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भोपाल

सदियों पुरानी ॐ वैली में ही था कभी इंजीनियरिंग का बडा वर्कशॉप!

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और भोजपुर के छिपे कई प्राचीन रहस्य अब सबके सामने आ रहे हैं। यहां बना ऐतिहासिक भोजपुर मंदिर सिर्फ अस्था का केंद्र नहीं बल्कि हजार साल पुरानी इंजीनियरिंग की बड़ी कार्यशाला है।

भोपालJul 17, 2017 / 01:40 pm

दीपेश तिवारी

bhopal on swastik

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भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 40 किमी दूर स्थित ऐतिहासिक भोजपुर मंदिर के बारे में तो आपने सुना होगा। लेकिन अब ये मंदिर केवल पूजा पाठ के लिए ही नहीं वैज्ञानिक महत्व व इंजीनियरिंग वर्कशॉप के लिए भी जाना जाएगा। 

जी हां, भोजपुर और मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के छिपे कई प्राचीन रहस्य अब सबके सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो यहां हजारों साल पुरानी एक ओमवैली है। मॉनसून के समय ये ओमवैली पूरी तरह से सामने आ जाती है। 

वहीं मौसम विभाग के अनुसार जब भोपाल आया मानसून को तरबतर कर देता है, तो इस ओम वैली का आकार पूरी तरह से निकल कर सामने आ जाता है। यहां पर मौजूद हरियाली के बढ़ने और जलाशय भरने के बाद ओमवैली की तस्वीरें पूरी तरह से साफ नजर आती हैं। जिसकी सैटेलाइट तस्वीरों में इस बात की पुष्टि भी होती है।


वहीं इसकी दूसरी तरफ यह भी माना जा रहा है कि भोजपुर में बना भगवान शिव का मंदिर सिर्फ अस्था का केंद्र नहीं बल्कि हजार साल पुरानी इंजीनियरिंग की बड़ी कार्यशाला है।

पत्थरों पर बने मंदिर के डिजायन, पत्थरों को काटने की तकनीक और निश्चित एंगल पर बनाई गई रैंप इसका नायाब उदाहरण है। राजा भोज के समय में बना सम्रांगण सूत्रधार ( मास्टर प्लान) भी इसकी पुष्टि करता है कि हजार साल पहले के निर्माण भी तकनीक के आधार पर किए गए हैं।





पत्थरों से बनी है मंदिर की डिजाइन…
पुरातत्व विभाग द्वारा पाइप लगाकर संरक्षित किए गए पत्थरों में मंदिर के अंदर लगे स्तंभ, मंदिर के क्षत्र से लेकर बाह्य डिजायन के चित्र बने हैं। अपूर्ण मंदिर को पूरा करने के लिए मंदिर के ऊपर बनने वाले गुंबद, कलश एवं सिंह के चित्र भी पत्थरों पर निर्मित हैं।


engineering witnesses

यह है इंजीनियरिंग के गवाह
पत्थरों पर डिजायनः मंदिर के स्तंभ, क्षेत्र के अंदर बाहर डिजाइन।
पत्थर काटने के निशानः यहां पहाड़ पर कई पत्थरों में छोटे-छोटे गड्ढे एक कतार में बने है।
जलधारा की फैक्ट्रीः भोजपुर से डेढ़ किमी पहले ग्राम मेदुआ में पहाड़ों पर दर्जनों जलधाराएं कटी हुई हैं।
ऊंचाई के हिसाब से रैंप का कोणः मंदिर के पीछे रैंपनुमा एक पहाड़ी है। यहीं से पत्थर लगते जाते थे और कोण बदलता जाता था।

मेदुआ में जलधारा बनाने की फैक्ट्रीः भोजपुर से डेढ़ किमी पहले ग्राम मेदुआ के निकट पहाड़ों पर दर्जनों की संख्या में जलधाराएं (शिवलिंग लगाने का आधार) पत्थरों पर कटी पड़ी हैं। ये जलधाराएं बताती हैं कि इनका यहीं पर निर्माण किया जाता था, केवल शिवलिंग स्थापित किए जाने का स्थान छोड़ा जाता था, ताकि लोग अपनी हैसियत के हिसाब से शिवलिंग स्थापित कर सकें।


bhojpur temple

मंदिर पीछे बना है रैंपः मंदिर के पीछे ही रैंपनुमा एक पहाड़ी है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार इस रैंपनुमा पहाड़ी से ही पत्थरों को मंदिर पर हाथी और अन्य जानवरों की मदद से ले जाता था।

यह कहते हैं विशेषज्ञ
भोजपुर के शिवमंदिर का परिसर और पहाड़ी क्षेत्र मंदिर निर्माण की इंजीनियरिंग का भी शानदार उदाहरण है। पत्थर काटकर मंदिर में लगाया जाता था। उसके भी अवशेष यहां हैं।
– नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्विद

ऐसा कहा जाता है कि पांडवों की माता कुंती शिवभक्त थी इसलिए पांडवों ने इसका निर्माण किया था।
– सुरेंद्र गिर गोस्वामी, मुख्य पुजारी शिव मंदिर





ओमवैली को ऐसे समझें …
इस ओम के मध्य में स्थित है प्राचीन भोजपुर मंदिर, और इसके सिरे पर बसा है भोपाल शहर। आपको ये भी बता दें कि भूगोल विज्ञानियों का ये मानना है कि भोपाल शहर स्वास्तिक के आकार में बसाया था। 

मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिक ठीक उसी वक्त ओम वैली का ग्राउंड डाटा लेते हैं, जिस वक्त सैटेलाइट रिसोर्स सेट – 2 भोपाल शहर के ऊपर से गुजरता है। इस दौरान भोपाल, भोजपुर और ओमवैली की संरचना से जुड़ा हुआ डाटा लिया जाता है। परिषद के मुताबिक हर 24 दिनों के अंतराल पर ये सेटेलाइट भोपाल शहर के ऊपर से गुजरता है। इस सैटेलाइट के जरिए गेहूं की खेती वाली जमीन की तस्वीरें ली जाती हैं। 



सैटेलाइट तस्वीरों में दिखाई दे रहा ये बड़ा सा ओम दरअसल सदियों पुरानी ओम वैली है। आसमान से दिखाई देने वाली ॐ वैली के ठीक मध्य में 1000 वर्ष प्राचीन भोजपुर का शिवमंदिर स्थापित है। मध्यप्रदेश में ओमकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के पास भी ऐसी ही प्राकृतिक ओमवैली दूर आसमान से दिखाई देती है। वैज्ञानिकों की नजर में यह ओम वैली है। इसके सैटेलाइट डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन का काम मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद को मिला है।

परिषद के वैज्ञानिक डॉ. जीडी बैरागी ने बताया, डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन के लिए हमें ठीक उस वक्त ओम वैली का ग्राउंड डाटा लेना होता है, जिस समय सैटेलाइट (रिसोर्स सेट-2) शहर के ऊपर से गुजरे। यह सैटेलाइट 24 दिनों के अंतराल पर भोपाल के ऊपर से गुजरता है। इससे गेहूं की खेती वाली जमीन की तस्वीरें ली जाती हैं।



परिषद की ताजा सैटेलाइट इमेज से ‘ॐ’ वैली के आसपास पुराने भोपाल की बसाहट और एकदम केंद्र में भोजपुर के मंदिर की स्थिति स्पष्ट हुई है। पुरातत्वविदों के पास राजा भोज की विद्वता के तर्क हैं। उनके मुताबिक लगभग 1000 साल पहले ही भोपाल को एक स्मार्ट सिटी बनाने के लिए इसे ज्यामितीय तरीके से बसाया गया था, इसे बसाने में राजा भोज की विद्वता से ही सारी चीजें संभव हो पाईं थीं।


lord shiv

स्वास्तिक के आकार में बसा है भोपाल
इतिहासकारों का मानना है कि भोज एक राजा ही नहीं कई विषयों के विद्वान थे। भाषा, नाटक, वास्तु, व्याकरण समेत अनेक विषयों पर 60 से अधिक किताबें लिखी। वास्तु पर लिखी समरांगण सूत्रधार के आधार पर ही भोपाल शहर बसाया गया था। गूगल मैप से वह डिजाइन आज भी वैसा ही देखा जा सकता है।


भोज के समय ग्राउंड मैपिंग कैसे हुई यह रिसर्च का विषय
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के आर्कियोलॉजिस्ट्स का मानना है कि ओम की संरचना और शिव मंदिर का रिश्ता पुराना है। देश में जहां कहीं भी शिव मंदिर बने हैं, उनके आसपास के ओम की संरचना जरूरी होती है। इसका सबसे नजदीकी उदाहरण है ओंकारेश्वर का शिव मंदिर।

परमार राजा भोज के समय में ग्राउंड मैपिंग किस तरह से होती थी इसके अभी तक कोई लिखित साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन यह रिसर्च का रोचक विषय जरूर है। सैटेलाइट इमेज से यह बहुत स्पष्ट है कि भोज ने जो शिव मंदिर बनवाया, वह इस ओम की आकृति के बीचोबीच स्थापित है।

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