दस दिन पहले मिली थी सूचना
जानकारी के मुताबिक ग्वालियर पुलिस को करीब दस दिन पहले सूचना मिली थी कि हेरोइन ड्रग की बड़ी खेप ग्वालियर में पहुंची है। जिसे बेचने घूम रहे तस्कर विष्णु यादव और राजवीर गुर्जर से क्राइम ब्रांच की टीम ने ही डील कर ली। जैसे ही यह लोग हेरोइन की खेप लेकर ग्वालियर आए तो, इन्हें पुलिस ने धर दबोचा। पुलिस को इनके पास से 370 ग्राम हेरोइन बरामद हुई है।
पुलिस को नहीं हो रहा कहानी पर यकीन
हेरोइन के साथ पकड़े गए तस्कर पुलिस से बोले कि पहली बार वह सप्लाई करने आए थे। लेकिन पुलिस को इनकी बताई इस कहानी पर यकीन नहीं है, इसके चलते पुलिस लगातार इनसे पूछताछ कर रही है। आज इन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा। इन्होंने जिस मास्टरमाइंड का नाम पुलिसक को बताया है, उस तक पहुंचने के लिए एएसपी राजेश दंडोतिया और क्राइम ब्रांच के डीएसपी ऋषिकेष मीणा को एसएसपी अमित सांघी ने टास्क दिया है। ग्वालियर पुलिस के मुताबिक जल्द ही मास्टरमाइंड और हेरोइन के इस नेटवर्क से जुड़े दूसरे एजेंटों को पकड़ा जाएगा। ताकि, इस नशे के इस कारोबार से जुड़े नेटवर्क को खत्म किया जा सके।
कई ऐसी वारदातें आई हैं सामने
शहर में कई ऐसी वारदातें सामने आई हैं जिनमें साफ हो गया है कि युवा नशे के आदी है और नशे की लत को पूरा करने के लिए वह चोरी, डकैती से लेकर मर्डर तक कर रहे हैं। ऐसे एक दो नहीं बल्कि कई उदाहरण सामने भी आ चुके हैं। लेकिन बावजूद इसके नशे की गिरफ्त से युवाओं को बचाने कुछ खास प्रयास होते नजर नहीं आते। खासकर टिकिट के नशे ने शहर के कई परिवारों को ऐसा दर्द दिया है कि वह जिंदगी भर इस दर्द को नहीं भूल पा रहे हैं। उनके होनहारों को नशे ने मौत का दरवाजा दिखा दिया है। तो इधर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो नशा मुक्ति के लिए अपने बच्चों का इलाज करवा रहे हैं। एक निराश पिता अशोक हैं जिन्होंने बताया कि उनके बेटे को स्मैक की लत लग गई और अब वह उसे नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करा कर आए हैं। तो बेरोजगारी के चलते कई युवाओं को नशे की लत ने घेर लिया। इतना ही नहीं कई युवा तो नशे की लत से डिप्रेशन के भी शिकार हो गए हैं।
बच्चों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है
उत्तर प्रदेश के बाद मध्यप्रदेश देशभर में ऐसा दूसरा राज्य हैं, जहां बच्चों में नशे की लत सबसे ज्यादा है। संख्या के लिहाज से देखा जाए तो देशभर में नशे की लत की गिरफ्त में मौजूद बच्चों में हर 10वां बच्चा मध्यप्रदेश का है।
सूंघकर नशा करने वाले भी कम नहीं
इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, नीमच मंदसौर, रतलाम, झाबुआ और रीवा शामिल हैं। इन जिलों में सर्वाधिक समस्या नशीला पदार्थ सूंघकर नशा करने की है। बच्चों में पाए जाने वाले नशों में इस तरह के नशेडियों की संख्या पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ी है। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने नशा मुक्ति और लत के शिकार लोगों के इलाज और पुनर्वास के लिए ‘नेशनल एक्शन प्लान फॉर ड्रग डिमांड रिडक्शन’ नाम से एक कार्यक्रम तैयार किया है, जो 2023 तक चलेगा।
ये फैक्ट करते हैं हैरान
आपको जानकर हैरानी होगी कि नशे का यह कारोबार मध्यप्रदेश के कई शहरों के युवाओं की रगों में जहर घोल रहा है और अब इसके आदी युवाओं को महंगे नशे के जाल में फंसाया जा रहा है। जी हां पिछले कुछ वर्षों तक जहां नशे का सस्ता सामान युवाओं के लिए मुहैया था। वहीं अब हाईप्रोफाइल ड्रग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। चौंकाने वाला खुलासा यह है कि वर्ष 2021 में जनवरी से दिसंबर तक पूरे एक साल में करीब 1 लाख किलो नशे का सामान पोपी हस्क बराम किया गया था। सस्ती कीमत और आसानी से मिलने वाले नशे के इस सामान की जगह अब महंगा नशा लेता जा रहा है। इससे साफ है कि राजधानी समेत प्रदेश के कई जिलों में खतरे की घंटी बज चुकी है। नशा मुक्ति पर लाखों रुपए खर्च के बावजूद आज हालात बदतर है।
जरूर पढ़ें ये फैक्ट
– 2019 में 35115 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 2912 मामले दर्ज किए गए। जबकि 3594 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
– 2020 में 45666 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 3330 मामले दर्ज किए गए। जबकि 4387 आरोपी गिरफ्तार किए गए।
-2021 में 29314 किलो पोपी हस्क जब्त की गई। कुल 3953 मामले दर्ज किए गए। जबकि 5263 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
– 2021 में जनवरी से दिसंबर तक कुल 29, 314 किलो पोपी हस्क जब्त की गई।
– ऊपर लिखे फैक्ट नशे के कारोबार का सिर्फ आधा फीसदी हिस्सा है। यानी जब्ती ही एक लाख किलो से ज्यादा की है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश में नशे के कारोबार का जाल किस स्तर तक फैला है।
अफीम से बनने वाला नशा पोपी हस्क
पोपी हस्क अफीम से बनने वाला नशा है। बीज से पौधा बनता है और पौधे में फूल लगता है। अफीम की फसल के डोडों पर चीरा लगाकार इसमें से सबसे पहले अफीम और बाद में पोस्ता दाना यानी खसखस निकाला जाता है। इनके निकल जाने के बाद जो सूखा भाग बचता है, उसे डोडा कहते हें। इसमें बेहद कम मात्रा में मॉरफीन पाया जाता है। जो पोस्ता दाना होता है। उसमें अफीम के कण मिल जाते हैं। इन्हें साफ किया जाता है। छलनी लगाई जाती है। इसमें जो अवांछनीय पदार्थ निकलता है, उसे नष्ट किया जाना चाहिए। लेकिन उसे नष्ट नहीं किया जा रहा, बल्कि उसकी तस्करी की जा रही है। यही पोप हस्क है। जिसे मिलावट कर बेचा जाता है। प्रदेश के नीमच-मंदसौामे अफीम की खेती होती है। करीब 40 हजार किसान पट्टे पर इसकी खेती करते हैं।
क्यों बन जाते हैं इसके आदी
पोपी हस्क सस्ता होता है इसलिए लड़के-लड़कियां इसे आसानी से पॉकेटमनी से पैसे निकालकर इसे खरीद लेते हैं। जब पैसे नहीं होते तो युवा पैडलर भी बन जाते हें। ताकि उनके दोस्तों के बीच सप्लाई कर पैसा कमा सकें और अपने नशे की लत को पूरा कर सकें। पोपी हस्क को चाय या दूध के साथ भी लिया जा सकता है।
हेरोइन – इसे क्वीन ऑफ ड्रग्स भी कहा जाता है। यह एक तरह का पाउडर है, जिसे नाक या मुंह या स्मोक के जरिए इस्तेमाल किया जाता है। यह काफी महंगा होता है। और शरीर पर भी इसे विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। इसकी लत छुड़ाना बेहद मुश्किल है।
कोडीन, ओपिएट (नारकोटिक) एनालजेसिक नामक दवाओं की एक श्रेणी और एंटीट्यूसिव नामक दवाओं की एक श्रेणी से संबंध रखता है, जब खांसी कम करने के लिए कोडीन का इस्तेमाल किया जाता है तब यह मस्तिष्क के भाग में, खांसी के कारक की गतिविधि को कम करने में मदद करता है। कम उम्र के बच्चे, किशोर इस तरह के नशे की गिरफ्त में आसानी से आते जा रहे हैं। कफ सीरप की आसानी से उपलब्धता की वजह से बच्चों की पहुँच में भी आसान होते हैं। दूसरे नशों की तरह इसके लिए जोखिम नहीं उठाना पड़ता है। शराब से ज्यादा नशा होने के कारण इसका उपयोग बढ़ा है। जानकार बताते हैं कि इसका सेवन सीक्रेट डोज की तरह भी रहता है। किसी को भनक भी नहीं लगती। कुल मिलाकर उपलब्धता जितनी आसान है सेवन भी उतना ही आसान
चलाए जा रहे हैं अभियान
आपको बता दें कि वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने एम्स की मदद से देशभर में नशे की स्थिति पर सर्वे करवाया था। इसमें प्रदेश के 15 शहरों में नशामुक्ति अभियान की आवश्यकता बताई गई थी। इसके तहत रीवा, जबलपुर, भोपाल, छिंदवाड़ा, ग्वालियर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, दतिया, होशंगाबाद, मंदसौर, नरसिंहपुर, रतलाम, सागर और सतना में 15 अगस्त 2020 से नशा मुक्ति अभियान चलाया गया था। यह अभियान 31 मार्च 2021 तक चला। सामाजिक न्याय विभाग की ओर से भी प्रदेश में 20 नशा मुक्ति सह पुनर्वास केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। जो हर साल हजारों युवाओं को नशे की गिरफ्त से बाहर लाने के लिए मददगार साबित होते हैं।
पत्रिका के एक स्टिंग ऑपरेशन में हुए थे खुलासे
मध्यप्रदेश की राजधानी में भी नशे का कारोबार खुलकर चल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में पत्रिका की ओर से किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में कई चौकाने वाले खुलासे यह भी हुए थे। आए दिन बच्चे भोपाल के टूरिस्ट स्पॉट पर नशा करते हुए नजर आ जाते हैं। इसके अलावा नशे का व्यापार करने वाले लोग यहां आने वाली स्कूल कॉलेज की लड़कियों और पर्यटकों को भी नशे का आदी बना रहे हैं। इस दौरान सूत्रों से यह भी पता चला कि कलिया सोत और केरवा क्षेत्रों में नशेडिय़ों की मंडली जमती है। यहां पुलिस भी गश्त करती है,जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में ये नशा करने वालों को पकड़ भी लेती है लेकिन, कई बार पैसे लेकर छोड़ दिया जाता है। उन्हें वहां से भगाते नहीं। स्टूडेंट्स ने ये भी बताया कि वन विभाग वाले तो आज तक नहीं दिखाए दिए। इस तरफ लोगों का आना-जाना कम है इस कारण जमावड़ा लगता है।
इन क्षेत्रों में बड़े कारोबारी
चरस और गांजे के बड़े कारोबारी शहर के बरखेड़ी, काजी कैम्प, इतवारा, बरखेड़ा पठानी, कोलार, बाग सेवनिया, कटारा हिल्स आदि इलाकों में हैं। पूर्व में पुलिस इन क्षेत्रों में बड़ी तादाद में मादक पदार्थ बरामद भी कर चुकी है। इसके अलावा छोटे-छोटे गांजा-चरस विक्रेता गली-कूचे में हैं।
मॉडर्न और मैच्योर दिखाने यूथ शुरू करते हैं नशा
-डॉ. प्रीतेश गौतम, मनोचिकित्सक व ड्रग डी-एडिक्शन एक्सपर्ट कहते हैं कि अपने को मैच्योर और मॉडर्न दिखाने के चक्कर में यंगस्टर्स नशा शुरू कर देते हैं। इससे उनकी इम्युनिटी पावर, लिवर, फेफड़े आदि प्रभावित हो जाते हैं, जिससे अवसाद, पागलपन, लड़ाई-झगड़ा, चोरी, आत्महत्या की प्रवृत्ति पनपती है। वे असामाजिक हो जाते हैं। सबसे पहले मानसिक फिर शारीरिक लक्षण उभरते हैं।