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टाइगर, चीता के बाद अब भेड़िये भी पहनेंगे ‘रेडियो कॉलर’, नौरादेही में रिसर्च की तैयारी शुरू

वुल्फ स्टेट मध्य प्रदेश में पहली बार भेड़ियों (वुल्फ) को भी रेडियो कॉलर पहनाने की तैयारी, शुरू होगी रिसर्च

भोपालDec 24, 2024 / 04:13 pm

Sanjana Kumar

wolves wear radio collars
टाइगर और चीता के बाद अब वुल्फ स्टेट मध्य प्रदेश में पहली बार भेड़ियों (वुल्फ) को भी रेडियो कॉलर पहनाने की तैयारी की जा रही है। ताकि टाइगर और लेपर्ड जैसे बड़े शिकारी जानवरों के इलाके में भी उनके सह-अस्तित्व, मूवमेंट एरिया और पसंसीदा रहवास को गहराई से जाना जा सके। बता दें कि मध्य प्रदेश वन विभाग भेड़ियों को रेडियो कॉलर के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद यह तैयारी शुरू की है।
भेड़ियों को रेडियो कॉलर लगाने के प्रोजेक्ट पर जबलपुर स्थित स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट काम कर रहा है। सब ठीक रहा तो इसी माह भेड़ियों के अलग-अलग झुंड में से किसी एक को चुनकर यह कॉलर पहनाए जाएंगे।

2022 में मध्य एमपी बना था वुल्फ स्टेट

बता दें कि मध्य प्रदेश को 2022 में वुल्फ स्टेट का दर्जा दिया गया था। दरअसल भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के अनुमान के अनुसार देश भर में हुई भेड़ियों की गणना में 3170 भेड़िये गिने गए थे। अकेले मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 772 भेड़िये पाए गए और भेड़ियों की सबसे बड़ी आबादी के साथ एमपी देशभर में अव्वल रहा था।
खुशखबरी ये भी है कि मध्य प्रदेश में इनकी संख्या में लगातार इजाफा देखा जा रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एमपी की वाइल्ड लाइफ की शान ज्यादातर टाइगर रिजर्व और वन्यजीव अभयारण्यों में इनके झुंड नजर आने लगे हैं।

शुरुआत में तीन भेड़िये पहनेंगे रेडियो कॉलर

मध्य प्रदेश में भेड़ियों को रेडियो कॉलर लगाने का मकसद बड़े सह-शिकारी-बाघों के साथ उनके सह-अस्तित्व का अध्ययन करना है। नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में भेड़ियों की पारिस्थितिकी का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के लिए आने वाले हफ्तों में तीन भेड़ियों को रेडियो कॉलर पहनाया जाएगा। ये तीन भेड़िए वे होंगे, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग झुंड का प्रतिनिधित्व करता है।

दो साल के लंबे शोध का हिस्सा होगा ये अध्ययन

यह रेडियो टेलीमेट्री-आधारित अध्ययन, जो फरवरी 2024 में शुरू हुए एमपी राज्य वन अनुसंधान संस्थान (एसएफआरआई) द्वारा चलाए जा रहे दो साल के लंबे शोध का हिस्सा है, विशेष रूप से भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर बड़े सह-शिकारी-बाघों (जिन्हें 2018 में अभयारण्य में फिर से पेश किया गया था) के प्रभाव का अध्ययन करने पर केंद्रित है।

नौरादेही है भेड़ियों का सबसे बड़ा घर

माना जाता है कि नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र के रूप में न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि, पूरे मध्य भारत में भारतीय भेड़ियों की सबसे बड़ी आबादी का घर है।

रेडियो टेलीमेट्री पर आधारित पहला अध्ययन

भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन होगा जो 2025 तक पूरा हो जाएगा। देश में भेड़ियों की आबादी के संरक्षण के लिए रणनीति विकसित करने में बहुत मददगार साबित होगा। भेड़ियों की पारिस्थितिकी पर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन, 2025 तक पूरा होने के बाद, देश के अन्य हिस्सों के लिए भेड़ियों की आबादी के संरक्षण की रणनीति विकसित करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।

-डॉ. अब्दुल अलीम अंसारी, नौरादेही वन्य जीव अभ्यारण्य, नौरादेही

क्या है रेडियो कॉलर और कैसे करता है काम

-रेडियो कॉलर मशीन-बेल्टिंग का एक बड़ा रूप है। इसमें एक छोटा रेडियो ट्रांसमीटर और बैटरी लगी होती है।
– ट्रांसमीटर एक विशिष्ट आवृत्ति पर एक संकेत उत्सर्जित करता है, जिसे 5 किलोमीटर दूर से ट्रैक किया जा सकता है।

-किसी विशेष कॉलर वाले टाइगर, चीता अन्य वन्य जीव आदि का पता लगाने की कोशिश करते समय, शोधकर्ता उचित आवृत्ति डायल करता है और सिग्नल (‘बीप-बीप-बीप’) सुनते हुए गाड़ी चलाता है।
-वाहन के शीर्ष पर एक दिशात्मक एंटीना लगा होता है और एक बार सिग्नल का पता लगने के बाद, शोधकर्ता बस उस दिशा में गाड़ी चलाता है, जहां सिग्नल सबसे तेज होता है।

रेडियो कॉलर का उपयोग क्यों बढ़ा

  • अधिकांश आवासों में जंगली जानवरों को ढूंढना मुश्किल हो सकता है। वहीं जंगली जानवर अक्सर घनी वनस्पतियों या उबड़-खाबड़ इलाकों में छिपे रहते हैं। ऐसे में रेडियो कॉलर का यूज बड़े काम का साबित होता है। इससे उनकी लोकेशन पहचानना आसान हो जाता है।
  • रेडियो कॉलर का यूज जंगली जानवरों का टेलीमेट्री अध्ययन वास्तव में वन्यजीव अनुसंधान में बेहद उपयोगी और बेशकीमती तरीका है
  • जंगली जानवरों के संरक्षण अध्ययन के लिए उपलब्ध पशु व्यवहार, प्रवासन, जनसंख्या गतिशीलता आदि की रिसर्च पर ज्यादातर साहित्य, दुनिया भर में लगभग आधी शताब्दी और भारत में तीन दशकों से ज्यादा समय तक इस तकनीक के असर के इस्तेमाल का ही परिणाम है।
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