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राजीव गांधी का वो दोस्त जिसे मुख्यमंत्री बनना था पर बन नहीं पाया, लोकप्रियता ऐसी थी की कोई हारा नहीं सका

माधवराव सिंधिया और राजीव गांधी के बीच गहरी दोस्ती थी।

भोपालSep 30, 2019 / 03:25 pm

Pawan Tiwari

राजीव गांधी का वो दोस्त जिसे मुख्यमंत्री बनना था पर बन नहीं पाया, लोकप्रियता ऐसी थी की कोई हारा नहीं सका

राजीव गांधी का वो दोस्त जिसे मुख्यमंत्री बनना था पर बन नहीं पाया, लोकप्रियता ऐसी थी की कोई हारा नहीं सका


भोपाल. कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे आज भी याद किए जाते हैं। आज माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि है। माधवराव सिंधिया पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दोस्त थे। माधवराव सिंधिया को दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला लेकिन वो दोनों ही बार मध्यप्रदेश के सीएम नहीं बन सके। वहीं, माधव राव सिंधिया की लोकप्रियता ऐसी थी कि थी कि कोई राजनेता माधवराव सिंधिया को चुनाव नहीं हारा सका।
दो बार सीएम बनते-बनते रह गए
माधव राव सिंधिया दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे। यह किस्सा उस समय का है जब 1989 में चुरहट लाटरी कांड हुआ था। उस समय अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे और चुरहट अर्जुन सिंह का ही निर्वाचन क्षेत्र था। उस समय अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ गया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा थी कि सिंधिया मुख्यमंत्री बन जाए। लेकिन, अर्जुन सिंह भी राजनीति के माहिर थे। वे इस्तीफा नहीं देने पर अड़ गए। यह भी बताया जाता है कि आखिरी दौर में जब माधवराव भोपाल आ गए और सीएम बनने का इंतजार कर रहे थे, तो विवादों के बीच एक ऐसा समझौता हुआ, जिसके बाद मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस वाकये के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी अर्जुन सिंह से बेहद खफा हो गए थे। इसके बाद अर्जुन के धुर विरोधी माने जाने वाले श्यामाचरण शुक्ल को पार्टी में लाया गया और मोतीलाल वोरा के बाद शुक्ल को सीएम बनाया गया। इसके बाद अर्जुन सिंह ने भी मध्यप्रदेश की राजनीति से किनारा कर लिया और केंद्र में चले गए।
दिग्विजय के बन गए सीएम
माधवराव सिंधिया को दूसरा मौका तब मिला जब 1993 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। महाराजा सिंधिया और राघोगढ़ राजघराने से ताल्लुक रखने वाले दिग्विजय सिंह में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण कभी पटरी नहीं बैठी। 1993 की बात है जब दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने उस दौर में सिंधिया का नाम भी शीर्ष पर आ गया था, लेकिन रातो रात पांसे पलट गए और अर्जुन सिंह गुट ने दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। उस समय दिग्विजय सिंह के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह माने जाते थे। सिंधिया दूसरी बार भी सीएम बनने से चूक गए थे।
कभी चुनाव नहीं हारे माधव राव सिंधिया
माधव राव सिंधिया कभी कोई चुनाव नहीं हारे। 1971 के चुनाव में जब देश में चारों तरफ इंदिरा गांधी की लहर थी तब 26 साल की उम्र में गुना संसदीय सीट से पहली बार चुनाव जीत कर माधव राव सिंधिया संसद पहुंचे थे। माधव राव सिंधिया को कोई भी राजनेता चुनाव नहीं हारा सका। माधव राव सिंधिया ने 1984 में अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव हराया था।
राजीव गांधी से थी गहरी दोस्ती
माधव राव सिंधिया और भूतपूर्व पीएम राजीव गांधी गहरे दोस्त थे। इससे पहले उनकी दादी भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी और माधव राव सिंधिया की मां विजया राजे सिंधिया में भी गहरी दोस्ती थी लेकिन बाद में चलकर इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया था। दोनों नेताओं के बीच दुश्मनी इस कदर हावी हो गई थी कि विजयाराजे सिंधिया इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मध्यप्रदेश छोड़कर रायबरेली चली गईं थी। हालांकि इस चुनाव में विजयाराजे सिंधिया की हार हुई थी।

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