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अब तक 2 करोड़ रुपए से ज्यादा चुरा चुके हैं रकम
मध्य प्रदेश पुलिस पिछले दो सालों से आरोपियों की तलाश में जुटी थी। इसके अलावा, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र और बिहार की पुलिस भी आरोपियों की तलाशमें पिछले कई दिनों से जगह जगह छापे मारी कर रही थी। आरोपी 14 नवंबर को ईटखेड़ी में बैंक एटीएम में चोरी करने के बाद बुधवार-गुरुवार की रात दोबारा भोपाल में एटीएम में चोरी कर रहे थे। हालांकि, पुलिस को इसकी सूचना पहले ही मिल चुकी थी, जिसके आधार पर पुलिस ने पहले से ही लुटेरों के लिए जाल बिछाकर रखा था। भोपाल एडीजी उपेंद्र जैन के मिताबिक, गैंग के सदस्य अब तक जगह जगह एटीएम में लूटपाट करके 2 करोड़ रुपए से अधिक रकम चुरा चुके हैं।
दिवाली की रात दे चिके थे वारदात को अंजाम
भोपाल एडीजी उपेंद्र जैन ने बताया कि, दीपावली की रात को भोपाल के ईटखेड़ी स्थित आईडीबीआई बैंक के एटीएम में आरोपियों ने चोरी की वारदात को अंजाम दिया था। आरोपियों ने गैस कटर से एटीएम काटकर रुपए निकाल लिये थे। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज समेत अन्य माध्यमों से आरोपियों पर नजर रखी। इस दौरान आरोपियों की सक्रियता महाराष्ट्र में देखी गई थी। यहां इसी तरह से महाराष्ट्र के सोलापुर में भी चोरी की वारदात हुई हुई। इसके बाद आरोपी दोबारा भोपाल का रुख करके यहां आए, जिसके चलते पुलिस पहले से ही उनपर नजर बनाए हुए थी।
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रंगे हाथों 6 लुटेरे गिरफ्तार
गुजरी रात एक बार फिर आरोपियों ने भोपाल का रुख किया और शहर के परवलिया इलाके में एसबीआई के एटीएम में चोरी की वारदात को अंजाम देना तय किया। यहां सबसे पहले आरोपियों ने एटीएम कक्ष में पहुंचकर गार्ड को बंधक बनाया। इसके बाद उन्होंने एटीएम मशीन को काटना शुरू किया। यहां पहले से आरोपियों के इंतजार में बैठी पुलिस ने इसी दौरान गैंग के 6 सदस्यों को दबोच लिया। गैंग के सदस्यों के पास से पुलिस ने गैस कटर, एक देशी कट्टा, गैस सिलेंडर, ऑक्सीजन सिलेंडर, दो पाइप, एक सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार और नगद 15 लाख रुपए जब्त किये हैं।
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इस तरह देते थे वारदात को अंजाम
पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने कबूल करते हुए वारदात को अंजाम देने का तरीक बताया। उन्होंने कहा कि, वो हमेशा प्राइवेट कार से निकलते थे। किसी भी दूरदराज के एटीएम को पहले से चिन्हित कर लेते थे। वो ऐसे एटीएम को चुनते थे, जिसमें सेंसर न हो। इसके बाद रात दो से लेकर तीन बजे के बीच एटीएम में घुसते थे। गैस कटर से एटीएम काटकर रुपए निकाल लेते थे। इन रुपयों को वो कार के डेशबोर्ड में छुपा देते थे, ताकि बाद में किसी तरह की चैंकिंग के दौरान रूपये ढूंढे न जा सकें।