गुरुवार को लिया था संथारा…
तरुण सागर जी पिछले कुछ समय से पीलिया की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। अपनी बीमारी में सुधार न होने की वजह से उन्होंने गुरुवार को संथारा ले लिया था। वे 51 वर्ष के थे।
इससे पहले योगगुरु बाबा रामदेव ने उनके इलाज के लिए पतंजली योगपीठ से उनको औषधियां भेजी थी और सर गंगाराम हॉस्पीटल के डॉक्टरों ने भी उनके बेहतर ईलाज की पेशकश की थी, लेकिन अपनी गिरती सेहत को देखते हुए उन्होने मोक्षमार्ग के अनुसरण का फैसला किया और दो दिन पहले संथारा लेने के बाद आज उनका देवलोकगमन हो गया।
14 साल की उम्र में सन्यास मार्ग…
जैन मुनि तरुणसागरजी का जन्म 26 जून 1967 को मध्य प्रदेश में दमोह जिले के गांव गहजी में हुआ था। उनके माता-पिता का नाम प्रताप चन्द्र जैन और शांतिदेवी जैन था, वहीं महाराज श्री के जन्म का नाम पवन कुमार जैन था। और सिर्फ 14 साल की उम्र में 8 मार्च 1981 को वह सन्यास मार्ग की ओर अग्रसर हो गए।
छत्तीसगढ़ में हुई थी शुल्लक दीक्षा…
महाराज श्री की शुल्लक दीक्षा अकलतरा छत्तीसगढ़ में हुई थी। उनकी मुनि दीक्षा 1988 में राजस्थान के बागीदौरा में हुई थी। उनके गुरु पुष्पदंत सागर जी हैं। अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज के कड़वे सच से रूबरू करवाने वाले संत तरुणसागरजी महाराज को क्रांतिकारी संत की उपाधि मिली हुई थी।
वहीं 6 फरवरी 2002 को मध्य प्रदेश शासन ने इनको राजकीय अतिथि’ का दर्जा दिया था। वहीं 2003 में इंदौर में इन्हें राष्ट्रसंत की उपाधि दी गई था। गुजरात सरकार ने भी इनको 2 मार्च 2003 को ‘राजकीय अतिथि’ का दर्जा दिया था।
RSS ने बदल थी अपनी ड्रेस rss uniform connection with tarun sagar:
क्या आप जानते हैं कि उनकी वजह से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को अपनी गणवेश (ड्रेस) में बदलाव करना पड़ा था। जानकारी के अनुसार साल 2011 में उन्हें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने विजयदशमी के कार्यक्रम में बुलाया था। उस दौरान ही उन्होंने एक ऐसा प्रवचन दिया था, जिसके बाद आरएसएस की ड्रेस में बदलाव हुआ।
इस दौरान उन्होंने कहा था कि स्वंयसेवक जिस चमड़े की बेल्ट का इस्तेमाल करते हैं वह अहिंसा के विपरीत है। इसके बाद आरएसएस ने अपनी ड्रेस से चमड़े की बेल्ट की जगह कैनवस की बेल्ट इस्तेमाल करनी शुरू कर दी।
समाज को सुधारने का संदेश…
समाज की कुरीतियों पर कटाक्ष करते हुए संत तरुण सागर जी महाराज ने लोगों से उनका परित्याग कर एक नए भारतवर्ष के निर्माण की अपील की थी। उनके प्रवचन गूढ़ रहस्यों के साथ समाज को सुधारने का संदेश देते हैं।
बातचीत बंद मत करो…
वे अपने प्रवचनों में हमेशा कहते थे कि लड़ाई- झगड़े में भले कुछ भी कर लो, लेकिन बातचीत बंद मत करो, क्योंकि वार्तालाप बंद करने से सुलह के सारे रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं।
घर में बेटी नहीं तो चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं…
कन्याभ्रूण हत्या पर उन्होंने बड़ी बेबाकी से बोलते हुए कहा था कि जिस घर में बेटी न हो उसको चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। उस घर में शादी नहीं करनी चाहिए और संतों को उस घर से दीक्षा नहीं लेनी चाहिए। राजनीति में भगवाकरण के आरोप पर उन्होंने कहा था कि भगवाकरण एक शुद्धीकरण की प्रक्रिया है।