बीमारी ने छीने दोनों पैर
पहले बैच में तीन लोगों को नकली पैर प्रबंधन द्वारा मुफ्त में मुहैया कराए गए हैं। जिसमें एक 20 साल की युवती है। गेंगरीन बीमारी के कारण उसे घुटनों के नीचे से अपने दोनों पैर खोने पड़े। जिससे वे शारीरिक के साथ मानसिक रूप से भी परेशान थी। बुधवार को जब वो करीब 6 माह बाद दोबारा कृत्रिम पैरों की मदद से खड़ी हुई, तो उसके चेहरे पर लंबे अंतराल के बाद मुस्कान देखी गई। बुधवार को एक अन्य मरीज को भी नकली पैर लगाए गए। अभी तीन अन्य मरीज वेटिंग में हैं। बाजार से 90 फीसदी से अधिक सस्ते
एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने बताया कि मरीजों को कृत्रिम अंग एक हजार रुपए से कम में मुहैया कराए जा रहे हैं। जबकि इनकी बाजार में कीमत 15 से 20 हजार तक होती है। वहीं आयुष्मान व बीपीएल कार्ड वाले मरीजों के लिए यह फ्री है।
85% मामलों में काटने पड़ते हैं निचले हिस्से के अंग
एम्स प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार दुर्घटना, डायबिटीज, पेरिफेरल वेस्कुलर बीमारी के कारण लोग अपना अंग गंवा देते हैं। इस तरह के मामलों में 85 फीसदी ऐसे मामले होते हैं। जिसमें शरीर के निचले हिस्से को काट कर निकालना पड़ता है। डॉ. सिंह ने कहा कि पीएमआर विभाग को मध्य भारत में दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने की योजना है। जिससे यहां ऐसे मरीजों को दुनिया में मौजूद हर इलाज मिल सके। यह प्रयास लोगों को सक्षम और सशक्त बनाना के लिए किया जा रहा है। एक पैर बनाने में लगते हैं 3 दिन
प्रोस्थेटिस्ट और ऑर्थोटिस्ट स्मिता पाठक ने बताया कि एक कृत्रिम पैर को बनाने में औसतन तीन दिन का समय लगता है। इसके बाद केस के अनुसार यह समय बढ़ भी सकता है। एम्स में जिन मरीजों की रीड़ की हड्डी की सर्जरी होती है, उनके लिए स्पाइनल ब्रेसेस भी तैयार कर रहे हैं। इसके अलावा अन्य कृत्रिम अंग बनाए जा रहे हैं।