माता का यह विख्यात मंदिर कई मायनों में अनूठा है। शारदा माता का यह मंदिर मैहर में त्रिकूट पर्वत की चोटी पर बना है। यह मंदिर 522 ईसा पूर्व का है। मान्यता यह भी है कि यहां मां शारदा की पहली पूजा आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी। मंदिर में स्थापित मां शारदा की प्रतिमा के नीचे पुराने शिलालेख हैं पर इन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। नामी इतिहासकार कनिंघम ने शारदा माता मंदिर पर शोध किया था। मंदिर की पहाड़ी के पीछे मां शारदा के परम भक्त आल्हा उदल के अखाड़े हैं जहां उनकी विशाल प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
शारदा देवी मंदिर की पहाड़ी के समीप एक तालाब बना है जोकि एक रहस्य है। इस तालाब को देव तालाब की तरह माना व पूजा जाता है। मान्यता है कि तालाब में खिले कमल पुष्प को उनके अमर भक्त आल्हा आज भी रोज माता पर चढ़ाते हैं। जनश्रुति के मुताबिक इस तालाब में खिलनेवाला कमल का फूल सुबह देवी के चरणों में चढ़ा हुआ मिलता है। शारदा माता का मंदिर सिद्ध स्थान माना जाता है, यही कारण है कि सालभर लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत पूरी करने की प्रार्थना लिए आते हैं।
शारदा माता के इस मंदिर के बारे में कई मशहूर किंवदंतियां हैं। माना जाता है कि शारदा माता के परम भक्त आल्हा यहां आज भी रोज रात को आरती करते हैं। रात में जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी पहाड़ी से नीचे उतर आते हैं तब भी मंदिर से घंटी बजने और आरती की आवाज आती है। खास बात यह है कि सुबह जब पुजारी मंदिर के पट खोलते हैं तो उन्हें शारदा माता के चरणों में फूल चढ़े हुए मिलते हैं। स्थानीय पंडित देवी प्रसाद बताते हैं कि आज तक यह अनोखी घटना रहस्य बनी हुई है। इसके बारे में पता लगाने के लिए कई बार वैज्ञानिकों ने भी प्रयास किया लेकिन कोई राज सामने नहीं आ सका। लोग कहते हैं कि आल्हा रोज रात आकर माता का श्रृंगार कर पूजन पाठ करते हैं।