सिंधिया ने अपने संबोधन में कहा कि सिंधिया राजघराने के पूर्वज, होलकर से लेकर मराठा साम्राज्य के बाजीराव पेशवा, शिवाजी तक मराठाओं के इतिहास के बारे में बताया। सिंधिया ने गर्व किया कि मराठा साम्राज्य के श्रीमंत बाजीराव पेशवा की समाधि पर आने का मौका मिला। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आभार व्यक्त करता हूं। सिंधिया ने कहा कि बाजीराव पेशवा मराठाओं की पहचान थी।यह एक संयोग है कि यह समाधि मेरे पूर्वज ने बनाई। इसमें सिंधिया खानदान का पूरा योगदान है।
सिंधिया ने 20 मिनट उद्बोधन दिया जिसमें उन्होंने मराठा साम्राज्य के डेढ़ सौ साल के इतिहास पर विस्तार से जानकारी दी। शिवाजी ने देश मे हिंदुत्व को स्थापित किया है। इसलिए आज हमारी संस्कृति और इतिहास जिंदा है। रावेरखेड़ी में पेशवा स्मारक बनाने की लिए सरकार ने योजना बनाई है। यहां मराठा का वाड़ा बनना चाहिए ओर मराठा की पहचान के रूप में काले पत्थर का इस्तेमाल किया जाए।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संबोधन मे कहा कि इस स्थल को ऐसा स्थल बनाया जाएगा कि देशभर से लोग इस स्थल पर प्रणाम करने आएंगे। चौहान ने मंच से ही निर्देश दिए कि यह ऐसा बने कि जमाना याद रखें। यह अनमोल स्थल है। नर्मदा मैया की गोद में अंतिम सांस ली, तीर्थ यात्री निवास भी बनेगा। बैठने और रुकने के लिए स्थल बनेगा। यहां से गुजरने वाले यात्री भी विश्राम कर सके।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की जन आशीर्वाद यात्रा का बुधवार को दूसरा दिन है। वे बड़वाह, सनावद होते हुए रावेरखेड़ी पहुंचे। 18 अगस्त को बाजीराव पेशवा की जयंती के मौके पर यह आयोजन किया गया था। मराठा सम्राट बाजीराव पेशवा की समाधि स्थल पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान ने नमन किया। सिंधिया की जन आशीर्वाद यात्रा का यह दूसरा दिन था। पिछले 15 दिनों से प्रशासन इस आयोजन की तैयारियों में जुटा हुआ था। निमाड़ के मांडना (भित्तीचित्र) से दीवारों को सजाया गया था।
भोपाल के निजाम को हराया था बाजीराव पेशवा ने किसी भी युद्ध में हार नहीं मानी। अंतिम युद्ध 179 में पेशवा का भोपाल के निजाम नासिरजंग के साथ हुआ। बाजीराव ने नासिरजंग को पराजित किया और रावेरखेड़ी लौट आए। रावेरखेड़ी में उनकी तबीयत खराब हो गई और महज 40 साल की उम्र में ही उन्होंने नर्मदा के किनारे अंतिम सांस ली।
बाजीराव प्रथमः कभी हार नहीं मानी
मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव प्रथम महान सेनानायक थे। वे 1720 से 1740 तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमंत्री) रहे। इनका जन्म चितपावन कुल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनको ‘बाजीराव बल्लाळ’ तथा ‘थोरले बाजीराव’ के नाम से भी पुकारा जाता है। इन्हें लोग अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट भी मानते हैं। इन्होंने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार (विशेषतः उत्तर भारत में) किया। बाजीराव की मृत्यु के 20 वर्ष बाद उनके पुत्र के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया था। बाजीराव प्रथम को सभी 9 महान पेशवाओं में सर्वश्रेष्ठ होने का गौरव प्राप्त है।
एक नजर
नर्मदा किनारे हुई थी बाजीराव की मृत्यु
खरगौन जिले के रावेरखेड़ी में बाजीराव पेवा की समाधि है। इसी स्थान पर बाजीराव पेशवा की मृत्यु हुई थी। बकावां में नर्मदा के पत्थरों को तराशकर शिवलिंग बनाए जाते हैं। रावेरखेड़ी के लिए नजदीकी ट्रेन रूट इंदौर सनावद या खंडवा सनावद है। जबकि सड़क मार्ग से इस स्थान पर जाने के लिए इंदौर से कसरावद 90 किमी, कसरावद से रावेरखेड़ी फाटा (पिपगोन) 19 किलोमीटर है। रावेरखेड़ी फाटे से रावेरखेड़ी 8 किमी है।