भोपाल। MP में सरकारी विज्ञापनों के मामले में बड़ा घालमेल उजागर हुआ है। सरकार ने बस नाम के लिए चल रहीं वेबसाइट्स पर 14 करोड़ रुपए लुटा दिए। यह खेल तब हुआ जब खजाने की माली हालत खराब थी। सरकार तंगहाली के बावजूद इन वेबसाइट्स को विज्ञापन जारी कर खजाना लुटाती रही। ऐसी करीब 234 वेबसाइट का खुलासा हुआ है, जिन पर सरकार की मेहरबानी बरसती रही। संस्थानों को विज्ञापन देने की सरकारी नीति के स्थान पर अपने चहेते पत्रकारों को उपकृत किया गया। सरकार से लाखों के विज्ञापन कुछ ऐसी वेबसाइट्स को भी मिले जो बंद थीं। इस घालमेल में कई पत्रकारों ने अपने रिश्तेदारों के नाम से वेबसाइट्स बनाकर भी सरकारी विज्ञापन हसिल किए।
234 वेबसाइट्स को दिए 14 करोड़ रुपए
मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले चार साल में करीब 234 वेबसाइटस पर सरकारी विज्ञापन के लिए लगभग 14 करोड़ रुपए दिए हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्रदेश में संचालित इनमें से ज्यादातर वेबसाइट पत्रकारों के रिश्तेदार संचालित कर रहे हैं। चौंकाने वाला यह खुलासा हाल ही में की गई एक इंन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट में सामने आया है।
-सरकार की ओर से 2012-15 के बीच 10 हजार से लेकर 21.7 लाख रुपए तक के विज्ञापनों की सूची तैयार की गई थी।
– इस मुद्दे को कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने विधानसभा में उठाया।
– कम से कम 26 वेबसाइट को 10 लाख से ज्यादा का विज्ञापन मिला है।
– इनमें से कम से कम 18 वेबसाइट ऐसी हैं, जिन्हें कई समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकारों के रिश्तेदार संचालित कर रहे हैं।
-इन रिश्तेदारों को 5-10 लाख रुपए के विज्ञापन मिले हैं।
– इनमें भी कम से कम 33 वेबसाइट ऐसी हैं जिन्हें सरकार की ओर से अलॉट किए गए स्थानों पर संचालित किया जा रहा है।
– कई वेबसाइट जिनमें http://www.failaan.com (Rs 18.70 lakh), http://www.deshbhakti. com (Rs 8.75 lakh), http://www.rashtrawad.com (Rs 8.25 lakh), http://www.citychowk.com (Rs 11.90 lakh) and http://www.prakalp.org (Rs 10.60 lakh) जो कि अलग-अलग नाम से संचालित की जा रही हैं, इनमें अधिकतर एक जैसा कंटेट पाया जा रहा है।
– ये जितनी भी वेबसाइट हैं इनमें से ज्यादातर ऐसी हैं जिनमें न कॉन्टेक्ट डिटेल है, न ही यह जानकारी दी गई है कि उन्हें संचालित कौन कर रहा है। इन पत्रकारों की वेबसाइट में हरिदयाल पटेरिया, सुमन त्रिपाठी, पवन देवालिया, शब्ददीप समिति शामिल हैं।
– मध्यप्रदेश बेस्ड स्टेट गवर्नमेंट बेस्ड वेबसाइट में www.mpmirror.com, www.bigbreaking.com, www.newsroom24x7.comhttp://www.ekhabartoday.com शामिल हैं।
– – इंडिया टीवी के फॉर्मल जर्नलिस्ट अनुराग उपाध्याय का का कहना है कि उनकी पत्नी वेबसाइट को लेकर काफी डेडिकेटेड हैं। अनुराग की पत्नी श्रुति अनुराग उपाध्याय http://www.dakhal.net नामक वेबसाइट संचालित करती हैं। इस वेबसाइट को पिछले चार साल में 19.7 लाख के सरकारी विज्ञापन मिले हैं। इस वेबसाइट पर तो डेटलाइन तक पोस्ट नहीं की जातीं।
– http://www.failaan.com (Prakhar Agnihotri) and http://www.indiannews&view.com (Rs. 8.75 lakh, Rajesh Agnihotri) इन वेबसाइट में कंटेंट सेम हैं।
– विज्ञापन उन्हीं लेागों को जारी किए जाने चाहिएं जो असल में पत्रकारों द्वारा चलाई जा रही हैं। उन्होंने प्रश्न किया कि विज्ञापन उन्हीं लोगों को क्यों दिया जा रहा है जो बीजेपी से जुड़े हैं। इस तरह से मीडिया की स्वतंत्रता खत्म होती है।
– मध्यप्रदेश सरकार पत्रकारों को लेकर हमेशा से ही सौहाद्रपूर्ण माहौल बनाए रखती है। यह कहना है लोकल हिन्दी वीकली एलएन स्टार के संपादक प्रकाश भटनागर का। इनकी पत्नी पूनम भटनागर http://www.webkhabar.com वेबसाइट संचालित करती हैं। जिसे वर्ष 2012-15 के दौरान 11.25 लाख रुपए के सरकारी विज्ञापन मिले हैं। इस वेबसाइट पर हर दिन कम से कम एक न्यूज पोस्ट की जाती है।
– सरमन नागले अपनी पत्नी सुनीता नागले के साथ तीन वेबसाइट संचालित करते हैं। उनका कहना है कि वे 2004 से इस फील्ड में हैं। वे जो भी विज्ञापन लेते हैं सरकारी नियमों के मुताबिक ही लेते हैं। इन्हें http://www.mppost.com, http://www.socialmediamp.com, http://www.bharateseva.com तीनों वेबसाइट के लिए कुल 17.7 लाख रुपए के सरकारी विज्ञापन दिए गए हैं।
– एक वेबसाइट http://www.mpnewsonline.com है, इसे एक स्कूल टीचर मिनी शर्मा के नाम से संचालित किया जा रहा है। मिनी शर्मा एक अंग्रेजी अखबार The Pioneer के स्थानीय संपादक गिरीश शर्मा की पत्नी हैं। लेकिन इस वेबसाइट पर किसी भी तरह की कॉन्टेक्ट इंफॉर्मेशन नहीं है। जबकि इस वेसाइट को सरकार की ओर से 2012-15 के बीच 17 लाख के विज्ञापन मिले हैं। गिरीश शर्मा ने इस बारे में कहा कि ये अनैतिक जरूर है, लेकिन गैर कानूनी नहीं है।
– इसके अलावा एक वेबसाइट ऐसी है जिसे 21.70 लाख के विज्ञापन जारी किए जा चुके हैं। राज्य की विज्ञापन सूची में शामिल यह वेबसाइट अश्विनी राय के नाम से है। अश्विनी राय बीजेपी के साथ काम करती हैं। अश्विनी कहती हैं कि वे इससे नहीं जुड़ी हैं, वे बीजेपी के लिए काम करती हैं। इसे कोई और संचालित करता है।
– वहीं इंग्लिश डेली प्रेस के संपादक नीतेंद्र शर्मा का कहना है कि मेरी पत्नी के पास वेबसाइट संचालित करने के सारे अधिकार हैं, यह कोई बड़ा इश्यू नहीं है। इनकी पत्नी सुमन शर्मा http://www.burningnews.org वेबसाइट संचालित करती हैं। जिसमें चार साल में 20.70 लाख के विज्ञापन जारी किए गए हैं।
– नया इंडिया हिन्दी समाचार पत्र के पत्रकार राघवेंद्र सिंह का कहना है कि ‘मैंने कभी सरकार से पैसे को लेकर बात नहीं की। लेकिन जब भी जो भी मिला उसे एक्सेप्ट किया।’ राघवेंद्र की पत्नी साधना सिंह http://www.bawandar.com वेबसाइट संचालित करती हैं। उन्हें 8.25 लाख रुपए के विज्ञापन मिले हैं। जबकि यह वेबसाइट उपलब्ध ही नहीं है।
– नई दुनिया समाचार पत्र के पत्रकार रविन्द्र केलाशिया का कहना है कि उनकी पत्नी वेबसाइट को संचालित करती हैं। हमें सरकार से कोई पैसा प्राप्त नहीं हुआ है। जबकि उन्हें 8.5 लाख रुपए के सरकारी विज्ञापन उनकी वेबसाइट http://www.khabarsabki.com के लिए जारी किए गए हैं।
– ऐसी ही एक वेबसाइट और आइडेंटीफाइ की गई है जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम पर संचालित है। http://www.bharateseva.com इसके होम पेज पर कुछ न्यूज आइटम हैं
– दैनिक भास्कर के पत्रकार राजेश पांडेय http://www.khabarmail.com वेबसाइट संचालित करते हैं। उनका कहना है कि मेरी वेबसाइट पर तो फिलहाल विज्ञापन ही नहीं हैं। जबकि इस वेबसाइट के नाम पर 8.5 लाख के विज्ञापन जारी किए गए हैं।
– प्रदेश सरकार के संगठन माध्यम में कार्यरत आत्माराम शर्मा का कहना है कि इससे कोई मतबलब नहीं है कि मैं कहां काम कर रहा हूं, देखना यह चाहिए कि वेबसाइट अच्छी है।’ आत्माराम की पत्नी सुषमा शर्मा http://www.garbhanal.com वेबसाइट संचालित कर रही हैं। जिसे अब तक 7.20 लाख रुपए के विज्ञापन मिल चुके हैं। एक मैग्जीन भी प्रकाशित होती है, जिसका नाम भी यही है।
प्रदेश कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने इस मामले को विधानसभा में उठाया था। उन्होंने प्रश्न किया था कि सरकार की ओर से विज्ञापन उन्हीं लेागों को जारी किए जाने चाहिएं जो असल में पत्रकारों द्वारा चलाई जा रही हैं। विज्ञापन उन्हीं लोगों को क्यों दिया जा रहा है जो बीजेपी से जुड़े हैं? इस तरह से मीडिया की स्वतंत्रता खत्म होती है।
नीति ही नहीं थी
वेबसाइट के मामले में पहले कोई स्पष्ट नीति नहीं थी। अब नीति स्पष्ट है। हिट्स के आधार पर विज्ञापन दिए जाते हैं। इन्हें चार श्रेणियों में बांटा गया है। यदि कोई वेबसाइट बंद हो गई है तो उसे विज्ञापन देने का प्रावधान नहीं है। पहले भी चालू वेबसाइट्स को ही विज्ञापन दिए गए थे। विज्ञापन मिलने के बाद यदि वे बंद हो जाए तो हम कुछ नहीं कर सकते।
– अनुपम राजन, आयुक्त जनसंपर्क