इसमें नमामि देवी नर्मदे नर्मदा अष्टक श्लोक के माध्यम से शास्त्रीय गान सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। वही तेरी जय जय करतार, मोरी भर दे आज जोरिया भी सुनाया । कार्यक्रम की प्रस्तुति राग मारवा, राग सोनी और राग बुहार के माध्यम से दी गई। इसमें तबले पर अख्तर हसन और हारमोनियम पर जाकिर ढोलपुरी ने संगत दी।
विशेष चर्चा में शास्त्रीय संगीत गायिका रामा रंगनाथन ने बताया शास्त्रीय संगीत सीखना बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें साधना करते-करते कई साल लग जाते हैं, जब जाकर कलाकार अपना उम्दा प्रदर्शन किसी स्टेज पर कर पाता है। आज स्वरूप बदला है। बच्चे टीवी पर मनोरंजन देखकर 1 से 2 साल में ही संगीत सीखना चाहते हैं जो की शास्त्रीय संगीत की तुलना में अलग है। कुछ ही ऐसे कलाकार और लोग होते हैं जिन्हें गॉड गिफ्ट होता है, वही कम समय में बड़े कलाकार बन जाते हैं ।
सितार, बांसुरी वादन का ऐसी हुई जगलबंदी कि मंत्रमुग्ध हो गए सभी
किला परिसर के अंदर हुई दूसरी प्रस्तुति में सितार वादक उमाशंकर और बांसुरी वादक किरण कुमार के साथ तबले पर सिद्धार्थ चटर्जी ने एक से बढकऱ एक राग छेड़े। स्वरों के इस संगम ने प्राचीन संगीत की यादें ताजा कर दी। सितार और बांसुरी दोनों की एक साथ हुई प्रस्तुति में वाघ श्री राग के जरिए ताल रूपक और तीन ताल द्वारा संगीत सुनाया गया।
तट पर सूरों के तालमेल ने खूब बंटोरी दाद
सितार वादक उमाशंकर और बांसुरी वादक किरण कुमार ने बताया कि दोनों वाद्ययंत्र अलग है, लेकिन इन्हें सुनने का मजा ही कुछ और है। शुरुआत अलग हुई लेकिन एक ही राग से प्रस्तुति समाप्त हुई। शास्त्रीय संगीत प्राचीन है, जो कभी भी सुनेंगे तो वैसे का वैसा ही रहेगा। सितार तानसेन के समय का है। बांसुरी भगवान कृष्ण का वाद्य है। इसे भारत में ज्यादा पसंद किया जाता है। तट पर सूरों के इस ताममेल ने श्रोताओं की खूब दाद बंटोरी।