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भोपाल

किसान दिवस: अनाज के साथ सब्जी और मसालों में भी प्रदेश के किसानों की धाक

अर्थव्यवस्था में 30 से 35% योगदान किसानों का, अन्नदाता की मेहनत से प्रदेश की भूमि उगल रही सोना।

भोपालDec 23, 2020 / 09:12 am

Hitendra Sharma

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भोपाल. खाने का लाजवाब स्वाद और रसोई में लगे तड़के की महक से देश का कोई भी कोना मध्यप्रदेश के किसानों की मेहनत से अछूता नहीं रहा है। प्रदेश के किसानों की मेहनत मंडियों और बाजार से होकर देश के हर घर को महका रही है। बात चाहे शाही दावत की हो या विदेशी मेहमानों के स्वागत की या फिर शादी और तीज-त्योहार। जब-जब थाली में लजीज व्यंजन परोसे जाते हैं तो कहीं न कहीं प्रदेश की खुशबू बिखर ही जाती है। प्रदेश के किसानों ने अपनी मेहनत से देश के उच्च कोटी के वह अनाज उत्पादन किए हैं जो देश में कहीं और किसी भाग में नहीं होते। शरबती, बासमती, गुड़, मक्का, धनिया, मिर्च जैसे उत्पाद है जिनका स्वाद और महक में प्रदेश सबसे अलग और इकलौता है।

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शरबती गेहूं 306: द गोल्डन ग्रेन
देश में गेहूं की सबसे प्रीमियम किस्म शरबती 306 को ‘द गोल्डन ग्रेन’ भी कहा जाता है, इसका रंग सुनहरा होता है। यह हथेली पर भारी लगता है और इसका स्वाद मीठा होता है। शरबती में गेहूं की दूसरी किस्मों की तुलना में ग्लूकोज और सुक्रोज जैसे सरल शर्करा की मात्रा अधिक होती है।देशभर में शरबती सिर्फ मध्यप्रदेश में ही होता है। देश के उच्च वर्ग में इसी गेहूं की मांग रहती है। विदिशा, सागर, सीहोर, अशोकनगर, रायसेन और गुना में 306 किमी के दायरे में काली मिट्टी की मोटी पर्त है, इसके चलते कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इसका नाम 306 दिया गया।

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पुराने तरीके ने बढ़ाई धनिया की सुगंध
गुना जिले के कुंभराज क्षेत्र का धनिया देश-विदेश में प्रसिद्ध है। भारत के अलावा मलेशिया, सिंगापुर और बांग्लादेश सहित कई देशों में इसका निर्यात किया जाता है। कुंभराज मंडी में जब धनिया की पहली आवक होती है तो व्यापारी शगुन के तौर पर 51 हजार तक बोली लगा चुके हैं। देश में धनिया के दिग्गज व्यापारियों का मानना है कि वह खुशबू सूंघकर ही बता देते हैं कि कौन सा धनिया कुंभराज से आया है। क्षेत्र के धनिया की प्रसिद्धि के पीछे यहां के किसानों का धनिया को लेकर खास तकनीक के साथ बोवनी और धनिया के बीज का संग्रह करना शामिल है। किसान एक ही तरह के बीज की बोवनी करते हैं।

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चिन्नौर की महक
बालाघाट जिले को चिन्नौर (चावल) की वारासिवनी और लालबर्रा ब्लॉक में ही खेती की जाती थी। बालाघाट में उत्पादित होने वाले चिन्नौर चावल की सुगंध, स्वाद व मुलायमपन ने दुनिया के बाजार में पहचान बनाई है।

छिंदवाड़ा दी मक्का
प्रदेश में सर्वाधिक मक्का उत्पादन में छिंदवाड़ा की पहचान है। एक हैक्टेयर में 52 क्विंटल औसत अनुपात में उत्पादन मिलने पर कॉर्नसिटी का तमगा भी मिला है। मक्का उत्पादन ने छिंदवाड़ा के किसानों की आर्थिक स्थिति बदल दी है।

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बासमती की सुगंध
होशंगाबाद और रायसेन जिले में पैदा होने वाले बासमती धान ने प्रदेश को देश और विदेश में नई पहचान दिलाई है। यहां का बासमती चावल देशभर के साथ अब अरब देशों की भी पसंद बन चुका है। यह भारत के अलावा दस अन्य जगह विदेशों में भी सप्लाई किया जा रहा है। इस क्षेत्र में देश की नामी चावल ब्रांडों की कंपनियां स्थापित हैं।

बेडिय़ा की तीखी मिर्च
निमाड़ क्षेत्र के खरगोन की ‘मिर्ची ‘जायके को लाजवाब बना देती है, इस मिर्च को देश और दुनिया में वह पहचान नहीं मिल पाई है जिसकी वह हकदार है। यहां ‘चिली फेस्टीवलÓ भी मनाया जाता है। खरगोन जिले में बेडिय़ा में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मिर्ची मंडी है, जबकि आंध्रप्रदेश के गुंटूर में एशिया की सबसे बड़ी मिर्च मंडी है। राज्य में मिर्ची उत्पादन का कुल रकबा में से 65.57 फीसदी हिस्सा निमाड़ क्षेत्र में है।

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सतना का करेला
जिले का मैहर ब्लाक करेला एवं टमाटर देशभर में प्रसिद्ध है। मैहर के खेतों में उत्पादित करेले की पूछपरख प्रदेश के अन्य जिलों के अलावा देश के 12 राज्यों तक है। यहां की बेरमा मंडी से प्रतिदिन 200 गाड़ी करेला यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों को भेजा जाता है। जिला प्रशासन मैहर में आज तक सरकारी मंडी स्थापित नहीं कर सका।

करेली के गुड़ की मिठास
नरसिंहपुर जिले के करेली का नाम भले ही करेले की तरह कड़़वा लगता हो, लेकिन इसके गुड़ की मिठास पूरे देश में मिश्री की तरह फैली हुई है। यहां पैदा होने वाले गन्ने के कारण गाडरवारा और करेली के आसपास हर गांव में गुड़ की भट्टियां लगी हुई हंै। नर्मदा का पानी और मिट्टी यहां के गन्ने में अलग मिठास देती है। इससे इस गुड़ की गुणवत्ता देश के अन्य गुड़ से इसे प्रीमियम बनाती है। यहां पर बिना केमिकल के गुड़ बनाने की प्रक्रिया के कारण यह गुड़ सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। दानेदार यह गुड़ स्वाद में लाजवाब होता है। अपने स्वाद के कारण यहां बना जैबिक गुड़ विदेशों में निर्यात किया जाता। करेली हर साल लगभग दस लाख क्विंटल गुड़ का उत्पादन किया जाता है। इस गुड़ की देश भर में भारी डिमांड है और इसके रेट भी बेहतर मिलते हैं।

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कोदो-कुटकी
अनूपपुर जिले के आदिवासी क्षेत्र पुष्पराजगढ़ विकासखंड में उपजाई जाने वाली विशेष फसल कोदो-कुटकी अब अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने लगी है। स्वास्थ्यवद्र्धक खाद्यान्न होने के कारण प्रदेश सहित देश और विदेशों में भी मांग होने लगी है। लेकिन किसानों को खर्च के अनुसार उसकी लागत नहीं निकल पा रही है। स्थानीय व्यापारी फसल को वे 15-17 रुपए की हिसाब से खरीदते है। जबकि बाजार और मॉल में इसकी कीमत 100 रुपए से ऊपर रहती है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है।

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अर्थव्यवस्था में 30 से 35% योगदान किसानों का
आजादी के 73 साल में बहुत कुछ बदला है, लेकिन नहीं बदला है तो किसान। खेती के तरीके में जरूर बदलाव आया है लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति आज भी वैसी ही है जैसी 73 साल पहले थी। यह स्थिति तब है जब लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार देने वाला कृषि क्षेत्र ही है। देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक कृषि पर निर्भर करती है। देश की आधी से अधिक आबादी की आजीविका खेती पर निर्भर है। मौजूदा समय में कृषि, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 14 प्रतिशत से अधिक का योगदान करती है और देश के श्रमिकों के 40 प्रतिशत से अधिक हिस्से को आजीविका प्रदान करती है। कोविड-19 की वजह से पैदा आर्थिक मंदी के बीच 2020-21 में आर्थिक स्थिरता के लिए इसका योगदान और भी अधिक होने की उम्मीद है। मप्र का देश की जीडीपी में मध्यप्रदेश का योगदान 5 प्रतिशत है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 30 से 35 प्रतिशत योगदान किसानों का है।

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कर्ज के बोझ में ऐसे दबे फिर उबर ही नहीं सके किसान
सरकारी मदद भी मरहम न लगा सकी -सूबे में सरकार किसी भी दल की हो, किसान हमेशा मुद्दा रहा है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी किसानों की ही बात हुई। वर्तमान में भी किसानों की ही चर्चा है। किसानों को उद्योगपति तक बनाए जाने की बात हो रही है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कुछ और बयां करती है। बड़े उद्योगपति किसानों की बात छोड़ दें तो आम किसान आज भी अभावों का जीवन जी रहा है। कर्ज लेकर बुआई करता है, लेकिन उसे यह पता नहीं होता कि फसल पकने के बाद उसे कितना लाभ होगा। पिछले कुछ वर्षों से तो उसकी फसल बर्वाद ही हो रही है। कभी ओला-पाला तो कभी अतिवर्षा से उसे नुकसान सहना पड़ा है। ऐसे में कर्ज में डूबा किसान और कर्जदार होता जा रहा है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य के 50 फीसदी किसान कर्जदार हैं। प्रदेश में किसानों की संख्या 1.10 करोड़ है। इनमें से 50 लाख किसानों पर कर्ज है।

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