मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। सरकार की स्थिति ऐसी है कि हर एक विधायक का महत्व है। क्योंकि कमलनाथ की सरकार निर्दलीय, सपा और बसपा के समर्थन के सहारे चल रही है। ऐसे में झाबुआ सीट पर कांग्रेस की नजर है। अगर यह सीट जीतने में कामयाब होती है तो बहुमत के मामले में स्थिति और मजबूत हो जाएगी। सिंघार भी आदिवासी नेता हैं और उस इलाके में उनकी अच्छी पैठ है।
ऐसे में मंत्री उमंग सिंघार पर कोई कार्रवाई कर कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। कांग्रेस जानती है कि अगर सिंघार पर कोई कार्रवाई करते हैं तो सरकार भी खतरे में आ सकती है। कार्रवाई के बाद नाराज सिंघार कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। ऐसे में आदिवासी समाज के लोग में एक गलत संदेश जाएगा। जिसका खामियाजा झाबुआ में उठाना पड़ सकता है।
सिंघार के बाद पार्टी और सरकार में विरोध के स्वर और उठने लगे थे। कांग्रेस आलाकमान ने अनुशासन समिति के पास मामले को भेज सिर्फ एक संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी अनुशासनहीनता के मामले को कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। क्योंकि जब सीएम कमलनाथ से मीडिया ने सवाल पूछा कि कार्रवाई को लेकर कोई टाइमफ्रेम तय किया गया है कि उस पर उन्होंने कहा कि यह अनुशासन समिति देखेगी। इस बयान से ही यह साफ हो गया था कि फिलहाल जांच के नाम पर मामले को झाबुआ उपचुनाव तक टालने की कोशिश है।
वहीं, झाबुआ उपचुनाव को लेकर बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है। शिवराज सिंह चौहान ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश सरकार को उखाड़ने की शुरुआत झाबुआ से होगी। सांसद डामोर ने कहा कि उपचुनाव के बाद ज्यादा दिन मध्यप्रदेश सरकार नहीं चल पाएगी।