रबंधन भी निजी हाथों में सौंपने का फैसला किया है, जबकि आयोग के प्रस्ताव में निजी संस्था को जिला अस्पतालों के उन्नयन, संचालन और मेंटेनेंस सौंपने की बात कही गई है। स्वास्थ्य विभाग ने प्रबंधन भी जोड़ दिया है।
जनता के साथ सड़कों पर उतरने की चेतावनी
राजधानी में रविवार को स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विभिन्न संगठनों ने सरकारी की अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने की नीति का विरोध किया है। उन्होंने इसे नहीं रोकने पर जनता के साथ सड़कों पर उतरने की चेतावनी भी दी है। इन संगठनों में डॉ. राकेश मालवीय अध्यक्ष, मप्र मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन और मुख्य संयोजक, शासकीय स्वायत्तशासी चिकित्सा अधिकारी संघ, डॉ. माधव हासानी अध्यक्ष, एमपी मेडिकल ऑफिसर्स एसो., डॉ. गजेंद्रनाथ कौशल संयुक्त सचिव ईएसआई चिकित्सा अधिकारी संघ, डॉ. महेश कुमार राज्य अध्यक्ष, चिकित्सा अधिकारी चिकित्सा शिक्षा, डॉ. सिद्धार्थ कीमती, मप्र जूनियर डॉक्टर्स एसो., मनोरमा, मप्र नर्सिंग ऑफिसर एसो., डॉ. लोकेश रघुवंशी अध्यक्ष कॉन्ट्रैक्चुअल डॉक्टर्स एसो., राजकुमार सिन्हा राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकार अभियान, एसआर आजाद प्रदेश संयोजक जन स्वास्थ्य अभियान, डॉ. लोकेश रघुवंशी प्रदेश अध्यक्ष, संविदा चिकित्सक संघ, लक्ष्मी कौरव अध्यक्ष, एमपी आशा/आशा सहयोगिनी श्रमिक संघ, अमूल्य निधि राष्ट्रीय सह संयोजक जन स्वास्थ्य अभियान शामिल रहे।
प्रभावितों से बात क्यों नहीं की
1.शासन ने ज्यादातर सरकारी अस्पतालों का निजीकरण करने के पहले स्टेकहोल्डर्स या इससे प्रभावित होने वालों से बात क्यों नहीं की? 2. निजी अस्पताल संचालक लाभ कमाने का सोचेंगे, ऐसे में टीकाकरण अभियान, टीबी, कुष्ठ रोग, असंचारी रोग नियंत्रण जैसे नि:शुल्क अभियानों का संचालन कैसे होगा? 3. सरकारी प्रस्ताव के अनुसार निजी संस्थाओं द्वारा जिला अस्पताल लेने के बाद 55% बेड नि:शुल्क रहेंगे। 4.5 पेड रहेंगे। जब अभी बेड कम पड़ रहे हैं तो निजीकरण के बाद गरीबों को कैसे नि:शुल्क इलाज मिलेगा?
4. अभी सरकारी अस्पतालों के लिए विशेषज्ञ और मेडिकल ऑफिसर नहीं मिल रहे तो निजीकरण के बाद कैसे आ जाएंगे? 5. स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना राज्य का विषय है फिर सरकार इससे मुंह क्यों मोड़ रही है? नागरिकों को स्वास्थ्य की गारंटी कैसे मिलेगी?
पूरे नहीं हो पाए आइपीएचएस मापदंड
राज्य सरकार कई प्रयासों के बावजूद केंद्र द्वारा 2007 में जारी इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड को लागू नहीं कर पाई है। विशेषज्ञों के 2374 पद खाली हैं, जो स्वीकृत पदों का 63.73त्न है। चिकित्सा अधिकारियों के 1054 और दंत चिकित्सकों के 314 पद खाली हैं। कई सीएचसी और जिला अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ, आवश्यक सहायक कर्मचारी नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार प्रदेश में केवल 43 विशेषज्ञ, सामान्य ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर 670, रेडियोग्राफर 191, फार्मासिस्ट 474, प्रयोगशाला तकनीशियन 483 और 2087 नर्सिंग स्टाफ सीएचसी में काम कर रहे हैं।