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ये हुआ फायदा
इस वैश्विक परिवार के सभी सदस्यों को मानवाधिकार के तहत समान और बिना किसी को अलग किए दुनिया में शांति, न्याय और स्वतंत्रता का आधार साबित हुआ है। व्यक्ति के मानवाधिकार और स्वंतत्रता के विचारों का उदय ब्रिटेन से ही लिया गया है। ब्रिटेन के इतिहास में 1215 का माग्ना कार्टा, 1679 का हैबियस कॉर्पस एक्ट और 1689 का बिल ऑफ राइट्स मानवाधिकार के विकास की ऐतिहासिक घटनाएं हैं।
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10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाए जाने का कारण
आपको याद हो कि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मानव समाज पर ढाए गए जुल्म, सितम और उसके बाद असमानता, हिंसा, भेदभाव के मामले सामने आने के बाद अधिकारों की जरूरत को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने यूनिवर्सल मानव अधिकार ड्राफ्ट किया, जो 10 दिसंबर को घोषित किया गया था। तब से लेकर अब तक इसी दिन को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता आ रहा है। इस सार्वभौमिक घोषणा के अंदर 30 अनुच्छेद हैं, जो व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों के बारे में वर्णित है। जिसके पहले ही अनुच्छेद में कहा गया है कि हर व्यक्ति को जन्म से ही स्वतंत्रता और समानता मिली हुई है।
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इस दिन औपचारिक तौर पर आया था सामने
मानवाधिकार का ड्राफ्ट औपचारिक रूप से 4 दिसंबर 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के पूर्ण अधिवेशन में लाया गया, जिसके तहत महासभा ने प्रस्ताव 423 (वी) को घोषित कर सभी देशों और संगठनों को अपने-अपने तरीके से मनाने के लिए कहा गया। हर साल इस दिन मानव अधिकार के मुद्दों पर कई बड़ी राजनीतिक विमर्श, बैठक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
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इन अनुच्छेदों के आधार पर सुनिश्चित की गई रक्षा
आपको बता दें कि, हर साल 10 दिसंबर को ही मानव अधिकार के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का पंचवर्षीय और नोबेल पुरस्कार दिया जाता है। भारत में भी 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून लागू किया गया था। इसके बाद 12 अक्टूबर 1993 को ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ गठित किया गया। जिसके तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17, 19, 20, 21, 23, 24, 39, 43, 45 में देश में मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की गई। संविधान किसी भी व्यक्ति के मानव अधिकारों का हनन होने पर सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक उपचार का अधिकार भी देता है।