क्या आप जानते हैं कि दुर्गा पूजा का पहला दिन महालय कहलाता है। इस दिन पितृों को तर्पण करने का विधान होता है। बताया जाता है कि महालय के दिन देवों और असुरों में युद्ध हुआ था। इसमें बहुत से देव और ऋषि मारे गए थे। उन्हें तर्पण देने के लिए महालय होता है।
उपासना का पर्व ‘नवरात्रि’ प्रतिपदा से नवमी तक सनातन काल से मनाया जा रहा है। इन दिनों नवरात्रि की 9 देवी शक्तियों की आराधना की जाती है। आइए जानते हैं नवरात्रि में किस तिथि पर करें किस देवी का पूजन करें…
29 सितम्बर 2019 प्रतिपदा तिथि – घटस्थापना , श्री शैलपुत्री पूजा
30 सितम्बर 2019 द्वितीया तिथि – श्री ब्रह्मचारिणी पूजा
1 अक्टूबर 2019 – तृतीय तिथि – श्री चंद्रघंटा पूजा
2 अक्टूबर 2019 – चतुर्थी तिथि – श्री कुष्मांडा पूजा
3 अक्टूबर 2019 – पंचमी तिथि – श्री स्कन्दमाता पूजा
4 अक्टूबर 2019 – षष्ठी तिथि – श्री कात्यायनि पूजा
5 अक्टूबर 2019 – सप्तमी तिथि – श्री कालरात्रि पूजा
6 अक्टूबर 2019 – अष्टमी तिथि – श्री महागौरी पूजा , महा अष्टमी पूजा , सरस्वती पूजा
7 अक्टूबर 2019 – नवमी तिथि – श्री सिद्धिदात्री पूजा , महा नवमी पूजा , आयुध पूजा , नवमी होम।
10 अक्टूबर 2019 – दशमी तिथि – दुर्गा विसर्जन , विजया दशमी , दशहरा।
10 अक्टूबर 2019 – प्रात: 6.22 से 7.25 मिनट तक का समय कन्या और तुला का संधिकाल होगा जो देवी पूजन की घट स्थापना के लिए अतिश्रेष्ठ है।
वहीं महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन ( kanya pujan ) किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है।
इस दिन तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को और साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का ) को खीर , पूरी , हलवा , चने की सब्जी आदि खिलाए जाते है।
वैसे तो कई लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार नवमी और दशमी को कन्या पूजन करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं। शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में दुर्गा पूजा उत्सव के दूसरे दिन महाष्टमी मनाई जाती है। इसे महा दुर्गाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन मिट्टी के नौ कलश रखकर देवी दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान कर पूजन किया जाता है। महाष्टमी पर कुमारी पूजा भी होती है। इस अवसर पर छोटी बालिकाओं का श्रृंगार कर उनकी आराधना की जाती है।
नवरात्रि में अष्टमी तिथि पर मां भगवती के आठवें स्वरूप में महागौरी की आराधना का विधान है। महागौरी के नाम के अर्थ में महा मतलब महान/बड़ा और गौरी मतलब गोरी। देवी का रंग गोरा होने के कारण ही उन्हें महागौरी कहा गया। इनकी पूजा, आराधना करने से सोम चक्र जाग्रत होता है। जिससे जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य के समस्त दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं। देवी के इस आठवें स्वरूप महागौरी को ऐश्वर्य देने वाली और अन्नपूर्णा भी कहा गया है। इनकी कृपा से जीवन में आर्थिक समृद्धि आती है।
माता महागौरी के मस्तक पर चंद्र का मुकुट है तथा मणिकान्त यानि मणि के समान कांति वाली चार भुजाएं हैं। इनमें दो हाथों में क्रमश: त्रिशूल व डमरू और तीसरा हाथ वर मुद्रा में और चौथा हाथ अभय मुद्रा में है। इनके कानों में रत्न जड़ित कुंडल झिलमिल करते हैं। इनका वाहन बैल है तथा इनको भोग में हलवा प्रिय है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि देवी पार्वती ने शिव को वर के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था जिससे उनका शरीर काला हो गया था। उसके बाद तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने दर्शन दिया और गंगा जल से देवी को नहलाया। तब से देवी का रंग गोरा हो गया और उनका नाम महागौरी पड़ा।
नवरात्रि में अष्टमी और नवमी दोनों दिन कन्या पूजन किया जाता है, लेकिन शास्त्रों में अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता के अनुसार नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
– नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।
– दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं।
– तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
– चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है, इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। – पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है।
– छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
– सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है, चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
– आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है।
– नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है, इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं।
– दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है, और माना जाता है कि सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है।
2 वर्ष की कन्या- कौमाटर्यै नमः ।।
3वर्ष की कन्या- त्रिमूर्तये नमः ।।
4वर्ष की कन्या- कल्याण्यै नमः ।।
5 वर्ष की कन्या- रोहिण्य नमः ।।
6 वर्ष की कन्या- कालिकायै नमः ।।
7 वर्ष की कन्या- चण्डिकार्य नमः ।।
8 वर्ष की कन्या- शम्भव्यै नमः ।।
9 वर्ष की कन्या- दुर्गायै नमः ।।
10 वर्ष की कन्या- सुभद्रायै नमः ।।
– कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है।
– मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है।
– गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं।
– अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए। कन्या को वस्त्र दें ।
– उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। चंदन कुमकुम का टीका लगाकर मंत्र से नमस्कार करें।
– फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य शामिल करें।
वहीं जानकारों के मुताबिक नौ कन्या नहीं मिलने की स्थिति में दो कन्याओं का भी पूजन करने का विधान है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार वैदिक ज्योतिष के अनुसार माता महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती है, इसलिए माना जाता है कि इनकी पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम हो जाते हैं।