सरकार ने फिर से 5000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया। यह कर्ज तीन हिस्सों में लिया। इसमें दो हजार करोड़ रुपए का कर्ज 20 साल के लिए, अन्य दो हजार करोड़ का कर्ज 21 साल के लिए और एक हजार करोड़ का कर्ज 22 साल के लिए लिया गया है। राज्य में 3.31 लाख करोड़ का कर्ज लगातार कर्ज लेने के कारण अब हालत यह है कि राज्य पर बजट से ज्यादा कर्ज हो गया है। राज्य का बजट 3.14 लाख करोड़ रुपए का है, जबकि कर्ज बढ़ते-बढ़ते 3.31 लाख करोड़ रुपए से अधिक पहुंच चुका है।
खजाने की हालत खस्ता होने के बाद फिजूलखर्ची कम करने के प्रयास तो कर रही है, लेकिन ठाठ भी कम नहीं हो रही। ताजा मामला मंत्रियों के बंगलों का है। राज्य सरकार ने मंत्रियों को बंगले आवंटित किए। इन बंगलों पर साज-सज्जा पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। मंत्रियों के लिए नए वाहन खरीदे गए। इतना ही नहीं, मंत्रियों के काफिले में दौडऩे वाली गाडिय़ों की संख्या भी खर्च बढ़ा रही हैं।
कर्ज लेना गलत नहीं
सरकारें समय-समय पर कर्ज लेती हैं। कर्ज लेना गलत नहीं है। लेकिन इसकी सीमा होनी चाहिए। कर्ज का बोझ बढऩे का असर सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। राजकोषीय घाटा बढ़ता है। इसका असर बजट पर पड़ता है। विकास कार्य आदि प्रभावित होते हैं। कर्ज लेने से बचने की कोशिश होनी चाहिए। वित्तीय अनुशासन जरूरी है। सरकार फिजूल खर्ची कम कर आय के साधन बढ़ाए। टेक्स लीकेज कम करे।
-राघवजी, वित्तीय मामलों के जानकार एवं पूर्व वित्त मंत्री