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भोपाल

Salkanpur Devi Mandir: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय

नर्मदा नदी के तट से महज 11 किलोमीटर दूर स्थित विंध्याचल पर्वत श्रंखला के अंतिम छोर पर माता स्वयं प्रकट हुई थी। यह स्थान जमीन से एक हजार फीट ऊंचाई पर है।

भोपालMay 03, 2024 / 02:48 pm

Manish Gite

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Navratri 2018: विंध्याचल पर्वत पर विराजी हैं यह देवी, सबके लिए करती हैं न्याय

bhopal to salkanpur_ कई लोगों की कुलदेवी होने के साथ देश-विदेश में रहने वाले लोगों की आस्था का भी केंद्र है। लोग माता के इस पवित्र स्थान को सलकनपुर देवी धाम के नाम से भी जानते हैं। यह स्थान सीहोर जिले की रेहटी तहसील में है।
नर्मदा नदी के तट से महज 11 किलोमीटर दूर स्थित विंध्याचल पर्वत श्रंखला के अंतिम छोर पर माता स्वयं प्रकट हुई थी। यह स्थान जमीन से एक हजार फीट ऊंचाई पर है। भक्तों कहते हैं कि माता ने पूरे मध्यप्रदे की भलाई के लिए एक हजार फीट की ऊंचाई पर अपना सिंहासन बनाया है, माता वहीं बैठकर दुनियाभर में फैले भक्तों की मनोकामना पूरी कर देती हैं।
 

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मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते


पहला रास्ता
इस मंदिर पर पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढ़ियों का कठिन रास्ता पार करना पड़ता है। रास्ते में ही प्रसाद और फूलों की दुकानें भी लगी रहती है।

दूसरा रास्ता
मंदिर तक पहुंचने के लिए सरकार ने सड़क मार्ग भी बना दिया है। यहां खुद के वाहन से जाया जा सकता है। इसके लिए पहाड को काटकर तीन किलोमीटर लंबा घुमावदार रास्ता बनाया गया है।


तीसरा रास्ता
पहाड़ी पर चढ़ाई के लिए तीसरा रास्ता रोब-वे है। यह स्थान भी सीढ़ियों के पास ही है। जो लोग सीढ़ी से नहीं जा सकते, उनके लिए रोब-वे सुलभ साधन है। उड़नखटोले पर बैठते ही 8-10 मिनट में माता के दरबार में पहुंचा जा सकता है।

 

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रास्ते में लोग करते हैं सेवा
विजयासन देवी धाम के प्रति श्रद्धा ही है कि भोपाल तरफ से जाने वाले मार्ग पर औबेदुल्लागंज में और हरदा तरफ से आने वाले लोगों के लिए रेहटी में लोग श्रद्धालुओं की मदद करते हैं। इनमें अन्य धर्म संप्रदाय के लोग भी शिरकत करते हैं। यहां स्टाल लगाकर श्रद्धालुओं को फलाहार, फल, चाय, पानी का निःशुल्क बंदोबस्त करते हैं।


सबकी कुलदेवी है विजासन देवी
कई कुटुंब परिवार ऐसे हैं जिन्हें अपनी कुलदेवी के बारे में जानकारी नहीं हैं। उन सभी की कुलदेवी विजासन देवी हैं। विजासन देवी को विन्ध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है। क्योंकि विंध्याचल पर्वत की देवी है।


भक्तों के शरीर में आ जाती है ऊर्जा
यहां के पुजारी बताते हैं कि यहां आने वाला चाहे मंत्री हो या निर्धन व्यक्ति, सभी पर मां की असीम कृपा बरसती है। विजयासन देवी धाम के परिसर में आते ही भक्त अपना शरीर ऊर्जा और शक्ति से भरा हुआ महसूस करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि यहां आने वाला कोई भी दर्शनार्थी खाली हाथ नहीं जाता।


मां पार्वती का अवतार
शास्त्रों में बताया गया है कि मां विजयासन देवी माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध कर सृष्टि की रक्षा की थी।


सूनी गोद भरती हैं देवी
माता कन्याओं को मनचाहा जीवनसाथी का आशीर्वाद देती हैं। भक्तों की सूनी गोद भी भर देती हैं। भक्तों की ही श्रद्धा है कि इस देवीधाम का महत्व किसी शक्तिपीठ से कम नहीं हैं। इस क्षेत्र के ज्यादातर लोग विजयासन देवी को कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं।


यह प्रतिमा है स्वयं-भू
पुजारी बताते हैं कि मां विजयासन देवी की प्रतिमा स्वयं-भू है। यह प्रतिमा माता पार्वती की है, जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लेकर बैठी है। इस भव्य मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भैरव की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। भक्त कहते हैं कि एक मंदिर में कई देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने का सभी को सौभाग्य मिलता है।


बाघ भी करता है परिक्रमा
माना जाता है कि विजयासन देवी का मंदिर जिस पहाड़ी पर है वह क्षेत्र रातापानी के जंगल से जुड़ा हुआ है। इसलिए मंदिर तक बाघ का विचरण होता रहता है। भक्तों की आस्था है कि माता का यह वाहन माता के दर्शन करने मंदिर के आसपास आता रहता है। कुछ ग्रामीण बताते हैं कि कई बरसों पहले जब यहां मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था तो बाघ मंदिर के पास ही एक गुफा में रहता था। धीरे-धीरे भक्तों की आस्था बढ़ती गई और आज विजयासन देवी धाम देश में जाना-माना तीर्थ बन गया।

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