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Increase strength and stamina : शरीर की कमजोरी दूर करके ताकत बढ़ाते हैं ये दाने, इस तरह करें इस्तेमाल

Increase strength : दालों में प्रोटीन के अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट , कई प्रकार के विटामिन्स , फॉस्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर स्वास्थ रखने के साथ-साथ कई प्रकार की बीमारियों ( desease ) को भी दूर रखते हैं।

भोपालAug 06, 2019 / 10:31 am

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Increase strength and stamina : शरीर की कमजोरी दूर करके ताकत बढ़ाते हैं ये दाने, इस तरह करें इस्तेमाल

भोपालः वैसे तो दालें हमारे रोजाना के खाने ( daily food ) का हिस्सा होती ही हैं। ये आम धारणा है कि दालों में प्रोटीन ( protien ) होता है, जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद ( benificial for health ) होता है, लेकिन क्या आपको पता है कि अलग अलग दालों में ऐसे पोषक तत्व ( nutrients ) होते हैं, जो अलग अलग तरीके से आपके शरीर को शक्तिशाली ( powerful ) बनाते है। दालें ( Grains ) और उनके फायदों के बारे में जानने के लिए हमने बात की भोपाल की न्यूट्रिनिश्ट सिद्धार्थ वर्मा से, जिन्होंने बताया कि स्वादिष्ट ( testy ) होने के साथ-साथ पाचन ( digestion ) की दृष्टि से भी अलग अलग दालें बहुत लाभदायक होती हैं। दालों में प्रोटीन के अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट , कई प्रकार के विटामिन्स , फॉस्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर स्वास्थ रखने के साथ-साथ कई प्रकार की बीमारियों ( desease ) को भी दूर रखते हैं।

 

 

-अरहर दाल

हालांकि यह दाल अपने भाव को लेकर अकसर ही चर्चा में आ जाती है, लेकिन यह बात भी सही है कि सभी दालों में अरहर का प्रमुख स्थान है। पौष्टिक गुणों ( Nutritional property ) को समेटे हुए अरहर की हरी-हरी फलियों के दाने निकालकर उन्हें तवे पर भूनकर भी खाना काफी लाभकारी होता है। वैसे तो यह दाल जल्दी पच ( digest ) जाती है, लेकिन इसका सेवन गैस , कब्ज और सांस के रोगियों को कम करना चाहिए। 100 ग्राम अरहर दाल में 22 ग्राम प्रोटीन, 343 कैलोरी, 17 मिलीग्राम सोडियम, 1392 मिलीग्राम पोटैशियम, 63 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 15 ग्राम फाइबर और विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है। इस दाल के सेवन के कई फायदे हैं। दांत दर्द की शिकायत होने पर अरहर के पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से फायदा मिलता है। अरहर की दाल को छिलके सहित पानी में भिगोकर रखें। फिर इससे कुल्ला करें। अरहर की ताजी हरी पत्तियों को चबाने से भी मुंह के छालों में आराम मिलता है। अरहर के पौधे की कोमल डंडियां, पत्ते आदि दूध देने वाले पशुओं को खिलाते हैं, ताकि वे अधिक दूध दें। माइग्रेन के मरीजों को अरहर के पत्तों तथा दूब (दूर्वा घास) का रस समान मात्रा में तैयार कर नाक में डालने से लाभ मिलता है। घाव सूखने के लिए अरहर के कोमल पत्ते पीसकर घाव पर लगाने चाहिए।

 

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-मूंग दाल

मूंग की दाल दो प्रकार की होती है हरी और पीली। धुली और छिली हुई मूंग दालें पीले रंग की होती हैं। इन दालों में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। ये दालें पकाने में आसान होने के साथ ही यह पचाने में भी आसान होती है। साथ ही शाकाहारी लोगों की पसंदीदा डिशेज़ में से भी एक है। डॉक्टर्स बताते हैं कि पीली मूंग दाल मे 50 प्रतिशत प्रोटीन, 20 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 48 प्रतिशत फाइबर, 1 प्रतिशत सोडियम और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा ना के बराबर होती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि पीली मूंग दाल में प्रोटीन, आयरन और फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। वहीं इसमें पोटैशियम, कैल्शियम और विटामिन बी कॉम्पलेक्स होता है और सबसे बड़ी बात फैट बिल्कुल नहीं होता। अन्य दालों की अपेक्षा पीली मूंग दाल आसानी से पच जाती है। इसमें मौजूद अनेक प्रकार के तत्वों से बच्चों से लेकर बड़ों तक को कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे होते हैं।

वहीं हरी मूंग दाल में भी प्रोटीन और फाइबर की अधिकता और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बिल्कुल भी नहीं होती। प्रति 100 ग्राम मूंग दाल में 347 कैलोरी, 62.62 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 16.3 ग्राम फाइबर, और 23.86 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है। इसके साथ ही इसमें कई प्रकार के विटामिन्स सी, ई, के, बी6, फोलेट, पेंटोथेनिक एसिड, नियासिन, राइबोफ्लेविन, थियामिन भी मौजूद होते हैं। कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, फॉस्फोरस, पोटैशियम, जिंक आदि की भी भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसमें वसा कि मात्रा कम होती है और यह विटामीन बी कॉम्पलेक्स विटामीन, कैल्शियम और पौटैशियम से भरपूर होता है। मूंग को छिलके सहित खाना चाहिए | बुखार होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं। इसे रोज़ दिन में दो बार खाने से बुखार ठीक होता है और दस्त भी साफ होता है। मूंग दाल कैंसर के जीवाणुओं के बनने की प्रक्रिया को खत्म करती है।चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होती है | खिचड़ी में घी डालकर खाने से कब्ज दूर होकर दस्त साफ आता है।

 

-चना दाल

काले चनों को दो टुकड़ों में तोड़कर उन्हें पॉलिश करके चना दाल तैयार किया जाता है। यह भारतीय खाने का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। लजीज और पौष्टिक होने के साथ ही पचने में भी आसान होते हैं। खाने के अलावा सौंदर्य बढ़ाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसी दाल से बेसन भी तैयार होता है। चने की दाल में भी प्रोटीन और फाइबर की सबसे ज़्यादा मात्रा पाई जाती है, जो पाचन की दृष्टि से बहुत लाभदायक है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि 100 ग्राम चना दाल में 33000 कैलोरी, 10-11 ग्राम फाइबर, 20 ग्राम प्रोटीन और सिर्फ 5 ग्राम फैट होता है। चने की दाल खाने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि यह कोलेस्ट्रॉल घटाती है। चना दाल में फाइबर की मात्रा सबसे अधिक होती है जो कोलेस्ट्रॉल कम करती है। चना दाल में जिंक, फोलेट, कैल्शियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं। इसमें ग्लाइसमिक इंडेक्स होता है जो डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा चने की दाल खाने से एनीमिया, कब्ज, पीलिया, डिसेप्सिया, उल्टी और बालों के गिरने की समस्या दूर हो जाती है।

 

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-मसूर दाल

मसूर दाल तीन प्रकार की होती है साबुत, धुली और छिली हुई। बिना छिलके की इस दाल का रंग लाल होता है। हल्की होने के कारण यह जल्दी पक जाती है। इस दाल को ढककर पकाने से इसमें मौजूद विटामिन सी की मात्रा बराबर बनी रहती है। मसूर में प्रोटीन, कैल्शियम, सल्फर, कार्बोहाइड्रेट, एल्युमीनियम, जिंक, कॉपर, आयोडीन, मैग्नीशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन और विटामिन डी जैसे तत्व पाए जाते हैं। इसमें मौजूद अमिनो एसिड जैसे आईसोल्यूसीन और लाईसीन से बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है। इस दाल में फाइबर भी उच्च मात्रा में पाया जाता है। प्रोटीन के अलावा, इसमें फोलेट, विटामिन बी1, मिनरल्स, पोटैशियम, आयरन और लो कोलेस्ट्रॉल होता है। इससे पेट के रोगों से लेकर पाचन क्रिया से संबंधित कई प्रकार की समस्याएं दूर होती हैं। मसूर की दाल का सूप पीने से आंतों और गले से संबंधित रोगों में आराम मिलता है। दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज और अनियमित पाचन क्रिया में इस दाल का सेवन फायदेमंद होता है।

 

 

-उड़द दाल

उड़द को एक अत्यंत पौष्टिक दाल के रूप में जाना जाता है। यह अन्य प्रकार की दालों से अधिक बल देने वाली और पौष्टिक भी होती है। उड़द की दाल में प्रोटीन, विटामिन बी थायमीन, राइबोफ्लेविन और नियासिन, विटामिन सी, आयरन,कैल्‍शियम, घुलनशील रेशा और स्‍टार्च पाया जाता है। भरपूर मात्रा में विटामिन और खनिज लवण वाली इस दाल में कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल नहीं होता। प्रति 100 ग्राम उड़द दाल में 341 कैलोरी, 38 मिलीग्राम सोडियम, 983 मिलीग्राम पोटैशियम, 59 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 18 ग्राम फाइबर और 25 ग्राम प्रोटीन की मात्रा होती है। इसमें बहुत सारा आयरन होता है, जिसे खाने से शरीर को बल मिलता है। शाकाहारियों के लिए तो यह दाल वरदान है क्योंकि इसमें रेड मीट के मुकाबले कई गुना आयरन होता है। जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें, तो उनके शरीर में रक्त, बोन मैरो की वृद्धि होती है। इसमें बहुत सारे घुलनशील रेशे होते हैं, जो पचने में आसान होते हैं। एक सप्ताह तक इसका सेवन करने से पुराने से पुराना मूत्र रोग ठीक हो जाता है। अगर यंग लेडीज़ इस खीर का सेवन करें, तो उनका रूप निखरता है।

उड़द एक ऐसी दाल है, जिसके फायदे सबसे ज्यादा नजर आते हैं। इस दाल का सेवन करने से गर्भाशय के विकार तो दूर होते ही हैं, साथ ही ब्रेस्टफीड कराने वाली महिलाओं के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। उड़द की दाल का फेसपैक चेहरे पर झाइयां और मुहांसों को दूर करता है। काली उड़द को पानी में 6 से 7 घंटे के लिए भिगोकर उसे घी में फ्राई करके शहद के साथ नियमित सेवन किया जाए, तो पुरुष की यौन शक्‍ति बढ़ती है और सभी विकार दूर होते हैं। छिलके वाली उड़द की दाल को एक सूती कपड़े में लपेटकर तवे पर गर्म किया जाए और जोड़ दर्द से परेशान व्यक्ति के दर्द वाले हिस्सों पर सिंकाई की जाए, तो दर्द में तेजी से आराम मिलता है। काली उड़द को खाने के तेल में गर्म करते हैं और उस तेल से दर्द वाले हिस्सों की मालिश की जाती है। इससे दर्द में तेजी से आराम मिलता है।

 

 

-काली बीन्स

काली बीन्स सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी छोटे-छोटे काले, चिकने से दिखने वाले ब्लैक बीन्स भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी आम तौर पर खाए जाते हैं। काली बीन्स एंटी-ऑक्सीडेंट्स का अच्छा स्रोत हैं। महज एक कप काले बीन्स के सेवन से 90 प्रतिशत तक फोलेट प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इसमें मौजूद विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है। बीन्स में फैट की मात्रा तो कम होती ही है, साथ ही इससे शरीर के लिए आवश्यक ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की पूर्ति भी होती है। काली बीन्स में 109 कैलोरी, 20 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 ग्राम फाइबर पाया जाता है। 100 ग्राम काली बीन्स में 1500 मिलीग्राम पोटैशियम, 9 मिलीग्राम सोडियम और 21 ग्राम प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। गर्भवती महिलाओं के लिए काले बीन्स में मौजूद फोलेट बच्चे के विकास में बहुत फायदेमंद होते हैं। बीन्स के उपयोग से आपकी वेस्टलाइन के बढ़ने की संभावना 23 फीसदी कम हो जाती है। अगर आप मोटापे से परेशान हैं, तो काली बीन्स का इस्तेमाल जरूर करें। इसमें मौजूद फाइबर ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ने से रोकता है, जो इन दालों को डायबिटीज, इंसुलिन रेसिसटेंट या हाईपोग्लाईसिमिया से जूझ रहे रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है।

 

 

-लोबिया दाल

लोबिया की दाल बहुत ही स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होती है। बढ़ते बच्चों के लिए तो यह बहुत ही ज्यादा लाभदायक होती है। इसे बनाना बेहद आसान है और बनाने में समय भी काफी कम लगता है। लोबिया प्रोटीन के साथ ही पोटैशियम का भी बहुत अच्छा स्रोत है। साथ ही इसमें मैग्नीशियम, कॉपर के साथ फाइबर की सबसे ज्यादा मात्रा पाई जाती है। 100 ग्राम लोबिया में 116 कैलोरी, 278 मिलीग्राम पोटैशियम, 4 मिलीग्राम सोडियम, 21 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 6 ग्राम फाइबर और प्रोटीन की मात्रा 8 ग्राम होती है। इसके साथ इसमें विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम भी होता है। लोबिया दाल का सेवन वजन कम करने में भी सहायक होती है। यह दाल शरीर के फालतू प्लाज्मा और कोलेस्ट्रोल को कम करता है। साथ ही इसमें मौजूद प्रोटीन और फाइबर पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। लोबिया में मौजूद काले रंग का भाग एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है जो शरीर को कैंसर जैसी बीमारियों से बचाता है।

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