मध्यप्रदेश में भी संविदा कल्चर खत्म करने की मांग उठने लगी है। हाल ही में उड़ीसा सरकार ने अपने 57 हजार संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही पंजाब सरकार ने भी 8672 संविदा कर्मचारियों का अलग ही कैडर बनाकर परमानेंट कर दिया है। मध्यप्रदेश में भी हजारों संविदा कर्मचारी ऐसे हैं जो अलग-अलग विभागों में कार्यरत हैं।
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संविदा कर्मचारियों के प्रतिनिधि मंडल ने सरकार से नियमितीकरण की मांग की है। इस सिलसिले में मप्र संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ का एक प्रतिनिधि मंडल कर्मचारी कल्याण समिति के चेयरमैन रमेश चंद्र शर्मा से भी मिला। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर के नेतृत्व में उन्हें ज्ञापन सौंपकर संविदा कल्चर खत्म करने की मांग की। महासंघ के सदस्यों उन्हें बताया कि हिमाचल प्रदेश की सरकार भी पांच साल तक संविदा कर्मचारियों को हर साल नियमित कर देती है। हरियाणा सरकार ने भी संविदा कर्मचारियों को नियमित किए जाने का आज से 5 साल पहले निर्णय लिया था, लेकिन मध्य प्रदेश के सरकारी विभागों में संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को अभी तक नियमित नहीं किया गया।
कर्मचारियों ने बताया कि मध्यप्रदेश शासन ने 5 जून 2018 को संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के अवसर उपलब्ध कराने के लिए सभी विभागों को निर्देश जारी किए थे। जितने भी संविदा कर्मचारी काम कर रहे हैं उन संविदा के पदों पर कर्मचारियों को नियमित पदों में परिवर्तित करते हुए विभागीय सैटअप में बदलाव किया जाना चाहिए, लेकिन विभागीय का विषय है कि अभी तक किसी भी विभाग ने संविदा कर्मचारियों को नियमित नहीं किया है।
पंजाब और उड़ीसा में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के बाद मध्य प्रदेश के संविदा कर्मचारियों ने म.प्र. संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के रमेश राठौर के नेतृत्व में बैठक कर आंदोलन की रणनीति बनाई और आंदोलन से कर्मचारी कल्याण समिति के चेयरमैन रमेश चंद्र शर्मा से मुलाकात कर उन्हें पंजाब, हरियाणा, उड़ीसा और हिमाचल प्रदेश में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के फैसले से अवगत कराया। कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि हाल ही में विभिन्न विभागों ने सीधी भर्ती के लिए पीईबी के माध्यम से विज्ञापन निकाला है, लेकिन उसमें 5 जून 2018 की संविदा नीति के अनुसार 20 प्रतिशत पदों का आरक्षण नहीं किया गया। इसी प्रकार विधानसभा में निकाली गई भर्तियों में भी 20% पदों का आरक्षण नहीं किया गया।