यह था सवाल
दरअसल डॉ. राजेश जैन ने सुधासागरजी महाराज से प्रश्न पूछा था कि भोपाल में एक महावीर मेडिकल कॉलेज था, जो आपके आशीर्वाद से और आचार्य श्री के आशीर्वाद से बना था। उसमें नियम और बायलॉज के अनुसार हमें अधिकार भी हैं, लेकिन पिछले दो साल से हम किन्हीं कारणों से वहां नहीं जा रहे थे, हमें ये बताएं कि हमारे अधिकारों का उपयोग हम किस तरह से करें और हमें क्या करना चाहिए या ऐसी चीजें बताएं कि जिन्हें करने से महावीर मेडिकल कॉलेज अच्छी तरह से चल सके
आपको बता दें कि मध्यप्रदेश के महावीर मेडिकल कॉलेज को लेकर आए दिन विवाद सामने आता रहता है। इस कॉलेज को संचालिक करने वाली सोसायटी तक विवादों में आ चुकी है। पूरी सोसाइटी दो हिस्सों में बंट गई है और कॉलेज के मालिकाना हक को लेकर भी लड़ाई छिड़ गई थी। खास बात यह है कि इस सोसाइटी के अध्यक्ष के तौर पर भाजपा नेता और पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया काबिज हैं। इस कॉलेज की स्थापना आचार्य विद्यासागर जी महाराज के प्रयासों से हुई थी। कोशिश थी कि जैन समाज के सहयोग से एक बेहतर मेडिकल कॉलेज भोपाल शहर में शुरू हो, लेकिन सोसाइटी भी विवादों में आ गई है। जांच बैठी, नौबत यहां तक आ गई कि इसकी मान्यता ही रद्द करने की बात की जाने लगी। ऐसे में अब इस कॉलेज को फिर से सुचारू रूप से संचालित करने के लिए डॉ. राजेश जैन प.पू. सुधासागरजी महाराज से मार्गदर्शन लेने पहुंचे।
प.पू. सुधासागरजी महाराज ने दिया यह जवाब
करगुवां झांसी में 11 जून 2023 रविवार को भोपाल स्थित महावीर मेडिकल कालेज के परिप्रेक्ष्य में डॉ. राजेश जैन द्वारा पूछे गए सवाल पर प.पू. सुधासागरजी महाराज ने संस्था के सदस्यों के अधिकार एवं कर्तव्यों पर आवश्यक दिशा-निर्देश एवं मार्गदर्शन करते हुए कहा कि…
– इकोनॉमिक्स का सिद्धांत है उपयोगिता हरास
– जिस वस्तु या अधिकार का हम उपयोग न करें तो अधिकार खत्म हो जाता है।
– जैसे किसी मकान पर किसी ने बहुत दिनों तक अपना अधिकार रखा तो कानून भी उसके पक्ष में हो जाता है। इसलिए जब किसी चीज पर अधिकार है, तो अधिकार के बाद आता है कर्तव्य, तो उसे निभाने के लिए अपना कत्र्तव्य न भूलें। जो व्यक्ति अधिकार पाने के बाद अधिकार का कत्र्तव्य नहीं निभाता है, वह व्यक्ति बहुत बड़ा दोष का भागीदार होता है। इसलिए यदि कर्तव्य नहीं निभा पा रहे हैं, तो आप या फिर अधिकार को छोड़ दें। हम हमेशा लोगों से कहते हैं कि किसी पर किसी पद पर बैठकर कार्य नहीं करना बहुत बड़ा दोष है। या तो पद को छोड़ दो, या फिर उस पर बैठे हो, तो जनता ने या दुनिया ने जिस उम्मीद से आपको पद पर बैठाला है, उस कार्य को करना ही चाहिए।
हम जैनियों से भी कहते हैं तुम्हें जिनेंद्र भगवान पर अभिषेक करने का अधिकार है, किसी से पूछने की जरूरत नहीं। और जो अधिकार का प्रयोग नहीं करता है, तो कर्म उसे कहता है अगले जन्म में तुझे ऐसी जाति में पैदा करेंगे, जहां भगवान का अभिषेक करने का अधिकार ही नहीं होगा।
ये उदाहरण हर क्षेत्र में लगाना, किसी कमेटी में, संस्था में तो आपके अधिकार खत्म कर दिए जाएंगे। आप उस अधिकार के योग्य नहीं रह जाएंगे। आपको अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। क्योंकि जब अधिकार मिला तो आपने उन अधिकारों का उपयोग नहीं किया।