स्वास्थ्य आयुक्त आकाश त्रिपाठी को नोटिस जारी किया है। उन्हें व्यक्तिगत जैन के लिए समन भी जारी किया है। बता दें कि प्रदेश के इतिहास में यह पहला मामला है, जब सूचना ५४ क्त नें गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। दो साल पहले हरियाणा में ऐसा ही एक मामला सामने आ चुका है।
आयोग के वारंट की तामील करा कर दोषी अधिकारी डॉ. सिंह को गिरफ्तार कर आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे हाजिर करने कहा गया है। आयोग ने वारंट में यह भी कहा है कि अगर डॉ. सिंह पांच हजार की जमानत देकर खुद आयोग के समक्ष 11 अक्टूबर की पेशी में हाजिर होने तैयार हैं तो उनसे जमानत की राशि लेकर उन्हें आयोग के समक्ष हाजिर होने के लिए रिहा कर दिया जाए। यह है दिनेश सदाशिव सोनवाने ने 10 अगस्त 2017 को सीएमएचओ बुरहानपुर के समझ आरटीआई वेदन लगाया था इसमें स्वास्थ्य विभाग में वाहन चालकों की नियुक्ति और पदस्थापना के संबंध में जानकारीमांगी थी। लेकिन उन्होंने जबाब नहीं मिला।
लगातार समन, पर नहीं हुए उपस्थित
आयोग ने डॉ. विक्रम सिंह को आयोग के समक्ष अपना जवाब पेश करने के लिए 18 अक्टूबर 2019 से 10 फरवरी 2020 तक लगातार 5 समन जारी किए। इसके बाद भी वे हाजिर नहीं हुए। आयोग ने उपस्थिति सुनिश्चित करने स्वास्थ्य संचालनालय के कमिश्नर को भी निर्देश दिए। इसके बाद 16 दिसंबर 2020 को इस प्रकरण में 25 हजार का जुर्माना लगाया। साथ ही स्वास्थ संचनालय को 1 महीबे मे पैनल्टी की राशि जमा ना होने पर डॉ. सिंह के वेतन से काटकर आयोग में जमा करने के निर्देश दिए, लेकिन न तो राशि जमा हुई और न ही वे आयोग के समक्ष हाजिर हुए।
क्या है नियम
राज्य सूचना आयुक्त के मुताबिक आरटीआइ एक्ट की धारा 7 (1) के तहत अगर 30 दिन में जानकारी नहीं मिलती है तो धारा 20 के तहत 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है। दोषी अधिकारी को एक महीने का समय जुर्माने की राशि आयोग में जमा करने के लिए दिया जाता है। इसके बाद आयोग दोषी अधिकारी के कंट्रोलिंग अधिकारी को जुर्माने की राशि वसूलने और दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के लिए रिपोर्ट करता है। सिविल कोर्ट की शक्तियों का भी उपयोग करता है।
30 दिन में जानकारी देना अनिवार्य
आरटीआइ के तहत आवेदन करने के 30 दिन में आवेदक को जानकारी देना अनिवार्य है। यदि जानकारी देने योग्य नहीं है तो ठोस कारण बताया जाए। आवेदक यदि संतृष्ट नही होता है तो वह प्रथम कर सकता है। इस मामले में तीन साल तक जानकारी नहीं दी गई। अभी प्रदेश में 6000 से अधिक मामले आयोग के पास पेंडिंग हैं।
आयुक्त की तल्ख टिप्पणी
राज्य सूचना आयुक्त ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों अधिकारियों का व्यवहार संसद द्वारा स्थापित पारवर्शी ऑर जवाबबेह सुशासन सुनिव्ित करने वाले आरटीआड़ कानून का मर्खोल उड़ाने वाजा है। आयोग इस तरह आरटीआइ एक्ट के आम उल्लंघन को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकता।