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एक किस्सा: वह नेता जो राष्ट्रपति बनने के बाद कभी अपने घर नहीं पहुंचा, आतंकियों ने की थी बेटी की हत्या

एक किस्सा: वह नेता जो राष्ट्रपति बनने के बाद कभी अपने घर नहीं पहुंचा, आतंकियों ने की थी बेटी की हत्या

भोपालFeb 24, 2019 / 08:53 am

shailendra tiwari

ek kissa

एक किस्सा: वह नेता जो राष्ट्रपति बनने के बाद कभी अपने घर नहीं आ सका, आतंकियों ने की थी बेटी की हत्या

भोपाल. 6 दिसंबर, 1992 देर रात दिल्ली के 7 आरसीआर में प्रधानमंत्री सो रहे थे। वहीं, दूसरी तरफ देश के सर्वोच्च पद पर आसीन एक व्यक्ति रो रहा था। ये वही व्यक्ति थे जिनके सामने अपनी ही बेटी के कातिलों की मर्सी पिटिशन आई थी। जिसने प्रधानमंत्री का पद ठुकराया था। इंदिरा समर्थकों ने इसे कांग्रेस का सच्चा सेवक और कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें विभीषण कहा था। जो राष्ट्रपति बनने के बाद कभी अपने पैतृक घर नहीं पहुंच पाए। इन सभी किस्सों पर गौर करिएगा क्योंकि ये किस्सा है भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा का।

इंदिरा के समर्थक
1968 कांग्रेस में फूट की स्थिति थी। एक खेमा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ था। एक खेमा तब के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा। इस नाम को याद रखिएगा। पर उस समय कांग्रेस का एक ऐसा नेता था जिसे दोनों ही खेमों में बड़ा आदर मिलता था। सुबह पार्टी अध्यक्ष के साथ होती थी तो शाम को इंदिरा गांधी की दरबार में हाजिरी लगती थी। ये नेता थे डॉ शंकर दयाल शर्मा। इंदिरा के दरबार में हाजिरी से कांग्रेस अध्यक्ष नाराज थे। तो इंदिरा इस नेता से बेहद खुश। इंदिरा समर्थक इसे सच्चा देशभक्त मानते थे तो एस निजलिंगप्पा का खेमा इन्हें विभीषण कहता था। सुबह की दरबार में जो चर्चा होती थी उसे शाम को शंकर दयाल शर्मा इंदिरा के दरबार में पेश करते थे। कांग्रेस टूट चुकी थी। इंदिरा ने अलग पार्टी बनाई। शंकरदयाल शर्मा को पार्टी का वरिष्ठ महासचिव बनाया गया। इंदिरा कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। तो इंदिरा की कैबिनेट में मंत्रालय भी मिला। तब तक एस निजलिंगप्पा शंकर दयाल के नाम से इतने नाराज थे कि वो उनसे मिलना तो दूर बात भी नहीं करना चाहते थे।
नाराज रहते थे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष

दिल्ली के जिस दरबार में शंकर दयाल शर्मा का कद बढ़ रहा था उसका कारण थे एस निजलिंगप्पा। भोपाल में सियासत करने वाले इस नेता को पार्टी का सचिव बनाकर एस निजलिंगप्पा ही दिल्ली लेकर आए थे। तब किसे पता था कि भोपाल से आया यह नेता कांग्रेस के लिए बड़ा रणनीतिकार साबित होगा। रणनीतिकार इसलिए की 1984 में एक बार फिर इंदिरा के लिए संकट मोचन बने थे। साल था 1983 का। आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को हराकर तेलगु देशम पार्टी ने सरकार बनाई। मुख्यमंत्री बने थे एनटी रामाराव। रामाराव इलाज के लिए अमेरिका जाते हैं। कांग्रेस के ही नेता बगावत कर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं। रामाराव आमेरिका से लौटकर दिल्ली कूच करते हैं। देश में इंदिरा के खिलाफ आवाजें उठती हैं। तब इंदिरा शंकर दयाल को आंध्रा का गवर्नर बनाकर भेजती हैं। शंकर दयाल रामाराव को फिर से सीएम की शपथ दिलाते हैं और इंदिरा विरोधी लहर कमजोर होती है।
सेकुलर नेता थे शंकर दयाल शर्मा

शंकर दयाल को सेकुलर नेता माना जाता था। जब वे मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री थे तो उन्होंने स्कूलों में ‘ग’ से ‘गणेश’ की जगह ‘ग’ से ‘गधा’ पढ़ाना प्रारंभ करवाया। तर्क दिया गया था कि ‘गधा’ किसी धर्म का नहीं होता। शिक्षा को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए। जब ऐसे सेकुलर नेता का नाम राष्ट्रपति पद के लिए 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने उठाया तो पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने यह कहकर उनका विरोध किया कि वे ब्राह्मण हैं। नरसिंहराव शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। क्योंकि शंकर दयाल की ना के बाद ही तो वो प्रधानमंत्री बने थे। जब शंकर दयाल देश के राष्ट्पति बने तब देश में मंडल और कमंडल की राजनीत चरण पर थी। देश में हरिजन राष्ट्रपति बनाए जाने की मांग उठ रही थी। राष्ट्रपति पद के लिए दलित प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाकर राजनीति चमकाने की सियासी गोलबंदी की जा रही थी। प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के नाम पर सर्वसम्मति बन जाने की कोशिश में थे। लेकिन जनता दल के वीपी सिंह और रामविलास पासवान का कहना था कि राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार दलित समुदाय के किसी व्यक्ति को बनाया जाना चाहिए। जाहिर है, तब इन दोनों नेताओं की नजर अपनी राजनीति के लिहाज से निर्णायक दलित वोटों पर थी। बाद में वीपी सिंह ने अपने तेवर कुछ नरम किए। उस समय संसद में सीटों की संख्या का गणित कुछ ऐसा था कि किसी एक पार्टी के लिए अपनी मनमर्जी का कर पाना संभव नहीं था। सियासी घटनाक्रम बदलता है। दलित का विकल्प उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप खोजा जाता है। दलित समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर केआर नारायणन के नाम को नरसिम्हा राव मान जाते हैं। जिसके बाद वीपी सिंह और रामविलास पासवान राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए शंकर दयाल शर्मा के नाम पर सहमत होते हैं।
विपक्ष शंकर दयाल शर्मा के खिलाफ राज्यसभा के उपाध्यक्ष जीजी स्वेल को मैदान में उतारा। लेकिन शंकरदयाल शर्मा जीजी स्वेल दोगुना वोट पाते हैं औऱ जीत दर्जकर भारत के नौंवे राष्ट्रपति बनते हैं।
ठुकराया था पीएम का पद

1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। 1991 में देश में कांग्रेस की जीत हुई। पार्टी में मंथन चल रहा था प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए। तब सोनिया गांधी को सोनिया इंदिरा गांधी के सबसे वफादार शंकर दयाल शर्मा की याद आई। सभी कांग्रेसी नेता उनके नाम पर सहमत हुए। नेहरू-गांधी परिवार की वफादार अरुणा असीफ अली शंकर दयाल शर्मा से मिलने पहुंची। सोनिया गांधी का संदेशा सुनाया। पार्टी चाहती है आप देश के 10वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ले। शंकर दयाल ने उम्र का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री का पद ठुकरा दिया। इसके बाद नरसिंहराव देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि उस वक्त शंकर दयाल देश के उपराष्ट्रपति थे।
शंकर दयाल शर्मा ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के अंतिम समय में तीन प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई थी। वो प्रधानमंत्री थे अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल। शंकर दयाल ने अटल बिहारी वाजपेयी को भी शपथ दिलाई थी। ये पहला मौका था जब मध्यप्रदेश का जन्मा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति था और जिसे प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला रहा हो उसका संबंध भी मध्यप्रदेश से रहा हो। 1996 के आम चुनाव में देश की जनता ने किसी भी दल को जनादेश नहीं दिया था। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन शपथ ग्रहण के लिए उन्होंने अटलजी को जो समय दिया उप पर विचार किया। पहले ज्योतिषियों से सही समय पूछा फिर शपथ ग्रहण का टाइम भी निश्चित किया था।
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रो रहे थे शंकर दयाल शर्मा

अध्योध्य में बाबरी मस्जिद गिराया जाता है। राष्ट्रपति उसे गिरने से रोकना चाहते थे। पर रोक नहीं पाए। इसे भारतीय संविधान की ताकत कहें या फिर सर्वोच पद की बिवसता। वही संविधान जो देश को राष्ट्रपति के रूप में सर्वोच्च पद देता है तो संविधान की धाराओं से इस पद को इस तरह से बांध देता है कि राष्ट्रपति बाबरी ढांचे को गिरने से बचाने में बेबस हो जाता है। खैर राष्ट्रपति के रोने की बात हुई है..शंकरदयाल शर्मा के रोने का एक और किस्सा है। पर तब वो राष्ट्रपति नहीं थे। घटना थी देश के उच्च सदन की राज्यसभा सदस्यों ने संसद को जाम कर दिया था। इस दौरान शंकर दयाल शर्मा रो पड़े थे। अयोध्या मसले पर राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा 143 (ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न ‘रेफर’ किया था। सवाल था क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?
बेटी और दामाद की हुई थी हत्या

31 जुलाई, 1985। कांग्रेस के युवा नेता और साउथ दिल्ली से सांसद ललित माकन दिल्ली स्थित अपने घर से बाहर निकलते हैं। तीन आदमी बाहर इंतजार कर रहे होते हैं। नाम थे जिंदा, सुख्खा और गुग्गी। ये तीनों खलिस्तान आंतकी थे। ललित माकन पर गोलिंयां बरसाईं जाती हैं। उनकी पत्नी गीतांजलि घर से बाहर निकलती हैं। उन्हें भी गोली मार दी जाती है। दोनों की मौत हो जाती है। ललित माकन पर आरोप था 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगे में भूमिका बताई जा रही थी। तीनों आतंकी फरार होते हैं। तीनों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा सुनाई जाती है। सात साल बाद तीनों आरोपियों की मर्सी पटीशन राष्ट्रपति के टेबल में पहुंची है। राष्ट्रपति फाइल पर साइन करते हैं। सजा-ए-मौत बरकरार रहती है। जिस राष्ट्रपति के टेबल पर ये फाइल पहुंची थी वो राष्ट्रपति थे शंकर दयाल शर्मा। जिस गीतांजली को गोली मारी जाती है वो गीतांजली थीं शंकर दयाल शर्मा की बेटी और ललित माकन उनके दामाद थे।
भोपाल में जन्मे शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार भोपाल आए। लेकिन अपने घर नहीं जा पाए थे। गुलिया दाई की गलियां इतनी सकंरी थी की सुरक्षा के कारण वो यहां नहीं पहुंच पाए। वो ऐसे राष्ट्रपति थे जो राष्ट्रपति रहते हुए कभी अपने भोपाल स्थिति घर नहीं आ पाए। भोपाल पहुँचने पर तो उनके सम्मान में आयोजित अभिनंदन समारोह में भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा था महान राष्ट्रपति कहलाने की मेरी चाह नहीं है। मैं तो बस यही चाहता हूँ कि चदरिया जस की तस रख सकूं। भोपाल के लिए मैंने जो कुछ किया, वह महत्वपूर्ण नहीं है। बस ये चाहता हूं कि मैं भोपाल के प्रतिनिधि के रूप में ऐसा कोई काम नहीं करुँगा, जिससे आपका सिर झुक जाये। शंकर दयाल शर्मा के सामने गुलिया दाई गली का नाम बदलकर शंकर दयाल स्ट्रीट करने का प्रस्ताव दिया गया था। उन्होंने इंकार कर दिया था कहा-जिसकी गोद में मैं खेल कर बड़ा हुआ उसके नाम से बड़ा मेरा नाम नहीं हो सकता है। शंकर दयाल शर्मा जब आंध्रप्रदेश के राज्यपाल थे उस दौरान वो भोपाल आए थे और बच्चों के खेलने के लिए कश्मीर के बैट लाए थे। बच्चों के साथ जमकर क्रिकेट भी खेलते थे तो भोपाल में पटियाबाजी भी जमकर करते थे। भोपाल में पटियाबाजी का मतलब दोस्तों के साथ बैठकर चर्चा करना होता है।
भारत आजाद हो चुका था, पर भोपाल का अभी भी नवाब हमीदुल्ला की हठधर्मिता के कारण भारत में विलय नहीं हुआ था। शंकर दयाल शर्मा से मुलाकात करने के लिए नवाब के विरुद्ध आंदोलन चला रहे लोग आए और आंदोलन का नेतृत्व करने की विनती की। उन्होंने हां कर दी। जुलूस निकाला गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। यहीं वो पहला मौका था जब बाद उन्होंने सियासत की दुनिया में दाखिला लिया और सफर का अंत देश के सबसे बड़े सर्वोच्च पद पर पहुंचकर किया। 19 अगस्त, 1918 को भोपाल में जन्मे शंकर दयाल शर्मा का 26 दिसंबर 1999 को नई दिल्ली में निधन हो गया।

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