पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के निधन बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों की भारी भीड़ अस्पताल में जमा हो गई। डॉक्टरों ने बताया कि श्रीनिवास के फेफड़े में इंफेक्शन था। तिवारी परिवार उनकी सेहत को फिक्रमंद थे, लेकिन शुक्रवार की सुबह पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के निधन के बाद सभी को गहरा दुख हुआ।
प्रदेश भर में शोक की लहर…
कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीनिवास तिवारी के निधन पर पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है। वहीं प्रदेश के कई कांग्रेस के दिग्गज इसकी सूचना मिलते ही रीवा रवाना हो गए। राजनीति में श्रीनिवास तिवारी को व्हाइट टाइगर नाम से भी जाना जाता था।
व्हाइट टाइगर के नाम से मशहूर थे तिवारी
1980 और 90 के दशक में विंध्य की राजनीति व्हाइट टाइगर white tiger नाम से प्रसिद्ध श्रीनिवास तिवारी के इर्द-गिर्द घूमती थी। उनकी पहचान प्रदेश में एक दिग्गज नेता के रूप में होती थी। इतनस ही नहीं दिंगवत सीएम अर्जुनसिंह भी उनकी राजनीति के कायल थे। वहीं दिग्विजय सिंह- तिवारी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। उनके ही शासनकाल में वे मप्र विधानसभा के अध्यक्ष पर काबिज हुए। पहली बार उन्होंने विस अध्यक्ष के तौर पर विस में मार्शल का उपयोग किया। इसके बाद वे सख्त विस अध्यक्ष के रूप में जाने जाने लगे। तिवारी के कांग्रेसी ही नहीं बीजेपी में भी कई अच्छे मित्र हैं। इनमें सबसे पहला नाम वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का आता है।
कई बार हो चुके है भर्ती
93 वर्षीय श्रीनिवास तिवारी को इससे पहले भी कई बार स्वास्थ्य चेकअप के लिए संजय गांधी चिकित्सालय में भर्ती कराया जा चुका है। अस्पताल में स्थिति में सुधार होने के बाद वह अपने अमहिया स्थित घर में ही नियमित दवाएं लेते रहे हैं।
लेकिन मंगलवार को रात में अचानक सांस लेने में तकलीफ होने के कारण उन्हें अस्पताल congress leader shrinivas tiwari passed away में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान उनकी स्थिति में सुधार था, लेकिन चिकित्सकों ने उच्च चिकित्सकीय सुविधां की जरुरत बताते हुए दिल्ली रेफर कर दिया है। डॉ. मनोज इंदुलकर ने बताया कि उनकी गंभीर हालत को देखते हुए दिल्ली रेफर किया गया था।
दोपहर में एयर एंबुलेंस से गए
संजय गांधी चिकित्सालय में भर्ती पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी की तबीयत स्थिर होने पर बुधवार को चिकित्सकों ने दिल्ली के लिए रेफर कर दिया। सुबह 10.30 बजे में रीवा एयरपोर्ट काम चलने के कारण सतना रवाना कर दिया है। दोपहर 12.30 बजे सतना हवाई पट्टी से एस्कार्ट हॉस्पिटल से आई एयर एम्बुलेंस से दिल्ली ले जाया गया है। दिल्ली में रेफर होने की खबर जैसे ही समर्थकों को लगी बड़ी संख्या में लोग अस्पताल पहुंचने लगे। चिकित्सकों ने बताया कि उन्हें सीने में संक्रमण के चलते सांस लेने में तकलीफ हो रही है।
1973 में कांग्रेस में हुए शामिल
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी congress leader shrinivas tiwari ने ही 1948 में समाजवादी पार्टी का गठन किया। जिसके बाद 1952 में समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी बनकर विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। श्रीनिवास जमींदारी उन्मूलन के लिए कई आंदोलन संचालित किए जिसमें कई बार उन्हे जेल भी जाना पड़ा। सन् 1972 में समाजवादी पार्टी से मध्यप्रदेश विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। धीरे-धीरे उन्होंने राजनैतिक की ओर रूख करते हुए सन् 1973 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
जिसके बाद सन् 1977, 1980 और 1990 में विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। सन् 1980 में अर्जुन सिंह के मंत्रिमंडल में लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मंत्री भी बने।
सन् 1973 से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रबंध समिति के सदस्य अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा की कार्य परिषद् में विश्वविद्यालय की स्थापना से ही कई बार सदस्य बने। सन् 1990 से सन् 1992 तक मध्यप्रदेश विधान सभा के उपाध्यक्ष रहे। बाद में सन् 1993 में विधान सभा सदस्य निर्वाचित होकर अक्टूबर 1993 से फरवरी 1999 तक मध्यप्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष रहे। 1998 में सातवीं बार विधान सभा सदस्य निर्वाचित होकर फरवरी, 1999 से 12 दिसम्बर, 2003 तक मध्यप्रदेश विधान सभा अध्यक्ष पद पर रहे।
श्रीनिवास तिवारी का जन्म उनके ननिहाल में ग्राम शाहपुर जिला रीवा में 17 सितम्बर 1926 को हुआ। श्रीनिवास तिवारी का गृह ग्राम तिवनी जिला रीवा है। उनकी माता का नाम कौशिल्या देवी और पिता का नाम पं. मंगलदीन तिवारी है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गृह ग्राम तिवनी मनगंवा और मार्तण्ड स्कूल रीवा में हुई। उन्होंने एमए, एलएलबी, टीआरएस कॉलेज रीवा (तत्कालीन दरबार कॉलेज) से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
श्रीनिवास तिवारी छात्र जीवन से ही स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी, सामंतवाद के विरोध में कार्य सक्रिय रहे। यहीं से इन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1952 मे सबसे कम उम्र के विधायक बनने का गौरव भी श्रीनिवास ने हासिल किया। इसके बाद 1957 में 1972 से 1985, 1990 से 2003 तक लगातार जीत दर्ज की। सन् 1980 में प्रदेश सरकार में मंत्री, 23/3/1990 से 15/12/1992 विधानसभा उपाध्यक्ष, और 1993 से 2003 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे।
वैसे तो श्रीनिवास की कई उपलब्धियां रही, लेकिन इनमें से भी राजनीति, समाजसेवा, प्रशासन एवं साहित्य के क्षेत्र में इनका उल्लेखनीय कार्य रहा हैं।
कर्मठ बलिष्ठ भुजाएं सिर में लटकती हुई आबध्य शिखा और धवल वस्त्रों से सुसज्जित देह। इस व्यक्ति में दूसरों के अन्तः में प्रवेश करके उसके मंगल रूप को पहचानने की अद्भुत प्रतिभा और शक्ति है। ऐसे व्यक्ति को यहाँ की वायु ने पलने में झुलाया, पुचकारा और दुलराया है। यहाँ के पानी ने इसे यश प्रशस्ति का अमरत्व प्रदान किया। तिवनी का ऐसा यह अमूल्य रत्न आज अपने आलोक से पूरे देश को आलोकित कर रहा है।
कहते हैं होनहार विरवान के होत चीकने पात। श्रीनिवास तिवारी बचपन से ही प्रतिभावान एवं विलक्षण थे। उनका जन्म तिवनी ग्राम के प्रतिष्ठित मध्यवर्गीय किसान मंगलदीन तिवारी के तृतीय पुत्र के रूप में ननिहाल शाहपुर में 17 सितम्बर 1926 की पावन वेला में हुआ। माता कौशिल्या देवी सहृदय महिला थीं जिनका संस्कार श्रीतिवारी को मिला।
सतना जिला के झिरिया ग्राम के पं. रामनिरंजन मिश्र की पुत्री श्रवण कुमारी के साथ श्रीतिवारी का विवाह दिनांक 21/5/1937 दिन शुक्रवार को 11 वर्ष की अवस्था में सम्पन्न हुआ। श्रीनिवास तिवारी के दो पुत्र अरुण तिवारी जो दुर्भाग्य से अब इस दुनियां में नहीं हैं व सुन्दरलाल तिवारी हैं।
श्रीनिवास तिवारी की शिक्षा-दीक्षा गांव से ही शुरू हुई। मनगवाँ बस्ती के विद्यालय से उन्होंने अपनी शिक्षा आरंभ की जो 1950 में दरबार कालेज रीवा से एलएलबी व 1951 में हिन्दी साहित्य से एमए करने के साथ समाप्त हुई। छात्र जीवन से ही उन्होंने राजनीति में रुचि लेना शुरू कर दिया था। कक्षा 9 वीं में प्रवेश के बाद एक डिबेटिंग क्लब की स्थापना की थी जिसके सदस्य उस समय के मेधावी छात्र थे।
हम जिस राजनेता के बारे में बात करने जा रहे हैं उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए वह इस मायने में काफी कम है कि उन्होंने विंध्य में किसान मजदूरों को उनका हक दिलाने के लिए सामंतवाद के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी वह स्तुत्य है। न केवल रीवा बल्कि विंध्य के विकास में उनका योगदान इतना अधिक है या यूँ कहें कि विंध्य को विकास की दिशा देने का काम उन्होंने ही किया तो यह निखालिस सच्चाई होगी। रीवा को महानगरों की तर्ज पर विकास की राह पर लाकर उस को पहचान दिलाने का काम यदि किसी राजनेता ने किया है तो वे हैं पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी, जिन्होंने रीवा को विकास की कई सौगातें दी जो आज रीवा की पहचान बन गई है।
श्रीनिवास तिवारी का राजनैतिक सफर कांटो भरा ही रहा है। बचपन से ही श्रीनिवास तिवारी पर स्वतंत्रता आन्दोलन एवं समाजवादी आन्दोलन का प्रभाव पड़ा। जब वे कक्षा 8वीं में मार्तण्ड स्कूल में छात्र थे, तभी स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये थे। दरबार कालेज में आकर उन्होने डिबेटिंग क्लब बनाया एवं दरबार कालेज के महामंत्री भी रहे। उनमें अद्भुत संगठनात्मक क्षमता थी, छात्र जीवन में राजनीति का जो अंकुर फूटा वह समय के साथ आकार लेता गया।
श्रीतिवारी समाजवादी विचारधारा व समाजवादी आन्दोलन से जुड़े। लोहिया के समाजवाद से वे प्रभावित थे और डाॅ. राम मनोहर लोहिया का उन्हें भरपूर स्नेह मिला। जमींदारी प्रथा का विरोध करते हुए उन्हें कृष्णपाल सिंह, ओंकारनाथ खरे, श्रवण कुमार भट्ट, चन्द्रकिशोर टण्डन, हरिशंकर, मथुरा प्रसाद गौतम, ठाकुर प्रसाद मिश्र, सिद्धविनायक द्विवेदी, जगदीश चन्द्र जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री, चन्द्रप्रताप तिवारी, अच्युतानंद मिश्र, महावीर सोलंकी, शिव कुमार शर्मा तथा लक्ष्मण सिंह तिवारी आदि का साथ मिला।
श्रीनिवास तिवारी ने जमींदारी प्रथा के विरोध में मध्य प्रदेश की विधान सभा में लगातार सात घण्टे तक भाषण देकर इतिहास रचा था। श्रीतिवारी मूलतः किसान के बेटे थे। वे किसानों का दुख दर्द समझते थे। तत्कालीन समय में सामंतों द्वारा किसानों का व्यापक शोषण किया जा रहा था।
इसी चलते 1948 में सरकार ने टेनेंसी एक्ट में किसानों के लाभ के लिए संशोधन करने की घोषणा की। इस आन्दोलन में श्रीतिवारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। फलस्वरूप समाजवादी नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी गई। इन्हें रीवा से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी और श्रीतिवारी सहित अन्य नेताओं को जेल भेज दिया गया।
सरकार द्वारा विंध्य प्रदेश के विलय के प्रस्ताव का श्रीतिवारी ने पुरजोर विरोध किया था। 1948 में विंध्य प्रदेश का निर्माण हुआ था लेकिन 1949 में विंध्य के विलय का प्रस्ताव किया गया लेकिन समाजवादियों के उग्र आन्दोलन के कारण विंध्य के विलय का मसौदा स्थगित हो गया था। सरदार पटेल विलय की नीति पर अडिग थे जिससे मसौदे पर हस्ताक्षर कराने के लिए वी.पी. मेनन को रीवा भेजा गया जहाँ हस्ताक्षर करने के लिए अन्य राजा भी किले में आकर रुके थे।
समाजवादी पार्टी से 1952 के प्रथम आम चुनाव में जब श्रीनिवास तिवारी को मनगवां विधान सभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया तब उनके सामने भारी आर्थिक संकट था और यह समस्या थी कि चुनाव कैसे लड़ा जाए? ऐसे में गांव के ही दिवंगत कामता प्रसाद तिवारी ने कहा चुनाव तो लड़ना ही है धन की व्यवस्था मैं करूंगा।
24 वर्ष की अल्पायु में 1952 में पहली बार विधायक चुने जाने के बाद श्रीतिवारी की राजनीति में सक्रिय भूमिका प्रारंभ हुई। समाजवादी आन्दोलन से जुड़े होने के कारण श्रीतिवारी ने सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए सड़क से लेकर विधानसभा तक अपनी बात रखी। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि विंध्य प्रदेश का अकाल यदि किसी तरह से रोका जा सकता है तो केवल सिंचाई के साधनों को विकसित करने के बाद ही रोका जा सकता है।
उन्होंने वनों के संरक्षण, दूर संचार के विस्तार, गृह उद्योग, शिक्षा की गुणवत्ता, पर्याप्त बिजली, यातायात व्यवस्था, नगर के सौंदर्यीकरण, स्वच्छ जलापूर्ति, कर्मचारी हितों का ख्याल, दस्यु समस्या से निजात, पंचायतीराज के विस्तार, सहकारी संस्थाओं की सक्रियता, विंध्य में विश्वविद्यालय की स्थापना, रेल सुविधा के लिए विधान सभा में लड़ाई लड़ी जिसका नतीजा है कि विंध्य में आज ये सभी सुविधाएँ मौजूद हैं।
विंध्य प्रदेश भूमि की मालगुजारी एवं काश्तकारी विधेयक 1953 पर अपने भाषण में किसानो का पक्ष लेते हुए श्रीनिवास तिवारी ने कहा था कि आज भी मैं कहता हूँ कि लाखों-करोड़ों किसानों की जन्मजात गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए आज हम सब इस विधान सभा में बैठकर ऐसे कानून एक ऐसे विधेयक का निर्माण करें जो जनहित से संबंध रखता हो और जो वास्तविकता की कसौटी पर कसा जा सकता है।
किसानों की समस्याएँ पूरे तौर से एक नजर में अगर आप कहें तो कह सकते हैं कि जोतने वाले को भूमि का स्वामित्व मिलना चाहिए। दूसरी आवश्यकता है परती जमीन तोड़ने के लिए भूमि सेना का निर्माण करें। तीसरी छोटी मशीनों एवं उद्योगों की वृद्धि की जाए एवं शासन का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए।
1952 से 1957 तक श्रीतिवारी ने सदन में विपक्ष की भूमिका निभाई। विपक्ष के एक विधायक के रूप में उन्होने विंध्य के विकास के लिए विधान सभा में पूरी मुखरता के साथ अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व को देखा और परखा था लेकिन 1957 से 1972 तक का काल श्रीतिवारी के जीवन में राजनीति के संक्रमण का काल था। इस अवधि वे लगातार तीन विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के हाथ पराजित हुए।
1985 में टिकट नहीं मिलने के कारण श्रीतिवारी विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ पाए थे, जिस पर उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि टिकट का न मिलना कांग्रेस के शीर्षस्थ नेतृत्व का कारण नहीं मध्यान्ह का अवरोध है।