गजेन्द्र भोंगाड़े ने इश्योरेंस कंपनी के खिलाफ आयोग में याचिका लगाई थी। जिसमें उन्होंने आक्षेप लगाए थे कि अक्टूबर 2011 में 22 लाख 95 हजार में टाटा मॉडल का एक ट्रक खरीदा था। इसका बीमा भी था, लेकिन 16 अक्टूबर 2012 को पांडुरना रोड पर ट्रक में अचानक आग लग गई। ट्रक में माल भरा हुआ था।
ट्रक जलकर खाक हो गया। गजेंद्र ने इसकी एफआइआर करवाई और बीमा कंपनी को सूचना दी। लेकिन कंपनी ने टोटल लॉस देने से इंकार कर दिया। कंपनी के सर्वे में बताया गया कि ट्रक की केवल 75 प्रतिशत बीमा राशि ही मिल पाएगी। जलने के बाद ट्रक में सुधार संभव नहीं था। इसलिए गजेंद्र ने 21 लाख 80 हजार 250 रुपए भुगतान कंपनी से मांगा। लेकिन कंपनी ने देने से इंकार कर दिया।
गजेंद्र ने इसे चुनौती दी और आयोग पहुंच गए। करीब 8 साल की सुनवाई के बाद राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष जस्टिस शांतनु एस. केमकर और पीठासीन सदस्य डॉ. मोनिका मलिक की बैंच ने फैसला सुनाया कि बीमा कंपनी ग्राहक से उसके जीवन, वस्तु या संपत्ति आदि के नुकसान की भरपाई के नाम पर बीमा कराने के बाद नुकसान की दशा में भरपाई करने से नहीं बच सकती।
लगातार सुनवाई चलती रही और बीमा कंपनी का तर्क सुना। उपभोक्ता आयोग ने अपने फैसले में कहा कि बीमा कंपनी के सर्वेयर की ओर से 22 अक्टूबर 2011 को पेश की गई रिपोर्ट में लिखा है कि बीमित ट्रक के कांच
इंजन केबिन की छत केविनेट, स्टीयरिंग सिस्टम फ्रं ट एक्सल प्लस कूलिंग सिस्टम रोड स्प्रिंग आदि प्रमुख हिस्सा जला जला हुआ है। इस आधार पर उपभोक्ता आयोग ने द न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को आदेश दिया कि बीमाधारक को 37 लाख 65 हजार 140 रुपए 18 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ भुगतान करे। ब्याज की गणना 16 अक्टूबर 2011 से आयोग के आदेश दिनांक तक की जाएगी।