मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे रामनरेश यादव की पुण्य तिथि (22 नवंबर) के अवसर पर प्रस्तुत है, उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्से…।
लोगों को था बेसब्री से इंतजार, सच आएगा सामने!
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में 1 जुलाई 1928 को जन्मे रामनरेश यादव जो लिख रहे थे, उसका इंतजार सभी को था। खासकर मध्यप्रदेश के लोगों को। क्योंकि देश का सबसे बड़ा शिक्षा घोटाला यहीं सामने आया था। जिसे आज भी लोग व्यापमं के नाम से जानते हैं। यादव की आत्मकथा का पहला भाग रिलीज हो चुका था, दूसरे की तैयारी चल रही थी। हर किसी को इस किताब का बेसब्री से इंतजार था कि इस किताब में घोटाले का सच सामने जरूर आएगा। लेकिन, किसी को नहीं पता था कि इससे पहले ही उनका निधन हो जाएगा। निधन के बाद तक वे खुद भी व्यापमं घोटाले से बरी नहीं हो पाए थे।
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200 पन्नों की थी ‘मेरी कहानी’
राज्यपाल पद पर रहते हुए रामनरेश यादव ने ‘मेरी कहानीÓ नामक एक राजनीतिक जिंदगी का सफरनामा लिखा। 200 पन्नों की इस किताब में कांग्रेस के प्रति आभार व्यक्त किया गया था, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी, चरण सिंह और वीपी सिंह जैसे उनके जमाने के तमाम दिग्गजों का नाम तक नहीं लिया गया था। लेकिन, ये किताब इसलिए अधूरी नहीं है। अधूरा रहने की वजह बनी इस किताब में व्यापमं घोटाले में उनकी भूमिका और संलिप्तता का उल्लेख न मिलना।
यह बात सही है कि जब व्यापमं से पर्दा उठा तो धड़ाधड़ गिरफ्तारियां होने लगी थीं, जांच कमेटी अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ लगा रही थी। तब संवैधानिक पद पर होने के कारण नाम आने के बावजूद यादव को गिरफ्तार नहीं किया गया। लेकिन, उनकी व्यापमं मामले में संलिप्तता सामने आना बड़ी बात थी। इससे भी बड़ी बात थी, उनके बेटे शैलेष यादव की मौत। व्यापमं घोटाले में फंसे उनके बेटे शैलेष की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत होने के बाद भी उनकी आत्मकथा में इस घटना को जगह नहीं मिली।
वो यादें भी नदारद
अपनी कहानी में यादव ने ईमानदारी के साथ इस बात की चर्चा की थी कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह उन पर आंख बंद करके भरोसा करते थे, पर व्यापमं वाले हिस्से को वे नहीं लिख पाए, जबकि इस घोटाले मे फंसे उनके बेटे शैलेष यादव की रहस्यमय मौत हो गई थी और उनका विश्वसनीय ओएसडी धनराज यादव भर्तियों के बदले घूस लेने के आरोप में जेल चला गया।
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बेटे ने कर ली थी खुदकुशी
व्यापमं महाघोटाले के चलते ये पहलू सबसे ज्यादा चर्चा में रहा कि अपनी गिरफ्तारी के डर के कारण और पिता की प्रतिष्ठा दांव पर लगते देख उनके बेटे शैलेष यादव ने खुदकुशी कर ली थी। वास्तविक कारण जो भी रहा हो, अपनी किताब में रामनरेश यादव इससे भी कन्नी काट गए थे।
राज्यपा के रूप में कम ही दिखी ‘मेरी कहानी’
आपको बता दें कि रामनरेश यादव की ‘मेरी कहानी’ में उनके राजनीतिक सफर की कहानी ही भरपूर है। इस किताब में उन्?होंने कांग्रेस में आने, सीएम बनने और यूपी में उनके सीएम रहते समय हुए सांप्रदायिक दंगों को सुलझाने के घटनाक्रम के बारे में काफी कुछ बताया, लेकिन राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यों को किताब में न के बराबर ही जगह मिली है। रामनरेश यादव का 89 वर्ष की उम्र में 22 नवंबर 2016 को निधन हो गया था। मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी संभालने वाले रामनरेश यादव मुद्दतों तक व्यापमं महाघोटाले की वजह से चर्चाओं में याद किए जाते हैं।