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Ek Kissa- मेरा बेटा नहीं करेगा मेरा अंतिम संस्कार, यह बात राजमाता ने वसीयत में क्यों लिखी थी

दिलचस्प किस्सों की श्रंखला में patrika.com राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुण्य तिथि पर आपको बता रहा है राजघराने का एक किस्सा…।

भोपालJan 25, 2022 / 01:15 pm

Manish Gite

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भोपाल। सभी को साथ लेकर चलना और सबके लिए सोचने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया का राजनीति में और अपने राजघराने में सबसे बड़ा और अलग ही रुतबा रहा। वे सभी की मदद के लिए हमेशा सक्रिय रहती थीं, लेकिन किसी बात पर वे अपने बेटे से इतनी खफा हो गई थीं कि उन्होंने अपनी वसीयत तक में यह लिख दिया था कि मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा। इस वसीयत ने सभी को हैरान कर दिया था। लेकिन क्या कारण है कि उन्हें अपनी वसीयत में ऐसा कुछ लिखने को मजबूर होना पड़ा।


पेश है patrika.com पर राजमाता विजयराजे सिंधिया की पुण्य तिथि पर रोचक किस्सा…।

 

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25 जनवरी 2001 को राजमाता विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था। लेकिन, उनकी एक वसीयत के आगे राजपरिवार भी असमंजस में था। उनके अंतिम संस्कार का वक्त आया, हर कोई असमंजस में था कि क्या राजमाता के इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया क्या राजमाता का अंतिम संस्कार कर पाएंगे, लेकिन वसीयत से अलग ही था यह भाव, एक बेटे ने ही शिद्दत के साथ अपनी मां का अंतिम संस्कार किया।

 

ऐसा क्यों लिखा था
राजमाता अपने इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया से क्यों इतनी नाराज हो गई ती कि उन्होंने 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में कह दिया था कि मेरा बेटा माधव मेरे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होगा। हालांकि 2001 में जब राजमाता के निधन के बाद माधवराव ने ही मुखाग्नि दी थी। इसके बाद कुछ माह बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकाप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई थी।

 

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जब अपने ही बेटे से मांगा था महल का किराया

राजमाता पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों को ही खत्म कर दिया और संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया तो उनकी इंदिरा से ठन गई थी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गई। उनके बेटे माधवराव भी उस समय जनसंघ में शामिल हो गए, वक्त बीतता गया और माधवराव कुछ समय बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे राजमाता बेहद नाराज हो गई थीं। राजमाता ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा था। उन्होंने अपने बेटे पर गिरफ्तार करवाने का आरोप लगाया था। दोनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने लगी और पारिवारिक रिश्ते खत्म होने लग गए थे। इसी के चलते राजमाता ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए अपने ही बेटे माधवराव से किराया भी मांगा था। हालांकि यह किराया एक रुपए प्रतिकात्मक रूप से मांगा गया था।

 

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माधवराव के बारे में

महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। माधवराव राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। माधवराव ने सिंधिया स्कूल से शिक्षा हासिल की थी। उसके बाद वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गए। माधवराव सिंधिया का नाम MP के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर लिया जाता था। माधवराव राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात थे। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी जैसे शौक के चलते ही वे अन्य नेताओं से अलग थे।

बेटियों को दे दी जायदाद

2001 में विजयाराजे का निधन के बाद उनकी वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटियों को काफी जेवरात और अन्य बेशकीमती वस्तुएं दी थीं। अपने बेटे से इतनी नाराजगी थी कि उन्होंने अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया था, लेकिन बेटे को बेहद कम दौलत दी। हालांकि राजमाता की दो वसीयतें सामने आने का मामला भी कोर्ट में चल रहा है। यह वसीयत 1985 और 1999 में आई थी।

 

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यह था राजमाता का असली नाम

सागर जिले में 12 अक्टूबर 1919 में राणा परिवार में जन्मी विजयाराजे के पिता महेन्द्र सिंह ठाकुर जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। उनकी मां विंदेश्वरी देवी उन्हें बचपन से ही लेखा दिव्येश्वरी बुलाती थी। हिन्दू पंचांग के मुताबिक विजयाराजे का जन्म करवाचौथ को मनाया जाता है।

 

राजमाता की लव स्टोरी

-सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से मुलाकात मुंबई के होटल ताज में हुई। महाराजा को लेखा पहली ही नजर में भा गईं थीं। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की। इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे और लेखा की सुंदरता व बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे। उन्होंने अगले दिन लेखा को परिवार समेत मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में आमंत्रित किया। समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।

 

कुछ दिनों बाद महाराजा ने अपनी पसंद व शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के जरिए नेपाल हाउस भिजवा दिया। बाद में उन्होंने शादी का एलान कर दिया। इस शादी का सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने विरोध किया था। शादी के बाद महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद में विजया राजे ने अपने व्यवहार और समपज़्ण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास व सम्मान जीत लिया था।

 

 

आठ बार रही सांसद

ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से उनका विवाह 21 फरवरी 1941 को हुआ था। पति के निधन के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुई थी और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं। 25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं।

 

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दिग्गज नेताओं ने राजमाता को किया याद

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ट्वीट संदेश में राजमाता को याद किया है। चौहान ने कहा कि श्रद्धेय राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की आज पुण्यतिथि है और उनका मुस्कुराता चेहरा बरबस ही आंखों के सामने आ जा रहा है। पूज्य अम्मा महाराज के चरणों में प्रणाम और यही संकल्प कि आपके सपनों के मध्यप्रदेश के निर्माण में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

 

सिंधिया ने आजीअम्मा को किया याद

नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपनी दादी को याद किया है। उन्होंने अपने ट्वीट संदेश में कहा है कि नारी शक्ति की मिसाल, त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति, मेरी आजीअम्मा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की पुण्यतिथि पर उन्हें मेरा सादर नमन| आजीअम्मा के आदर्शों को आत्मसात कर राष्ट्रसेवा को प्रथम लक्ष्य बनाने के साथ पार्टी को मजबूत करने का संकल्प ही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

https://youtu.be/hyC_nAp_V6g
https://youtu.be/t5SrohggWCI
https://youtu.be/NI09mS3hIK4

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