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सुनामी के बाद निकोबार गए थे
अच्छे ट्रेक रिकार्ड, सर्टिफिकेट और अवार्डस के चलते यादव का चयन शांति सेना में हो गया। वे लेबनान, सीरिया, इजराइल, इराक, ईरान और सूडान में रहे। इसके बाद भारत आए तो सूनामी में तबाह हुए निकोबार में जाकर बहाली में मदद की।
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ऐसा रहा इस सैनिक का सफर
यादव ने 1 जनवरी 1995 को सेना ज्वाइन की। उन्हें सिक्स आसाम रेजीमेंट मिली। वह बताते हैं कि मैं नार्थ ईस्ट मेंरहा, फिर कारगिल चला गया। यहां राष्ट्रीय रायफल्स में रहते हुए एक साल ही हुए थे कि कारगिल युद्ध हो गया। हमारा बंकर टाइगर हिल के नीचे था। इस युद्ध के बाद बटालियन दिल्ली चली गई थी।
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चौथे दशक में गार्ड बनना मजबूरी
यादव 2017 में रिटायर्ड हुए तो उम्मीद थी कि सम्मान मिलेगा। दो साल बच्चों को पढ़ाया फिर गार्ड की नौकरी शुरू कर दी। इस बीच बच्चों -का प्रवेश केन्द्रीय विद्यालय में करने 1 की कोशिश की लेकिन कोटा होने के बाद भी जवाब मिला सीटें भरी हैं। आखिर में कोलार के निजी स्कूल में 4 प्रवेश कराया, लेकिन कोरोना काल में सरकारी आदेश के विरुद्ध स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा दूसरी मदों में भी वसूली पर अड़ा तो यादव ने मोर्चा खोल दिया। यादव बताते हैं कि जायज मांग और शिकायत लेकर स्कूल प्रबंधन से लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों तक से मिला लेकिन भूतपूर्व सैनिक का सम्मान नहीं मिला।
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आओ हम लें शफ्थ सैनिकों के सम्मान की: हम स्वतंत्रता दिवस पर आजादी दिलाने वालों के सम्मान के साथ ऐसे सैनिकों के सम्मान की शपथ लें जिन्होंने अपनी जान दांव पर लगाकर देश की सुरक्षा की।