2022 में मध्य एमपी बना था वुल्फ स्टेट
बता दें कि मध्य प्रदेश को 2022 में वुल्फ स्टेट का दर्जा दिया गया था। दरअसल भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अनुमान के अनुसार देश भर में हुई भेड़ियों की गणना में 3170 भेड़िये गिने गए थे। अकेले मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 772 भेड़िये पाए गए और भेड़ियों की सबसे बड़ी आबादी के साथ एमपी देशभर में अव्वल रहा था।शुरुआत में तीन भेड़िये पहनेंगे रेडियो कॉलर
मध्य प्रदेश में भेड़ियों को रेडियो कॉलर लगाने का मकसद बड़े सह-शिकारी-बाघों के साथ उनके सह-अस्तित्व का अध्ययन करना है। नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में भेड़ियों की पारिस्थितिकी का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के लिए आने वाले हफ्तों में तीन भेड़ियों को रेडियो कॉलर पहनाया जाएगा। ये तीन भेड़िए वे होंगे, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग झुंड का प्रतिनिधित्व करता है।दो साल के लंबे शोध का हिस्सा होगा ये अध्ययन
यह रेडियो टेलीमेट्री-आधारित अध्ययन, जो फरवरी 2024 में शुरू हुए एमपी राज्य वन अनुसंधान संस्थान (एसएफआरआई) द्वारा चलाए जा रहे दो साल के लंबे शोध का हिस्सा है, विशेष रूप से भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर बड़े सह-शिकारी-बाघों (जिन्हें 2018 में अभयारण्य में फिर से पेश किया गया था) के प्रभाव का अध्ययन करने पर केंद्रित है।नौरादेही है भेड़ियों का सबसे बड़ा घर
माना जाता है कि नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र के रूप में न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि, पूरे मध्य भारत में भारतीय भेड़ियों की सबसे बड़ी आबादी का घर है।रेडियो टेलीमेट्री पर आधारित पहला अध्ययन
भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन होगा जो 2025 तक पूरा हो जाएगा। देश में भेड़ियों की आबादी के संरक्षण के लिए रणनीति विकसित करने में बहुत मददगार साबित होगा। भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन, 2025 तक पूरा होने के बाद, देश के अन्य हिस्सों के लिए भेड़ियों की आबादी के संरक्षण की रणनीति विकसित करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।-डॉ. अब्दुल अलीम अंसारी, नौरादेही वन्य जीव अभ्यारण्य, नौरादेही
क्या है रेडियो कॉलर और कैसे करता है काम
-रेडियो कॉलर मशीन-बेल्टिंग का एक बड़ा रूप है। इसमें एक छोटा रेडियो ट्रांसमीटर और बैटरी लगी होती है।रेडियो कॉलर का उपयोग क्यों बढ़ा
- अधिकांश आवासों में जंगली जानवरों को ढूंढना मुश्किल हो सकता है। वहीं जंगली जानवर अक्सर घनी वनस्पतियों या उबड़-खाबड़ इलाकों में छिपे रहते हैं। ऐसे में रेडियो कॉलर का यूज बड़े काम का साबित होता है। इससे उनकी लोकेशन पहचानना आसान हो जाता है।
- रेडियो कॉलर का यूज जंगली जानवरों का टेलीमेट्री अध्ययन वास्तव में वन्यजीव अनुसंधान में बेहद उपयोगी और बेशकीमती तरीका है
- जंगली जानवरों के संरक्षण अध्ययन के लिए उपलब्ध पशु व्यवहार, प्रवासन, जनसंख्या गतिशीलता आदि की रिसर्च पर ज्यादातर साहित्य, दुनिया भर में लगभग आधी शताब्दी और भारत में तीन दशकों से ज्यादा समय तक इस तकनीक के असर के इस्तेमाल का ही परिणाम है।