सवाल ये है कि रिहायशी इलाके में पटाखा फैक्ट्री चलाने की अनुमति कैसे और किसने दे दी? यहां 15 टन बारूद कैसे आ गया! अधिकारियों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी या उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की? स्पष्ट है कि जिम्मेदारों ने अपना दायित्व नहीं निभाया। जिन्होंने रिहायशी इलाके में फैक्ट्री चलाने की इजाजत दी, वे अब अपनी जवाबदेही से बच रहे हैं।
आपात स्थिति में प्रशासनिक अक्षमता भी सामने आई। इतनी भीषण आग लगने पर प्रशासन बचाव का पर्याप्त इंतजाम नहीं कर सका। ब्लास्ट और आग लगने से मौके पर अफरा-तफरी मच गई थी। इस भगदड़ से भी कुछ लोग घायल हुए हैं।
फैक्ट्री पूरी तरह से अवैध थी लेकिन प्रशासन को इसकी खबर तक नहीं थी। जिला मुख्यालय पर रिहायशी इलाके में एक अवैध पटाखा फैक्ट्री का कई सालों से चलते रहना अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करती है। फैक्ट्री के वैध या अवैध होने की जानकारी जिले के डीएम को नहीं थी। जब इस संबंध में उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने चेक करके बताने की बात कही।
पटाखा फैक्ट्री में करीब 15 टन बारूद रखा हुआ था। इतनी ज्यादा मात्रा में बारूद होने के कारण ही ऐसा भीषण ब्लास्ट हुआ। सवाल ये है कि इतना बारूद यहां कैसे आ गया? क्या यह नियमों के मुताबिक रखा गया था?
फैक्ट्री के पास लाइसेंस नहीं था, यानि यह बिना लाइसेंस के ही चल रही थी। सुरक्षा मानकों को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया। आग बुझाने के यहां कोई इंतजाम नहीं थे।
फैक्ट्री में आग से देशभर में हड़कंप मचा हुआ है। सवाल ये भी उठ रहा है कि बीच शहर में पटाखा कारखाने को चलाने की इजाजत किसने दी। यह कारखाना ब्लेक लिस्टेड हो चुका है, इसके बाद भी दोबारा कैसे चालू हो गया?
इसी पटाखा फैक्ट्री में पहले भी धमाके हो चुके हैं, तीन लोगों की जान भी जा चुकी है। इसके बाद भी कारखाने को बंद क्यों नहीं किया गया। मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार (umang singhar) ने भी इस लापरवाही पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पेटलावद कांड के बाद सबक नहीं लिया। जिस फैक्ट्री में यह हादसा हुआ वो ब्लैक लिस्टेड थी। सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि उसे किस मंत्री के दबाव में खोला गया था? रहवासी क्षेत्र में कैसे संचालित हो रही थी और पुलिस-प्रशासन को क्या इसकी जानकारी नहीं थी।