1974 में पहली बार उपचुनाव में दर्ज की थी जीत
1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में निर्दलीय विधायक चुने गए थे। उन्होंने 1977 में गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वर्ष 2003 तक वहां से लगातार विधानसभा चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे। गौर को हराने के लिए विपक्षी दलों ने कई उम्मीदवार बदले पर कोई भी उम्मीदवार बाबूलाल गौर को हरा नहीं सका। गौर भाजपा के अजेय उम्मीदवर के तौर पर जाने जाते हैं। 1993 के विधानसभा चुनाव में 59 हजार 666 वोटों से चुनाव जीतकर गौर ने रिकार्ड बनाया था और 2003 के विधानसभा चुनाव में 64 हजार 212 मतों के अंतर से विजय पाकर अपने ही कीर्तिमान को तोड़ा था।
बाबूलाल गौर का जन्म 2 जून 1930 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ। सक्रिय राजनीति में आने से पहले बाबूलाल गौर ने भोपाल की कपड़ा मिल में नौकरी की थी और श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया था। वे भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य हैं। गौर विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसंपर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री रहे। बाबूलाल गौर सन 1946 से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्होंने दिल्ली तथा पंजाब आदि राज्यों में आयोजित सत्याग्रहों में भी भाग लिया था। गौर आपातकाल के दौरान 19 माह की जेल भी काट चुके हैं। 23 अगस्त 2004 से नबंवर 2005 तक बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
बाबूलाल गौर के अनुसार, 1971 में जनसंघ ने पहली बार भोपाल से मुझे विधानसभा का टिकट दिया। मैं करीब 16 हजार वोटों से चुनाव हार गया। इसके बाद जेपी का आंदोलन देशभर में शुरू हुआ, हमने भी भोपाल में कई आंदोलन किए। फिर विधानसभा चुनाव आए तो जेपी ने जनसंघ से कहा कि यदि बाबूलाल गौर को निर्दलीय खड़ा किया जाएगा तो वे उनका सपोर्ट करेंगे। मैं चुनाव लड़ा और जीत गया। कुछ समय बाद जेपी भोपाल आए तो मैंने उनके सर्वोदय संगठन को 1500 रुपए का चंदा दिया। उन्होंने मुझे जीवन भर जनप्रतिनिधि बने रहने का आशीर्वाद दिया था।
गौर का विवादों से भी नाता रहा है। गौर अक्सर अपने बयानों के कारण सुर्खियों में रहते हैं। मई 2015 में हुए एक कार्यक्रम में गौर ने मंच पर डांस करने वाली रशियन बालाओं के फिगर की तारीफ की थी। उन्होंने स्वीकार किया था कि अपनी रशियन यात्रा के दौरान वहां की महिलाओं ने उनसे धोती पहनने के तरीके पूछे थे।