भगवान गणेश का अनोखा मंदिर, प्रतिमा से हीरे की आंखें चुरा ले गए चोर, तो 21 दिन तक आंखों से बही दूध की धारा
चिंतामन गणेश मंदिर- सीहोर भारत में स्थित चार स्वयं-भू चिंतामन गणेश मंदिरों में से एक है अति प्राचीन विक्रमादित्य कालीन ऐतिहासिक श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर। एमपी के सीहोर जिले में स्थापित इस मंदिर की अपनी महिमा है। यह मंदिर सीहोर के वायव्य पश्चिम-उत्तर कोण में स्थित है।पुजारी को स्वप्न में कहा -मेरी आंखों में चांदी के नेत्र लगवा दो
84 सिद्धों में से एक होने के कारण चिंतामन गणेश में कई तपस्वियों ने यहां सिद्धि प्राप्त की है। बताया जाता है कि गणेशजी के मंदिर में विराजित गणेशजी की प्रतिमा की आंखों में हीरे जड़े हुए थे।मंदिर की दीवार पर बनाते है उल्टा स्वास्तिक
ऐतिहासिक चिंतामन गणेश मंदिर पर प्रदेश भर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं। मान्यता है कि श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अरदास लगाकर मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं और मन्नत मांगते हैं। कहा जाता है कि जब मन्नत पूरी हो जाती है, तब भक्त यहां आकर सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।गणेश चतुर्थदशी पर लगता है भव्य मेला
चिंतामन गणेश मंदिर में गणेश चतुर्थी के साथ शुरू होने वाले 10 दिन के गणेश उत्सव के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और भगवान गणेश के दर्शन करते हैं।एक बार टीले पर रखी प्रतिमा फिर उठाई तो हिली तक नहीं
खजराना गणेश मंदिर – इंदौर (Khajrana Ganesh Mandir Indore) खजराना गणेश मंदिर (Khajrana Ganesh Temple Indore) का निर्माण होलकर राजवंश की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने 1735 में करवाया था। जानकारी के मुताबिक 1733 में देवी अहिल्या ने इसका जीर्णोद्धार किया था।Ganesh Chaturthi: 3 करोड़ के स्वर्ण मुकुट से खजराना गणेश का श्रृंगार, गणेश उत्सव में 15 लाख भक्त करेंगे दर्शन
गणेश जी ने स्वप्न में दिए थे दर्शन
विश्व प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर (Khajrana Ganesh Mandir) देवी अहिल्याबाई होलकर (Dvi Ahilyabai Holkar)के समय का मंदिर है। मंदिर के पुजारी पं. अशोक भट्ट के मुताबिक उनके परिवार के मूल पुरुष वैद्य मंगल मूर्ति भट्ट को करीब आठ पीढ़ी पहले भगवान गणेश ने स्वप्न में दर्शन दिए थे और कहा था कि तुम जहां गाय चराते हो वहां मैं हूं, मुझे यहां से निकालो।इस पर उन्होंने मां अहिल्या देवी होलकर के दरबार में निवेदन किया। तब उन्होंने अपने दूत भेजकर यहां से गणेशजी की प्रतिमा निकाली। वे प्रतिमा को राजबाड़ा के पास स्थापित करना चाह रहे थे। इस बीच वैद्य भट्ट ने मूर्ति को उठाकर यहां एक टीले पर रखा दिया।