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कौन होता है किन्नर?
विधि का विधान शायद कुछ ऐसा है कि, कुदरत ने नर और नारी की जाति बनाई। इन्हीं में से एक जाति है, किन्नर। इन्हें ना तो नर जाति का माना जाता है और ना ही नारी जाति का। किन्नर का मतलब ऐसा है कि, एक ऐसा मनुष्य जिसमें कुछ लक्षण नारी के और कुछ नर के होते हैं। विज्ञान की भाषा में ऐसा मनुष्य जिसके जननांग अर्द्धविकसित रह जाते हैं नर और नारी जाति के बीच का हिस्सा बन जाता है। समाज के द्वारा तिरस्कार किए जाने के बाद ये किन्नर जाति के लोग अलग तरह का जीवन बिताने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
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किन्नर के मरने के बाद की सच्चाई
यही कारण है कि, किन्नर भी अपनी ही एक सीमित और अलग दुनिया बना लेते हैं। जिसमें उन्हें समाज की आवश्यक्ता ना हो। इनकी अपनी अलग ही परंपराएं और संस्कृति भी हैं, जिन्हें ये खुद कुदरती कानून के तौर पर देखते और मानते हैं। आज हम आपको इसी कम्युनिटी से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताएंगे। किन्नरों की दुनिया आम आदमी से हर तरह से अलग होती है। जैसे किन्नर साल में एक बार शादी करता है और उसके अगले दिन ही विध्वा भी हो जाता है। वहीं, मरने के बाद उसके समुदाय के लोग उसकी डेड बॉडी की चप्पलों से पिटाई करते हैं। क्या है इसके पीछे की सच्चाई? आइये जानें।
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ऐसे होता है किन्नर का अंतिम संस्कार
-किन्नर की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार की प्रकृिया को गुप्त रखा जाता है। बाकी धर्मों से ठीक उलट किन्नरों की अंतिम यात्रा दिन की जगह रात में निकाली जाती है।
-किन्नरों के अंतिम संस्कार बाहरी लोगों से छिपाकर किया जाता है। मान्यता है कि, अगर कोई बाहरी व्यक्ति किन्नर का अंतिम संस्कार देख ले, तो मरने वाले का का पुनर्जन्म फिर किन्नर के रूप में ही होगा।
-किन्नर ही पूरी दुनिया में एक ऐसा समुदाय है, जो दुनियाभर के सभी धर्मों को मानते हैं। हालांकि, भारत के किन्नरों में हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों को अधिक माना जाता है। लेकिन मरने के बाद इनके शव को हिन्दू रीति के मुताबिक जलाया नहीं जाता। बल्कि, इन्हें दफनाया जाता है।
-आपको जानकर हैरानी होगी कि, किसी भी किन्नर की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार से पहले उसकी बॉडी को जूते-चप्पलों से पीटा जाता है। मान्यता है इससे उस जन्म में किए सारे पापों का प्रायश्चित हो जाता है। अपने समुदाय में किसी की मौत होने के बाद किन्नर अगले एक हफ्ते तक खाना भी नहीं खाते।
-किन्नर समाज अपने समुदाय के किसी भी सदस्य की मौत के बाद मातम मनाने को बहुत बुरा मानते हैं। हालांकि, भावनात्मक तौर पर किसी साथी के मरने पर आंसूं बहाना एक अलग बात है। कई किन्नरों का मानना है कि, किन्नर एक नरक रूपी जीवन जीता है और मरने के बाद उसे इस जीवन से मुक्ति मिल जाती है। ऐसी स्थिति में मातम करना मरने वाले किन्नर को मिली मुक्ति का अपमान होगा।
-सुना तो यहां तक गया है कि, किसी किन्नर की मौत के बाद उसके समुदाय के अन्य किन्नर खुशियां मनाते हैं। इस दौरान वो अपने आराध्य देव अरावन से मरने वाले को अगले जन्म में किन्नर ना बनाने की प्रार्थना भी करते हैं।
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शादी के अगले दिन हो जाते हैं विध्वा
किन्नरों की साल में एक दिन शादी होती है। ये शादी भगवान अरावन से होती है। मान्यता के अनुसार किन्नर भगवान अरावन की मूर्ति बनाकर उससे पूरे रीति रिवाज के साथ शादी करते हैं। शादी के अगले दिन भगवान अरावन की मूर्ति को अपने सर पर रखकर शहर भर में घुमाते हैं। वापस अपने दायरे में आकर मिट्टी से बनी उस मूर्ति को गिरा देते हैं। जिससे वो जमीन से गिरकर टूट जाती है। ऐसी स्थिति में किन्नर श्रृंगार उतारकर विधवा की तरह शोक मनाते हैं और सफेद कपड़े पहन लेते हैं।