ऐसे काम करेगी आधुनिक तकनीक
गिद्धों की ब्रीडिंग सफल बनाने के लिए ये तकनीक इस्तेमाल की जा रही है। इसके लिए जो भी अंडा बने, वो नष्ट हो और चुजे बन सके, इसके लिए आर्टिफिशियल तरीके से उन्हें सेया जाएगा। दरअसल इन्हें गर्म माहौल चाहिए होता है जबकि अंडे अक्टूबर-नवंबर में होते हैं। इस कारण कृत्रिम मशीनों की मदद से उन्हें गर्म माहौल दिया जाएगा। जिस तरह पक्षी अपने अंडें पलटते रहते हैं, उसी तरह मशीन में भी किया जाएगा। 55 दिनों तक उपकरण में अंडें रखने के बाद उनमें से चूजे निकलते हैं।
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2 प्रजाति के 60 गिद्ध हैं राजधानी में
वन विहार के केरवा में स्थित गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र में अभी 60 गिद्ध हैं। इसमें अभी दो प्रकार की प्रजाति है। लॉग बिल्ड प्रजाति के 39 गिद्ध है और 21 व्हाइट बेक्ड प्रजाति के गिद्ध है। जबकि प्रदेश में 2021 की गणना के अनुसार 9,408 गिद्ध हैं। वहीं देश में पिछले तीन दशक में गिद्धों की संख्या चार करोड़ से घटकर चार लाख से भी कम रह गई है।
वन विहार नेशनल पार्क है देश का चौथा इंक्यूबेशन सेंटर
भोपाल का वन विहार देश का चौथा इंक्यूबेशन सेंटर है जहां आधुनिक उपकरणों से गिद्धों की आबादी बढ़ाए जाने की कवायद होगी। इससे पहले ये कैंद्र हरियाणा के पिंजोर, पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व के राजाभटखवा और ओडिशा के नंदन कानन जूलाजिकल पार्क में हैं। देश में आठ गिद्ध प्रजनन केंद्रों हैं जहां अभी चार में ही इंक्यूबेशन सेंटर की शुरूआत हुई है।
तैयारियां पूरी
वन विहार नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर सुनील कुमार सिन्हा का कहना है कि, इंक्यूबेशन सेंटर में तैयारियां पूरी हो चुकी है। इनका परीक्षण भी कर लिया गया है। जैसे ही गिद्ध अंडें देंगे, उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा। इस प्रयास से गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।