दुनिया को हिला कर रख देने वाली गैस त्रासदी को लेकर राजनीतिक दलों का रवैया ये है कि अब वे इसे मुद्दा ही नहीं रहना देना चाहते। ऐसा हम नहीं खुद विधानसभा चुनाव 2018 के लिए जारी किए गए घोषणा-पत्र बयां कर रहे हैं, जिनमें ये मुद्दा पूरी तरह गायब है। कांगे्रस ने भले ही इसे अपने वचन-पत्र में शामिल किया है, लेकिन स्थानीय प्रत्याशी इस पर पूरे चुनाव में चुप्पी साधे रहे।
14-15 फरवरी 1989: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भारत सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच सहमति बनी। यूका मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन डॉलर देने को तैयार हुई, लेकिन इसके बदले कंपनी के मुखिया और अन्य पर लगाए गए सभी चार्ज वापस लेने थे। विरोध देख सुप्रीम कोर्ट ने ये पेशकश अमान्य कर दी।
5 अप्रैल 1993: गैस पीडि़त संगठनों द्वारा केंद्र सरकार से अंतरिम मुआवजा, आर्थिक पुनर्वास और चिकित्सा सहायता की मांग।
फरवरी 2001: यूका और डाउ केमिकल कंपनियों का विलय। डाउ ने उत्तरदायित्व वहन करने से इनकार किया। विरोध के बाद 2002 में डाउ ने कदम पीछे खींचे।
30 सितंबर 2002: पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून ने अध्ययन के बाद बताया कि कई क्षेत्रों के पेयजल में पारा है।
19 जुलाई 2004- सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि गैस पीडि़तों को यूका से मिले क्षतिपूर्ति के 1503 करोड़ रुपए वितरित करें।
7 जून, 2010- भोपाल जिला अदालत ने आरोपियों को दो-दो साल की सजा सुनाई, सभी आरोपी जमानत पर रिहा भी कर दिए गए।
20 जून 2010- गैस पीडि़त संगठन के अब्दुल जब्बार और एड. शहनवाज खान ने एंडरसन को फरार कराने के मामले में तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह व एसपी स्वराज पुरी के खिलाफ अदालत में इस्तगासा पेश किया।
29 सितंबर 2014- भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की अमेरिका में मौत ।