मध्यप्रदेश के संसदीय इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ जब मुयमंत्री गर्भगृह में आए हों। स्पीकर नरेन्द्र सिंह तोमर ने दोनों दलों के सदस्यों को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन हंगामा शांत न होने पर कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी। इसके बाद भी सदस्यों में तीखी बहस होती रही। नारेबाजी करते रहे।
हालांकि स्पीकर तोमर ने नेता प्रतिपक्ष द्वारा की गई टिप्पणी सहित पूरी कार्यवाही विलोपित कर दी। 10 मिनट बाद जब कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने स्पीकर की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि सदन की परंपरा रही है कि कभी भी किसी दूसरे सदन की चर्चा इस सदन में नहीं की जाती है। यदि बहुत जरुरी हो, तो कम से कम आपको सूचित करें, फिर आप अनुमति दें, उसके बाद बोलें। विजयवर्गीय ने स्पीकर से आग्रह किया कि वे इस मामले में व्यवस्था दें।
विपक्ष भी दे प्रस्ताव
कांग्रेस विधायक भी सरकार को अपनी विधानसभाओं व जिले में नदियों को जोडऩे संबंधी प्रस्ताव दे सकेंगे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वक्तव्य में प्रस्ताव आमंत्रित किए। कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा के पूछे जाने पर कि ब्या कांग्रेस विधायक भी ये प्रस्ताव दे सकेंगे, इस पर मुख्यमंत्री डॉ. यादव की ओर से कहा गया कि मध्यप्रदेश को विकसित बनाने के लिए पक्ष-विपक्ष के सभी विधायक जन कल्याण के प्रस्ताव दे सकते हैं।
बेरोजगारी इतनी
बढ़ती बेरोजगारी को लेकर कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया। विधायक केतली में चाय लेकर पहुंचे। और इस दौरान नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सभी को चाय पिलाई। कहा कि प्रदेश में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ रही है। ऐसे में युवाओं के पास चाय बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं। आरोप लगाया कि सरकार ने दो लाख युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन कितने लोगों को नौकरी मिली है?
रखना चाहिए मर्यादा का ध्यान
मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा कि जो सदन का सदस्य नहीं है, उसके नाम का उल्लेख हो ही नहीं सकता। अगर सदन लंबा चलाना चाहते हैं तो हमें नियमों और परंपराओं का ध्यान रखना पड़ेगा। नेता प्रतिपक्ष को गलती स्वीकार करनी चाहिए। जिम्मेदार के पद हैं तो मर्यादा का ध्यान भी रखना चाहिए। स्पीकर से आग्रह किया कि आपको इस पर कार्यवाही करनी चाहिए।
स्पीकर बोले- सदन चर्चा के लिए
स्पीकर तोमर ने कहा कि जो भी परिस्थिति अचानक उत्पन्न हुई, यह बिल्कुल उपयुक्त नहीं। सदन चर्चा के लिए है। चर्चा नियम, प्रक्रियाओं के माध्यम से होती है। हमारी पहली जिअमेदारी है कि सारे नियम और प्रक्रिया का पालन हम करें। मर्यादाताओं का भी पालन करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा समय सदन चले तो सभी सदस्यों को सहयोग करना चाहिए। गर्भगृह में नहीं आते मुख्यमंत्री जानकार बताते हैं कि विधानसभा नियमावली के मुताबिक मुयमंत्री सउाा पक्ष के नेता होने के साथ सदन के नेता भी होते हैं, इसलिए सदन के नेता होने के कारण उनकी यह जिअमेदारी होती है कि वे सदन को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग करें। उनका दायित्व भी यही है। सदन में कई ऐसे मौके भी आए जब सीएम पर सीधे तौर पर टिप्पणी की गई, या फिर अन्य किसी मसले पर विरोध दर्ज कराना चाहते हैं तो वे तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन सीएम गर्भगृह में नहीं आते।
मेरी नजर में मप्र विधानसभा में सर्वाधिक तनावपूर्ण स्थिति तत्कालीन सीएम पटवा के कार्यकाल में आई थी जिसे हम चप्पल चूड़ी कांड के नाम से जानते हैं। एक बार ऐसी ही स्थिति शिवराज सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में आई थी, जब तत्कालीन कांग्रेस विधायक सदस्य कल्पना परुलेकर और राकेश चतुर्वेदी आसंदी पर चढ़ गए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने संयम बरता था। मामले को शांत करने का प्रयास हुआ था, ब्यांकि मुख्यमंत्री सउाा पक्ष का नेता होने के साथ ही सदन का नेता भी होता है।