मोटर व्हीकल एक्ट में वैसे भी बस मालिकों के परमिट इत्यादि के प्रावधान हैं, इस प्रस्तावित नीति में भी एेसी व्यवस्था की जा रही है जिससे स्कूल संचालक या फिर बस मालिक नियमों का उल्लंघन न कर सके।
राज्य सरकार का प्रयास है कि सड़क पर पुरानी बसें न दौड़े। पिछले बार सरकार ने कोशिश की थी कि १५ साल से अधिक पुरानी स्कूल बसें न चलें। इसको लेकर बस संचालकों के विरोध के चलते यह प्रस्ताव ठण्डे बस्ते में चला गया था। तर्क दिया गया था कि इन बसों अधिक आय नहीं होती। मोटर व्हीकल एक्ट में पुराने वाहनों पर अधिक टेक्स लगाए जाने के प्रावधान किए जा चुके हैं। बस संचालकों को नई बसें खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
स्कूल बसों को सरकार टेक्स में छूट देती है, इस छूट का दुरुपयोग की शिकायतें आ रही थीं। कई स्कूल संचालक और बस संचालक इनका व्यवसायिक उपयोग करने लगे थे। लेकिन अब एेसा संभव नहीं हो पाएगा। इसकी निगरानी होगी।
नई प्रस्तावित नीति में बस संचालकों की जिम्मेदारी होगी कि बस का फिटनेस बेहतर रखे। सुरक्षित परिवहन के पर्याप्त इंतजाम हों। ड्रायवर, कंडक्टर प्रशिक्षित हों। ड्रेस कोड का पालन करें। पुलिस बेरिफिकेशन भी हो।
अभिभावक और बस संचालकों के बीच सवन्वयक का काम करेंगे। प्रतिमाह दोनों पक्षों की बैठक करेंगे। आपत्तियों का निराकरण करेंगे। जरूरत पडऩे पर जिला प्रशासनकी मदद लेंगे। बच्चों के अभिभावक –
वह अपने बच्चे को स्कूल वाहन में भेजने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि वाहन का फिटनेस सर्टिफिकेट है और वाहन चालक के पास लायसेंस। सुरक्षा की दृष्टि से खिड़की में ग्रिल इत्यादि लगे हैं कि नहीं। बस में चलने वाले स्टाफ का व्यवहार कैसा है।
– गोविंद सिंह राजपूत, परिवहन मंत्री