भोपाल। कहते हैं कि भगवान श्रीगणेश के स्वरूप का ध्यान करने से ही सारे विघ्नों का अंत हो जाता है। इसीलिए उन्हें विघ्न विनाशक भी कहते हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में भगवान श्री गणेश के स्वरूप की कई स्थानों पर व्याख्या है। इन व्याख्याओं में बताया गया है कि श्री गणेश और उनके स्वरूप में कौन कौन सी विशेष बातें हैं, जिन्हें मनुष्यों को अपनाना चाहिए। गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर हम आपको बताने जा रहे हैं, श्री गणेश जी के पावन स्वरूप की कुछ ऐसी ही बातें।
विशेष है गज मस्तक
भगवान श्रीगणेश गजानन हैं। यानि जिनका मुख गज अर्थात हाथी के समान है। श्री गणेश के बड़े सिर से यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति को हमेशा बड़ा सोचना चाहिए। तभी उसके कर्म भी बड़े होंगे। गजमुख स्वरूप में बड़े कानों का भी बड़ा महत्व है। भगवान श्रीगणेश के बड़े कानों से ये सीख मिलती है कि व्यक्ति को हमेशा ही हर बार गौर से सुनना चाहिए। ध्यान से सुनी गई हर बात पर अमल करना और उसे समझना आसान हो जाता है। चेहरे की तुलना में छोटी छोटी आंखें लक्ष्य में पैनी नजर और एकाग्रता का प्रतीक हैं।
श्रीगणेश करते हैं धारण, मिलती है ये सीख
भगवान श्रीगणेश जिन वस्तुओं को धारण करते हैं, वे भी विशेष हैं। भगवान श्री गणेश का स्वरूप चार भुजाधारी है। यानि उनके चार हाथ हैं। इन चार हाथों में एक में कुल्हाड़ी है, दूसरे में रस्सी है तीसरे में मोदक हैं और चौथा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है।
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कुल्हाड़ी का अर्थ सभी बंधनों को काटने की ओर इंगित करता है। रस्सी का मतलब है कि अपनों को करीब रखो, ताकि सबसे मुश्किल लक्ष्य प्राप्त करने में आसानी हो। मोदक साधना का फल है, जिसका अर्थ मेहनत से पाई सफलता है। चौथा हाथ भक्तों की ओर आशीर्वाद स्वरूप है, जो लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने का आशीर्वाद देता है।
एकदंत हैं गणेश, विशेष है सूंड
भगवान श्री गणेश के गज स्वरूप में सूंड का अर्थ है कि क्षमता और किसी को अपनाने की इच्छाशक्ति मनुष्य में होनी चाहिए। जिनमें ये गुण नहीं होते, वे मनुष्य अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करते हैं। वहीं एकदंत का बहुत सीधा सा मतलब है कि व्यक्ति को हमेशा अच्छे गुणों को अपने पास रखना चाहिए और अनावश्यक व दुर्गुणों को खुद से दूर कर देना चाहिए।
भगवान श्री गणेश का बड़ा पेट शांतिपूर्वक जिंदगी की अच्छे और बुरे अनुभवों को पचाने का संकेत है। श्री गणेश की प्रतिमा या चित्रों में मूषक अवश्य रूप से होता है। मूषक श्री गणेश का वाहन है। और श्री गणेश के स्वरूप में अवश्य दिखाई देता है। मूषक का तात्पर्य एक सच्चे सेवक से है। एक ऐसा वाहन जिस पर आप हावी रहें, न की वाहक आफ पर हावी हो जाए।
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