भोपाल

खाटूश्यामजी पहुंचे मध्यप्रदेश के कांग्रेस विधायक, जानें यहां क्यों कहते हैं – हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा

– बाबा श्याम की महिमा और कथा

भोपालMar 13, 2020 / 02:08 pm

दीपेश तिवारी

भोपाल। मध्यप्रदेश में शुरू हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बीच पिछले दिनों कांग्रेस Madhya Pradesh Kamalnath Government की ओर से अपने विधायक राजस्थान भेज दिए गए। वहीं मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेताओं के सदन में बहुमत सिद्ध कर लेने के दावों के बीच शुक्रवार को ये विधायक खाटू श्याम मंदिर (हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा – Shree Khatu Shyam Jee ) पहुंचे।
विधायक इसके लिए सुबह ही दिल्ली रोड स्थित रिसोर्ट से रवाना हो गए थे। करीब 11.30 बजे वह खाटूश्यामजी Khatushyamji पहुंचे। यहां पहुंचते ही वह पहले एक होटल में रुके। जहां कुछ देर ठहरने के बाद वह खाटूश्यामजी के मंदिर पहुंचे। मंदिर में दर्शनों के बाद वह सीधे बस में बैठकर रवाना हो गए।

खाटूश्यामजी Khatushyamji : हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा…
राजस्थान के सीकर में स्थित खाटूश्यामजी में स्थित बाबा श्याम baba shyam का देश में इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान के केवल शीश की पूजा की जाती है। लोगों का विश्वास है कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूर्ण करते है और रंक को भी राजा बना सकते है। इस मंदिर से भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। यहां हमेशा भक्तों द्वारा ‘हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा’ का जयकारा लगाया जाता है।
इस जयकाके पीछे जो कारण बताया जाता है कि बाबा श्याम हमेशा ही उन लोगों का साथ देते हैं, जो हार जाते हैं। इसका सीधा सा जुड़ाव महाभारत कथा से है, जिसमें कहा जाता है कि घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हमेशा ही कमजोरों का साथ देते थे, और कहा जाता है कि वे महाभारत में भी हार के बाद कौरवों का साथ दे सकते थे, इसी कारण श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से ब्राह्मण भेष धारण उसका सिर ले लिया था।
वहीं महाभारत युद्ध के बाद श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक के शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित वर्तमान खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं।

एक बार खाटू नगर के राजा को सपने में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए कहा। इस दौरान उन्होंने खाटू धाम में मन्दिर का निर्माण कर कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया। वहीं मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, तब से आज तक मंदिर की चमक यथावत है। मंदिर की मान्यता बाबा के अनेक मंदिरो में सर्वाधिक रही है।
ऐसे हुआ था बर्बरीक का जन्म…
बाबा श्याम का इतिहास महाभारत काल की एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। महाभारत काल के दौरान पांडवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ था। उनके घटोत्कच नाम का एक पुत्र हुआ था।
पांडवों के राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंककटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ और बर्बरीक को भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त था। जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा से कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया।
वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। इस दौरान मार्ग में बर्बरीक की मुलाकात भगवान श्री कृष्ण से हुई। ब्राह्मण भेष धारण श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में शामिल होने आए हैं।

इस दौरान कृष्ण ने परीक्षा लेने के लिए बर्बरीक को एक पेड़ के पत्तों पर छिद्र करने को कहा और कुछ पत्ते अपने पैर के नीचे छिपा लिये, लेकिन बर्बरीक द्वारा छोड़े गए एक तीर से न केवल पूरे पेड़ के पत्तों में वरन श्रीकृष्ण के चरणों के नीचे स्थित पत्तों में तक छेद हो गए थे।
वहीं बर्बरीक के बारे में एक खास बात ये भी थी कि वे सदैव हारे का ही साथ देते थे, इसके चलते श्रीकृष्ण दुविधा में पड़ गए और उन्होंने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया, तब तक बर्बरीक भी श्रीकृष्ण को पहचान गए थे। तो उन्होंने महाभारत युद्ध को देखने की इच्छा श्रीकृष्ण से रखी, जिस पर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शिश को एक पहाड़ी पर रख दिया ताकि वे पूरा युद्ध देख सकें। वहीं कहा जाता है कि युद्ध के समय जब दोनों तरफ से सेनाएं आती थीं, तो बर्बरीक के हंसने पर सारे योद्धा वापस भाग जाते थे।
इसके अलावा महाभारत युद्ध के बाद जब श्रीकृष्ण पांडवों के साथ बर्बरीक के शीश के पास आए तो उनसे पूछने पर उन्होंनें बताया कि मुझे तो हर ओर पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण ही युद्ध करते दिखाई दिए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने ही बर्बरीक को ये वरदान दिया था कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी।
अब सालासर के लिए होंगे रवाना
कांग्रेस विधायक अभी खाटूश्यामजी ही है। वह यहां लंच के बाद वह सालासर बालाजी के दर्शनों के लिए रवाना होंगे। इससे पहले खाटूश्यामजी दर्शनों के लिए वह कड़ी सुरक्षा में पहुंचे थे। जहां बाबा श्याम के जयकारे लगाते हुए सभी विधायकों ने श्याम सरकार के दर्शन किए।

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