इन तस्वीरों को देखिए, आज न तो दीवाली है न होली लेकिन फिर भी जश्न मनाया जा रहा है। मिठाइयां खिलाई जा रही हैं, नाच गाकर एक दूसरे को बधाई दी जा रही है क्योंकि आज सही मायनों में इनके लिए सबसे बड़ा त्यौहार है। ये वो लोग हैं जो सालों तक पाकिस्तान जैसे देश में असहनीय कष्ट उठाते रहे। काफिर जैसे संबोधन की मार झेलते रहे और जब जुल्मों सितम हद पार कर गए तो फिर इन जैसे ही लाखों लोगों ने फिर भारत का रुख किया लेकिन यहां भी इनके दुख कम नहीं हुए।
क्योंकि कभी इन्हें शरणार्थी कहा गया तो कभी घुसपैठियां न इनके पास रहने का ठिकाना था न करने के लिए काम। लेकिन फिर भी किसी तरह ये लोग हर परेशानी झेलते रहे। इस उम्मीद में कि वो सुबह कभी तो आएगी जब इन्हें भी इसी देश का हिस्सा माना जाएगा। जब उनके पास भी किसी देश की नागरिकता होगी। ये वो लाखों हिंदू और गैर मुस्लिम लोग हैं जिनके जड़े भारत से ही जुड़ी हुई थीं। लेकिन इनकी पहचान छिन चुकी थी। ये देश में उपेक्षा का शिकार हो रहे थे। लेकिन बीजेपी ने अपने एक और वादे को पूरा करते हुए नागरिकता संशोधन बिल पेश किया ताकि ऐसे ही लोगों को सम्मान से जीने का मौका मिले।
ये वो लोग हैं जो भारत के ही थे और देश के टुकड़े होने पर उन हिस्सों में चले गए लेकिन जब इन पर पाकिस्तान और बांग्लादेश में बेहिसाब जुल्म ढाए जाने लगे जब इनकी संख्या वहां तेजी से घटने लगी तो जान बचाने के लिए इन्हें आखिरकार भारत लौटना पड़ा। इस उम्मीद में ये लौटे कि देश उन्हें अपना लेगा लेकिन यहां भी इंतजार बढ़ता गया। साल दशक में तब्दील हो गए खैर आज वो वक्त आ चुका है जब इनका इंतजार खत्म होने की दहलीज पर है। हालांकि देश के कुछ राज्यों में सियासत इस कदर हावी हो रही है कि इस बिल का जमकर विरोध किया जा रहा है। कांग्रेस और टीएमसी समेत कई विपक्षी दल इसे बंटवारे की राजनीति कह रहे हैं तो वहीं असम और पूर्वोत्तर में भी स्टूडेंट समेत आम लोग शरणार्थियों को नागरिकता देने के खिलाफ है।
खैर ये सियासत ही है कि बांग्लादेश के घुसपैठिये यानि रोहिंग्या मुसलमानों के लिए यही लोग समर्थन करते आए हैं। इतना कि ये रोहिंग्या मुसलमान पश्चिम बंगाल से घुसपैठ कर पूरे देश में फैलते जा रहे हैं लेकिन इसी देश का हिस्सा रहे हिंदुओं और गैर मुस्लिमों से इन्हें तकलीफ हो रही है। फिर मोदी सरकार अडिग और दृढ़ निश्चयी हैं। लिहाजा भारत में एक और नया इतिहास लिखा जा रहा है उन लोगों के लिए जो अपने ही देश में फिर से शरण पाने के लिए कई तूफानों से जूझते रहे हैं।