फैज की शायरी आज भी रोशन अलाव की तरह है जो कि आज भी हम सभी से सवाल पूछती हैं। रचनाकार मृदुला गर्ग ने कहा कि इकबाल और टैगोर को एक ही हैं क्योंकि दोनों धर्म-मजहब का अलगाव नहीं मानते थे। आलोचक डॉ. धनंजय वर्मा ने बताया कि टैगोर मानते थे कि हमारा आश्रय मानवता है और हमें अतीत के आतंक से मुक्त स्वत्रंतता की अवधारणा के प्रतीक प्रस्तुत करना है। फैज के बारे में बताते हुए कहा कि वे पूरी एक कौम हैं।
सदी के सिर्फ दो दशक साहित्य के परिचायक नहीं हो सकते
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रभु जोशी ने कहा कि सदी के सिर्फ दो दशक साहित्य के परिचायक नहीं हो सकते। हम पश्चिम का स्वप्न देखने लगे हैं, हमारी विचारधारा पश्चिम के जैसे ही हो गई है। हम जो देख रहे हैं और जो दिखाया जा रहा है, वह दोनों अलग हैं उनमें बहुत ज्यादा फर्क है।
वरिष्ठ साहित्यकार विजय शर्मा ने अपने कहा कि साहित्य एक सतत प्रक्रिया है और हम साहित्य की विरासत को कभी नकार नहीं सकते। इस सदी के साहित्य में दलित साहित्य, स्त्री साहित्य, समलैंगिक साहित्य की मुखर आवाज सुनाई पड़ती है, जो इस विश्व साहित्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस मौके पर लेखिका और आलोचक किरण सिंह को वनमाली विशिष्ट युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।