परिवहन निगम की बसें तय समय पर गंतव्य के लिए रवाना हो जाती थीं, पर अब ऐसा नहीं है।
कम यात्री होने पर भी निर्धारित स्थान पर छोड़ा जाता था। निजी बस ऑपरेटर रास्ते में उतार देते हैं।
किराया निर्धारित था, पर अब फ्लेक्सी फेयर वसूला जाता है।
03 जून 1962 को नो प्रॉफिट नो लॉस पर शुरू हुआ था निगम।
29.5 त्न केंद्र की और 71.5 त्न राज्य सरकार की थी इसमें भागीदारी।
48 साल चलने के बाद वर्ष 2010 में सरकार ने बंद की निगम की बसें।
5000 करोड़ रुपए से अधिक की शासकीय संपत्ति पर है विवाद।
श्यामसुंदर शर्मा का कहना है कि सड़क परिवहन निगम बंद करने से सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है। निजी बसों में अवैध रूप से लगेज ले जाया जाता है। इसकी जांच तक नहीं की जाती है। सरकार को हर साल करोड़ों रुपए के राजस्व का घाटा हो रहा है।