patrika.com आपको बता रहा है भोपाल ने कैसे लड़ी थी आजादी की अलग लड़ाई…।
बेगम ने दिखाई थी हिम्मत, अंग्रेज भी थे हैरान
– 1857 में देश में आजादी की पहली क्रांति हुई। पूरा देश एकजुट हुआ।
– भोपाल भी इस क्रांति में साथी बना और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खड़ा हुआ।
– इस लड़ाई में भोपाल की नवाब सिकंदर जहां हुआ करती थीं।
– उस समय यहां भी विरोध का बिगुल बजा और अंग्रेज इसे दबाने में जुट गए।
– यहां के रहवासियों ने अंग्रेजों से सीधी लड़ाई लड़ी। कई शहीद हुए।
– इस आंदोलन की आग भोपाल से सागर तक फैली।
– बाद में 100 देश भक्तों को सीहोर की जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।
अंग्रेज तय करते थे नवाबों की शादी
मशहूर इतिहास कार और भोपाल के नवाबी दौर के जानकार जावेद अली बताते हैं कि भोपाल की रियासत पूरी तरह अंग्रेजी हुकूमत के इशारे पर चलती थी। यहां तक कि नवाबों की शादी भी वही तय करते थे। सिकंदर जहां बेगम की पहले पति के बाद दूसरी शादी अंग्रेजों की इच्छा के मुताबिक हुई। सिद्दीकी जहां खां ने जब अपनी मर्जी से शासन चलाया तो उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।
यहां चला था भोपाल आंदोलन
अंग्रेजों ने भोपाल पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए बाहरी लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। तब यहां भोपाली और गैर भोपाली आंदोलन शुरू हुआ। 1934 के बाद लोकतांत्रिक आजादी के लिए यहां आंदोलन जोर पकड़ चुका था। शाकिर अली खां और एल. के. नजमी सहित कई देशभक्त कभी जेल तो कभी जेल के बाहर वक्त गुजारते रहे थे।