बुंदेलखंड में शूट हुई ‘मास्साब’ की कहानी एक ऐसे शिक्षक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक गांव के सरकारी स्कूल को मॉडल स्कूल में तब्दील कर देता है। ये फिल्म उच्च आदर्शों वाले एक ऐसे नायक का खाका बुनती चली जाती है, जिसके लिए शिक्षा कमाई का जरिया नहीं बल्कि अंधेरा दूर करने का माध्यम है। देखते ही देखते स्कूल की चर्चा आस-पास के इलाकों में शुरू हो जाती है। फिल्म उस वक़्त मोड़ लेती है जब अपनी मेहनत से स्कूल की शक्ल बदल कर रख देने वाले शिक्षक को एक प्राइवेट स्कूल में आकर पढ़ाने का ऑफर मिलता है। शिक्षक इस ऑफर को ठुकरा देता है।
फिल्म प्राइमरी एजुकेशन पर बात करती है और संभवतः ऐसी पहली फिल्म है जो पूरी तरह से प्राइमरी एजुकेशन के इर्द-गिर्द ही घूमती है। फिल्म के जरिये उन सवालों को उठाने की कोशिश की गई है जो प्राइवेट स्कूलों के दौर में धीरे-धीरे भारत की मुख्य राजनीति से भी गायब होते जा रहे हैं। फिल्म में स्थानीय कलाकारों ने भी काम किया है। पूरी फिल्म बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में ही शूट की गई है, लिहाजा कलाकारों के संवाद में भी बुंदेलखंडी का मिश्रण नजर आता है।
आदित्य ओम तेलुगू सिनेमा में जाना पहचाना नाम है। 2002 में आई फिल्म ‘लाहिरी लाहिरी लाहिरिलो’ के जरिए आदित्य को तेलुगु सिनेमा में पहचान मिली। तेलुगु फिल्मों के मशहूर डायरेक्टर वाईवीएस चौधरी ने आदित्य को तेलुगु सिनेमा में इंट्रोड्यूज किया और इसके बाद उन्होंने तकरीबन 2 दर्जन फिल्मों में अभिनय किया। आदित्य ‘दोजख’ और ‘अलिफ़’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी अभिनय करते नजर आए हैं।
आदित्य इस फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं। मास्साब को लेकर आदित्य का कहना है कि आज की डेट में मीनिंगफुल सिनेमा बनाना फिल्ममेकर्स के लिए आसान नहीं रह गया है। इस तरह के सब्जेक्ट्स के साथ बिना बड़ी स्टारकास्ट के प्रोड्यूसर्स को अप्रोच करना भी मुश्किल है। प्रोड्यूसर्स इस तरह के सब्जेक्ट्स के बजाय साधारण कमर्शियल फिल्म पर पैसा लगाना ज्यादा पसंद करते हैं। लिहाजा ऐसे में मीनिंगफुल सिनेमा बनाने के लिए किसी भी क्रिएटिव फिल्ममेकर के पास एक ही उपाय रह जाता है कि वो खुद की सेविंग्स से ही अपने मन के सब्जेक्ट्स पर काम करे। फिल्ममेकिंग को महंगा बताते हुए वो कहते हैं कि आज फिल्म निर्माण से ज्यादा पैसा पब्लिसिटी और स्टार प्राइज पर खर्च करना पड़ता है, जिसमें कई दफा पटकथा से भी समझौता करना पड़ता है।