लता मंगेश्कर को धीमा जहर देकर उनकी जान लेने की कोशिश करने की यह घटना कई दशक पहले की है। डोंगरी भाषा की प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मा सचदेव की पुस्तक में इस घटना का जिक्र भी किया गया है। गौरतलब है कि पद्मा सचदेव और लता मंगेशकर के काफी नजदीकी संबंध रहे हैं। यही कारण कि लताजी ने लेखिका को इस निजी घटना के बारे में बता दिया था जिसका पद्मा सचदेव की पुस्तक ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में भी जिक्र किया गया.
बाद में लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर के साथ एक इंटरव्यू में भी लता मंगेशकर ने इस घटना का उल्लेख किया था। सन 2009 में उनके इस साक्षात्कार पर आधारित एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी। पद्मा सचदेव की पुस्तक में लेखिका के अनुसार लता मंगेशकर के साथ यह घटना सन 1962 में हुई थी, जब वे महज 33 साल की थीं। पद्मा सचदेव के अनुसार, लताजी को जहर देने का काम उनके रसाइए ने किया था. घटना सामने आने के बाद वह भाग गया और घर में रसोई का जिम्मा उनकी छोटी बहन उषा मंगेशकर ने संभाला.
पद्मा सचदेव के अनुसार, लताजी ने बताया कि डॉक्टर के मुताबिक उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था। जहर के कारण वे कमजोरी हो गई थीं। दर्द बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की। वे तीन दिन तक जिंदगी और मौत के बीच झूलती रहीं. पर आखिरकार ये जंग वे जीत गईं. पद्मा सचदेव के साथ अपने अनुभव को शेयर करते हुए लताजी ने बताया था कि हालांकि इसके बाद वे कई महीनों तक गाना नहीं गा सकी थीं.