साइकिल चलाने के फायदे
कोरोना के बाद हम सभी की दिनचर्चा बदल चुकी है। पहले जहां लोग अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे, इस महामारी के बाद लोगों में जागरुकता आई। शहरवासियों ने खुद को फिट रखने के लिए साइकिल को अपने जीवन का हिस्सा बनाया। किसी ने बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए साइकिलिंग शुरू की तो किसी ने स्ट्रेस फ्री रहने के लिए। अब इन्हें साइकिल से इतना लगाव हो गया है कि वे साइकिल से ही ऑफिस जाते है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने बाहर के सभी काम साइकिल से ही पूरा करते हैं। उनका मानना है कि साइकिल पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती। वर्ल्ड साइकिल डे के मौके पर पत्रिका प्लस ऐसे ही लोगों को रू-ब-रू करा रहा है जिन्होंने साइकिल को अपना साथी बनाया।
चार साल पहले पापा को देख शुरू की थी साइकिलिंग
मैंने चार साल पहले पापा को देख फिटनेस के लिए साइकिलिंग शुरू की थी। धीरे-धीरे ये जीवन का हिस्सा बन गई। मैं और मेरे पति सर्वेश दोनों ही ऑफिस से लेकर बाजार के काम भी साइकिल से ही करते हैं। हम दोनों मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते हैं तो सीटिंग जॉब बहुत लंबा हो जाता है। ऐसे में खुद को फिट रखने के लिए साइकिलिंग एक बेस्ट ऑप्शन है। कोरोना काल में मैंने अपने कई साथियों को साइकिल चलाने के लिए मोटिवेट किया। आज वे सभी इससे जुड़े हुए हैं।
-रक्षिता सिंह, साइकिलिस्ट
मुझे इंटलएक्चुुअल डिसेबिलिटी है। तीन साल पहले पापा ने सुझाव दिया कि मुझे साइकिलिंग करने के लिए किसी ग्रुप से जुडऩा चाहिए। मैं यूथ हॉस्टल के साथ जुड़ गया और हर रविवार को ग्रुप के साथ जाने लगा। शुरुआत में ये काफी कठिन लगता था, लेकिन पापा के सपोर्ट से मैंने साइकिलिंग सीखी। वे भी मेरे साथ जाते थे। अब ग्रुप के साथ हर रविवार को 40 से 50 किलोमीटर साइकिलिंग करता हूं तो खुद में खुशी महसूस करता हूं। ग्रुप मेंबर्स भी मेरा उत्साह बढ़ाते हैं। अब इससे जुड़ा कोई इवेंट होता है तो भी उसमें पार्टिसिपेट करता हूं। साइकिल से बढ़कर अब ये मेरी दोस्त है।
-सुमंत काले, साइकिलिस्ट
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मैं बिजली कंपनी से सेवानिवृत्त हुआ हूं। मैंने तीन साल पहले अपना वजन कम करने के लिए साइकिलिंग शुरू की थी। उस समय मेरा वजन बढ़कर करीब 92 किलोग्राम हो गया था। साइकिलिंग कर मैंने इसे 72 किलोग्राम किया। इसके बाद खुद को फिट रखने के लिए प्रतिदिन साइकिलिंग करने लगा। अभी प्रतिदिन 30 से 40 किलोमीटर और रविवार को 60 से 100 किलोमीटर साइकिल चलाता हूं। अब यह मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी है। बाजार या बेटे के स्कूल भी जाना होता है तो इसी से जाता हूं।
-मानव अग्निहोत्री, साइकिलिस्ट