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भोपाल

शारदीय नवरात्रि 2018: मनोकामना पूर्ति के लिए जानिये देवी मां को किस दिन चढ़ाएं कौन सा भोग और 9 देवियों की नौ औषधियां…

नवरात्रि 2018: मनोकामना पूर्ति के लिए इन खास नियमों को जानें!…

भोपालOct 06, 2018 / 02:46 pm

दीपेश तिवारी

shardiya navratri 2018

शारदीय नवरात्रि 2018: मनोकामना पूर्ति के लिए जानिये देवी मां को किस दिन चढ़ाएं कौन सा भोग, और 9 देवियों की नौ औषधियां…

भोपाल। इस बार यानि 2018 में शारदीय नवरात्रि 10 अक्टूबर से शुरू हो रही है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। मां दूर्गा के भक्त नवरात्रि के आगमन होने से पहले ही तैयारियों में जुट जाते हैं।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शास्त्रों में नवरात्रि में हर तिथि का अपना महत्व होता है जिसमें 9 दिनों तक देवी की आराधना की जाती है और देवी को प्रसन्न करने के लिए हर तिथि पर अलग-अलग भोग अर्पित किया जाता है। माता को भोग अर्पित कर अपने जीवन से सारे कष्ट दूर किये जा सकते हैं।
जानिये नवरात्रि की हर तिथि…

1. प्रतिपदा तिथि- नवरात्रि का पहला दिन प्रतिपदा तिथि से आरम्भ होता है। इस दिन माता के पहले स्वरूप मां शैल पुत्री की आराधना की जाती है। प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री को शुद्ध देसी घी का भोग लगाएं। इससे रोगों से मुक्ति मिलती है।
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2. द्वितीया तिथि- इस दिन देवी के ब्रह्राचारिणी रूप की पूजा होती है। द्वितीया तिथि पर देवी को शक्कर और फल का भोग लगाकर दान करें इससे दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
3. तृतीया तिथि- इस तिथि पर देवी के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा होती है इस दिन दूध से बनी चीजों का भोग लगाने और उसका दान करने से मां प्रसन्न होती है सभी तरह के दुखों का नाश करती हैं।
4. चतुर्थी तिथि- नवरात्रि की इस तिथि पर देवी को मालपुए का भोग लगाना चाहिए और प्रसाद को ब्राह्राण को दान करें। इससे बुद्धि और कौशल का विकास होता है साथ ही निर्णय क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
5. पंचमी तिथि- यह तिथि मां स्कंदमाता को समर्पित होती है। इस दिन माता दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और दान करना चाहिए इससे बुद्धि का विकास होता है।

6. षष्ठी तिथि- माता को इस तिथि पर शहद का भोग लगाना चाहिए। इस तिथि पर मधु से पूजन का विशेष महत्व होता है। शहद के भोग से सुंदर काया का निर्माण होता है।
7. सप्तमी तिथि- इस तिथि पर भगवती को गुड़ का भोग लगाना चाहिए और उसका दिन ब्राह्राण को करना चाहिए ऐसा करने से व्यक्ति शोक मुक्त होता है।

8. अष्टमी तिथि- इस तिथि पर मां दुर्गा को नारियल का भोग लगाना चाहिए और इसका दान करना चाहिए। इससे हर तरह की पीड़ा का शमन होता है। ऐसा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
9. नवमी तिथि- नवमी तिथि पर माता को अलग- अलग तरह के अनाजों से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है और फिर उसे दान किया जाता है। इसे जीवन में सुख और समृद्धि आती है। साथ ही दशमी तिथि को काले तिल का भोग अर्पित कर देने से परलोक का भय नहीं रहता।
नौ देवी-नौ औषधियां…
मौसम में आ रहे परिवर्तन के चलते इस समय बहुत से कीटाणु भी पनपते हैं जो रोग फैलाते हैं ऐसे में पंडितों व आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार मां दुर्गा के यह नौ रूप 9 औषधियों में भी विराजते हैं, जो समस्त रोगों से बचाकर जगत का कल्याण करते हैं।
नवदुर्गा के नौ औषधि स्वरूपों को सबसे पहले मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया गया और चिकित्सा प्रणाली के इस रहस्य को ब्रह्माजी द्वारा उपदेश में दुर्गाकवच कहा गया है।

ऐसा माना जाता है कि यह औषधियां समस्त प्राणियों के रोगों को हरने वाली और और उनसे बचा रखने के लिए एक कवच का कार्य करती हैं, इसलिए इसे दुर्गाकवच कहा गया।
इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष तक आराम से जीवन जी सकता है। पंडित सुनील शर्मा व आयुर्वेद के डॉक्टर राजकुमार के अनुसार दिव्य गुणों वाली उन 9 औषधियों के बारे में जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है वह इस प्रकार हैं…

1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ – नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है।
इसमें हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।
पथया – जो हित करने वाली है।
कायस्थ – जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
अमृता – अमृत के समान।
हेमवती – हिमालय पर होने वाली।
चेतकी – चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
श्रेयसी (यशदाता) शिवा – कल्याण करने वाली।
2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी – ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीडित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।
3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर – नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।
4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा – नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है।
मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीडित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।
5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी – नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती व उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए।
6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया – नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका।
इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीडित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन – दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीडित व्यक्ति को करनी चाहिए।
8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी – नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है।
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
इस देवी की आराधना हर सामान्य व रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए।

9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी – नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है।

यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीडित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।

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